सर्वदलीय बैठक में झारखंड के अहम मुद्दों पर होनी है चर्चा पर भाजपा के रुख पर उठे सवाल

भाजपा का अबतक झारखण्ड के ज्वलंत मूल मुद्दों पर आधारित सर्वदलीय बैठक से खुद को अलग रखना, उसके मंशे पर सवाल उत्पन्न कर सकता है

रांची : मौजूदा दौर में बिना किन्तु-परन्तु के कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार का रवैया झारखंड के प्रति संदिग्ध है. केंद्र सरकार द्वारा झारखण्ड राज्य को परेशान किए जाने का मामला स्वयं मुख्यमन्त्री हेमन्त सोरेन कई बार कई मंचों उठा चुके हैं. बावजूद इसके भारत के संघीय व्यवस्था के प्रति राज्य सरकार अपनी आस्था कायम रखते हुए, संवैधानिक नियमों के अंतर्गत केंद्र को अभिभावक मानती आयी है. और उसके समक्ष अपनी समस्याए रखती आयी है. लेकिन संतावन वश भी केन्द्र द्वारा एक अदद उदाहरण पेश नहीं किया गया है जिससे लगे कि वह अभिभावक है और पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं है.

ज्ञात हो, मुख्यमन्त्री हेमन्त सोरेन के साथ सर्व दलों का 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल, 25 सितंबर को भारत के केंद्रीय गृहमन्त्री अमित शाह से मुलाकात करेगा. इस महत्वपूर्ण मुलाकात में झारखंड के दो अहम मुद्दे, जातीय जनगणना और सरना धर्मकोड पर चर्चा होगी. गौरतलब है कि देश में जातीय जनगणना की मांग पिछले कुछ अरसे में बढी है. और बरसों पुरानी सरना/आदिवासी धर्मकोड की मांग को राज्य सरकार ने विधानसभा में पारित कर केंद्र में भेज दिया है.

जातीय जनगणना झारखंड के लिए तो सरना/आदिवासी धर्मकोड आदिवासी समुदाय के लिए महत्वपूर्ण 

जातीय जनगणना का मुद्दा झारखंड के सभी वर्गों के कल्याण से संबंधित है. जबकि दूसरा मुद्दा झारखंड के आदिवासी समुदाय की बरसों पुरानी मांग से जुडा है. ज्ञात हो, पूर्व की भाजपा सरकार इस मुद्दे में झारखंड के आदिवासी समुदाय को छल चुकी है. ऐसे में दोनों मामले झारखंड के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है. 

सर्वदलीय बैठक में सभी दलों में आजसू तक शामिल पर भाजपा नहीं क्यों?

इस सर्वदलीय बैठक में झामुमो, कांग्रेस, राजद, माले, भाकपा, माकपा व मासस के प्रतिनिधियों के द्वारा शामिल होने पर अपनी सहमति जताई जा चुकी है. इसके अतिरिक्त विपक्षी दल से आजसू ने भी बैठक में शामिल होने पर सहमति जतायी है. पर राज्य का दुर्भाग्य है कि प्रदेश भाजपा ने अभी तक यह साफ नहीं किया है कि उसका कोई प्रतिनिधि इस महत्वपूर्ण बैठक में शामिल होगा या नहीं. जबकि राज्य सरकार के तरफ से सबसे पहले भाजपा को ही बैठक में शामिल होने का निमंत्रण भेजा गया था.

मसलन,  भाजपा की ओर से उपरोक्त महत्वपूर्ण मुद्दे में होने वाली बैठक के लिए कोई जवाब अबतक न आना, झारखंडी भावनाओं के मद्देनजर उसके मंशे पर सवाल उत्पन्न कर सकता है. यदि भाजपा बैठक में शरीक नहीं होती है तो यह समझा जा सकता है कि झारखंड के ज्वलंत व मूल मुद्दों से भाजपा ने खुद को अलग कर लिया है. और उसकी विचारधारा को झारखंडी भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है. और वह केन्द्रीय मंशा के अनुरूप सर्वदलीय बैठक को सफल होने नहीं देना चाहती है. जो किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ नहीं हो सकता है.

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