गेंदा फूल की खेती से सूरजमनी उरांव बनी झारखण्ड की एक स्वावलंबी किसान

हेमंत सरकार की योजनाओं से जुड़कर सूरजमनी उरांव की भांति कई झारखंडियों की बदलने लगी है जिंदगी, बन रहे हैं स्वावलंबी किसान और पलायन जैसी समस्या से मिल रही है निजात… 

रांची : मुख्यमन्त्री हेमन्त सोरेन ने झारखण्ड में सत्ताओं के सन्दर्भ में गंभीर बात कही थी. उन्होंने कहा था कि झारखंड के 20 सालों के इतिहास में अधिकांश बाहरी मानसिकता ने राज किया. नतीजतन राज्य के भावनाओं के उलट नीतियां बनी और लागू हुई. उनकी नीतियों के अक्स में राज्य लगभग बर्बादी के कगार पर आ खड़ा हुआ. झारखंडी युवा दरकिनार हुए और बाहरियों की नियुक्तियां हुई. और पलायन जैसी त्रासदी राज्य का मुकद्दर बनकर उभरा.

लेकिन, झारखंड के सत्ता पर झारखंडी मानसिकता काबिज होते ही राज्य के मूल भूत समस्याओं का दीर्घ कालिक उपाय सामने आने लगे हैं. हेमन्त सरकार न केवल सिरे से झारखंड को संवार रही बल्कि उनकी योजनाएं ज़मीन पर कल्याणकारी साबित हो रही है. और वर्षों से हाशिये पर खड़ी वंचित मूल समाज सरकार की योजनाओं से जुड़ कर अपने नये समृद्ध भविष्य स्वयं लिखने में सफल होते दिख रहे हैं. विभिन्न जिलों की महिलाएं हडिया-दारू जैसे मनुवादी अभिशाप से मुक्त हो लगातार स्वरोजगार से जुड़ रही हैं. 

सफल महिलाओं की फेहरिस्त में सूरजमनी उरांव भी एक झारखंडी नाम

इन्हीं सफल महिलाओं की फेहरिस्त में सूरजमनी उरांव भी एक नाम है, जो अपनी मुकद्दर मान चुकी गरीबी से ऊबरकर आर्थिक स्वावलंबन की राह पकड़ चली है. सफलता की यह कहानी उस पैमाने को उकेरती है जिसके अक्स में माना जा सकता है कि हेमन्त सरकार की योजनाएं धरातल पर कितनी कारगर हो सकती है. जो लाभुकों को प्रभावित करते हुए उनकी आर्थिक जीवन को नयी दिशा दे रही है. 

सरकार की संस्था जेएसएलपीएस से जुड़कर लोहरदगा जिले के सुदूरवर्ती गांव आकाशी की  37 वर्षीय सूरजमनी उरांव एक स्वावलंबी किसान बन आर्थिक स्वावलंबन की राह पकड़ बढ़ चली है. सूरजमनी का पूरा परिवार कृषि पर आश्रित है. पानी की किल्लत की वजह से कृषि कार्य की राहों में उनके समक्ष काफी अड़चने थीं. उपज कम होती थी और जिससे बमुश्किल गुजारा होता था. बेटी-रोटी, घर-परिवार, बच्चों की पढाई-लिखाई दुश्वार था, दिक्कतों का सामना करना पड़ता था.

जेएसएलपीएस से मिला प्रशिक्षण, उद्यान विभाग से बिचड़ा

दसवीं तक पढ़ी सूरजमनी को जेएसएलपीएस से जुड़ने का मौका मिला. जेएसएलपीएस से फूलों की खेती का सूरजमनी को प्रशिक्षण मिला. प्रशिक्षण के साथ उद्यान विभाग की मदद ओर से उसे गेंदा फूलों के प्रजातियों का बिचड़ा दिया गया. पति बंदे उरांव के साथ उसने 60 डिसमिल की जमीन पर गेंदा फूल की खेती की. फूलों की खेती से सूरजमनी की आर्थिक स्थिति बेहतर होने लगी. अब वह प्रति कट्ठा फूलों की खेती से 4-5 हजार रुपये की आय अर्जित कर रही है. आय में वृद्धि होने से उसका जीवन स्तर ऊंचा उठा है. परिवार की आर्थिक संकट दूर हुई है और खुशहाली ने उसके घर में डेरा डाल लिया है. 

सूरजमनी के जीवन में यह बदलाव सरकार की कारगर कल्याणकारी योजनाओं की बदौलत से ही संभव हुआ है. अब उसके पास कई गांवों के व्यापारी एवं ग्रामीण फूल की खरीदारी करने आते हैं. सूरजमनी के खेतों के फूल लोहरदगा, भंडरा, कैरो, नगजुआ समेत कई जगह के खुदरा बिक्रेता के पास पहुंचते है. मंदिरों के गलियारे ही ताज़ी फूलों के सुगंध से नहीं सुगन्धित होते, शादी मंडप भी सुगन्धित होते हैं. 

प्रति कट्ठा दो हजार का खर्च, मुनाफा 4-5 हजार रुपए  

सूरजमनी कहती हैं कि फूल की खेती पर प्रति कट्ठा दो हजार का खर्च होता है. बदले में 4-5 हजार रूपये का मुनाफा होता है. उसने कहा कि मेहनत व लगन से काम करने से सफलता अवश्य मिलती है. सरकार द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित हैं, स्वरोजगार से जुड़ने का अवसर मिलता है. उसने कहा कि जिंदगी में यह बदलाव नहीं आता अगर वह सरकार की इस योजना से नहीं जुड़ी होती.

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