सनातन परम्परा जम्बूद्वीप से लेकर वर्तमान भारत का प्रतिनिधि 

सनातन परम्परा : जम्बूद्वीप से लेकर भारत तक की समृद्ध संस्कृति का प्रतिनिधि है. सर्वप्रथम यह आदिवासियत का फ़िल्टर रूप, बुद्ध के सिद्धांत के रूप में सामने आया. फिर मनुवाद के अक्स में जातिप्रथा-पुरुष, मानसिकता का समावेश हुआ. 

रांची : भारतीय सनातन परम्परा पहले जम्बूद्वीप फिर भारत की प्राचीन-समृद्ध इतिहास और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है. यह पहले आदिवासियत की छाप लिए फ़िल्टर हो बुद्ध के सिद्धांत के रूप में सामने आया, जैन मार्ग के रूप में सामने आया. ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार जिसका प्रतिनिधत्व सम्राट असोक ने पूरी दुनिया में विश्वगुरु के ताज के साथ किया. बाद में इसमें मनुस्मृति के अक्स में समाज में जाति-उपजाति, पुरुषवादी मानसिकता जैसे कई विनाशकारी कुत्सित सोच पोषित हुआ. जिसके तले अशिक्षा के अक्स में भारत को गौरवान्वित करने वाली विश्वगुरु की छाप धूमिल हुई. 

सनातन परम्परा जम्बूद्वीप से लेकर वर्तमान भारत का प्रतिनिधि 

भारतीय सनातन परम्परा के मूल सिद्धांतों में बुद्ध की सिद्धांत और शिक्षाएं ही सर्वोपरी है. क्योंकि यह मनुष्यों के बीच समानता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है. जिसकी गाढ़ी लकीर आधुनिक भारत में साहूजी महराज, पेरियार, फूले, गुरुनानक देव, कबीर, रैदास से होते हुए बाबा साहेब अम्बेडकर के संविधान और संघर्ष तक में दिखता है. यहाँ तक मनुवाद सनातन परम्परा को भी धम्म के अक्स में धर्म को भी इसी भाव में आगे रखना पड़ता है. जहां वह जीवन जीने के बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग के कला से जुड़ने का असफल प्रयास करता तो है लेकिन जातिप्रथा ढाई कदम में उसका पोल खोल देता है.  

ज्ञात हो, वर्तमान में मोदी और आरएसएस की सत्ता के नीतियों के अक्स में यह वैचारिक द्वंद्व और गहराता दिखता है. जिसकी गवाही दलित प्रताड़ना, मणिपुर समेत देश के तमाम क्षेत्र में आदिवासी प्रताड़ना, एससी-एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार हनन स्पष्ट तौर पर देता है. ज्ञात हो, इसी वैचारिक संघर्ष के अक्स में वर्तमान में लोकतंत्र के प्रहरियों ने राजनीतिक तौर पर इंडिया गठबन्ध बनाया है. लेकिन उनका यह संघर्ष तभी आगे बढ़ेगा जब उनका ईमानदार प्रयास देश के ग़रीब और आरक्षित वर्ग की मंशा से समान एका बनाएगा. 

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