बाबूलाल बताएं उन्होंने संघ के वनवासी थ्योरी को क्यों चुना?

झारखण्ड : आदिवासी पहचान मिटाने वाली संघ के वनवासी थ्योरी को अपनाने वाले बाबूलाल का कहना ‘आदिवासियत श्रद्धा-आस्था का विषय’. केवल चुनावी स्टंट भर ही हो सकता है!

रांची : आदिवासी की पहचान ही प्रकृति से उनकी आत्मिक जुड़ाव हो. जल, जंगल-ज़मीन से जुड़ाव ही उनकी जीवन शैली हो. वहां केन्द्रीय शासन का एक सच प्रकृति तबाही जुड़ता हो. एक तरफ लूट की मौजूदा व्यवस्था में पूरी मानव जाति पर अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया हो. दूसरी तरफ सामंती वयवस्था अपने उद्गम आरएसएस की थ्योरी वनवासी के अक्स में आदिवासियों को आदिवासी मानने से इनकार करने का सच लिए हो, तो उनकी आदिवासियत आस्था का सच समझा जा सकता है.

बाबूलाल वनवासी क्यों हुए

झारखण्ड समेत देश के सभी आदिवासी वर्ग अपनी संवैधानिक पहचान को लेकर दशकों से संघर्षरत हैं. झारखण्ड में, इस मुद्दा के आसरे बीजेपी कई दफा सरकार में आई. लेकिन आदिवासी वर्ग की मुट्ठी न केवल खाली रही, इन्हें अपने सुरक्षा कवच CNT/SPT पर साजिशन हमला झेलना पड़ा. पूर्व आदिवासी सीएम हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में विशेष सत्र के आसरे सरना-आदिवासी धर्म कोड सदन में पारित कर केंद्र भेजा गया. लेकिन विधेयक का राजभवन से लौटये जाने का सच इनके सामने हो.

यह कुकृत्य सामन्तवाद के द्वारा बाबूलाल मरांडी, अमर बाउरी और सुदेश महतो जैसे झारखंडी चेहरे को आगे कर हुए हों. मौकापरस्त का सच लिए तमाम परिस्थितियों में यदि संघ के वनवासी थ्योरी को अपनाने वाले बाबूलाल मरांडी कहे कि आदिवासियत उनके लिए श्रद्धा-आस्था का विषय है. तो क्या उनकी मंशा स्पष्ट नहीं समझी जा सकती है? क्या आदिवासी को यह मान लेना चाहिए कि बिना संविधान, CNT/SPT, आदिवासी कोड के और वनवासी के अक्स में उनकी पहचान सुरक्षित है. 

ओडिशा के मयूरभंज में दिए गए कल्पना सोरेन के वक्तव्य में जवाब 

ओडिशा के मयूरभंज में झामुमो से INDIA गठबंधन की उम्मीदवार अंजनी सोरेन के नामांकन सभा में स्टार प्रचारक कल्पना सोरेन के संबोधन में इसका जवाब टटोला जा सकता है. उनका स्पष्ट कहना कि भाजपा-बीजेडी आदिवासियों के वोट से सदन पहुंचते हैं लेकिन वह बहुजनों की आवाज नहीं बनते. भाजपा आदिवासियों को आदिवासी तक नहीं समझती, उन्हें वनवासी बोलती है. जो दर्शाता है कि भाजपा को आदिवासी पहचान से ही चिढ़ है. 

उनका कहना कि आदिवासियों के पुरुखों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने महाजनों के अत्याचार के खिलाफ विद्रोह किया. आदिवासी बाहुल्य अलग झारखण्ड राज्य के लिए आंदोलन की. लेकिन, आज एक आदिवासी पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन को उसी केन्द्रीय सत्ता ने चुनाव के बीच षड्यंत्रपूर्वक जेल में डाला दिया है. मसलन, ऐसे में, झारखण्ड में बीजेपी के अगुवा बाबूलाल मरांडी के वक्तव्य को महज चुनावी स्टंट से अधिक कुछ और कैसे माना जा सकता है.

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