तमाम सामंती षड्यंत्रों के बावजूद भी साहेब अगर हिन्दू-मुसलमान, जाति-पाती, रंग-भेद जैसे मुद्दाराहित बातों में देश को उलझाए जनहित मुद्दों की बात जरुरी है.
रांची : बीजेपी का फ़ासीवादी-सामंतवादी घिनौना घोर स्त्री विरोधी चेहरा एक बार फ़िर सरे मंच देश के समक्ष बेनकाब हुआ है. इस बार वह भयानक चेहरा स्वयं देश के मुखिया, संघ प्रचारक या प्रधानसेवक के रूप में सामने आया है. जिसके जद में एक आदिवासी महामहिम, राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का है. अबतक सामंतवाद का हथियार जातीय था, लेकिन अब वह अंग्रेजों की भांति रंग-भेदी हो चला है. जो एक सामन्ती तानाशाह का सत्ता तक पहुँचने की असफल कवायद की झलक भर है.
प्रधानसेवक के 10 वर्षीय कार्यकाल में बीजेपी केवल भ्रष्टाचारियों की ही नहीं बलात्कारियों की भी शरणस्थली के रूप में उभरी है. जिसके अक्स में बड़े भाजपाई नेता और उसके सहयोगी नेताओं का स्त्री विरोधी चेहरा सामने आया है. इन्हीं के डबल इंजन सरकार में मणिपुर की शर्मनाक तस्वीर ने देश को शर्मशार किया. इनके नेता गोलवलकर की ही सोच हो, बलात्कार का राजनीतिक हिंसा के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल होना चाहिए! तो चिन्मयानन्द, कुलदीप सिंह सेंगर, ब्रजभूषण, जैसे चेहरे आश्चर्य नहीं हो सकते.
तमाम त्रासदिय परिस्थियों के बीच देश के आदिवासी वोटरों को भरमाने हेतु झारखण्ड के पूर्व सीएम हेमन्त सोरेन को साजिशन जेल में ठूस दे. पूर्व सीएम सदन में स्पष्ट कहे कि उनकी गिरफ्तारी में कहीं ना कहीं राजभवन भी हिस्सेदार है. और जिसके अक्स में कल्पना सोरेन को राजनितिक मैदान में परिवार, राज्य व देश के संविधान रक्षण में तानाशाह के खिलाफ मैदान में उतरना पड़े. फिर भी तानाशाह को जीत की आस न दिखे.
मजबूरन उस तानशाह को महामहिम के चेहरे के ओट के पिछे चिप रंग-भेद का शाजिस भरे मंच से करना पड़े तो बीजेपी की सामाज के प्रति काली सोच समझी जा सकती है. ऐसे में देश का फर्ज बन जाता है कि उस अपनी मुद्दों की बात अडिग रहे. और सत्ता और उसके नुमाइंदे के आखो में आँखे डाल अपनी मुद्दों और भविष्य की बात लगातार करनी चाहिए. तभी देश के संविधान को सामन्ती मुसीबत से बचाया जा सकता है.