दलित-आदिवासी महिलाओं का उत्पीड़न मनुवादी विचारधारा में ही है निहित

शायद यहीं वजह है कि मनुवादी विचारधारा की नींव पर खड़ी संघ व भाजपा, के नेता-कार्यकर्ता व करीबी, दलित-आदिवासी महिलाओं का उत्पीडन करने से नहीं चुकते 

भाजपा नेता कार्यकर्ता आखिर दलित-आदिवासी महिलाओं का उत्पीडन करने से क्यों नहीं चुकते

मनुवादी विचारधारा की नींव पर खड़ी संघ व भाजपा, के नेता-कार्यकर्ता व करीबी, दलित-आदिवासी महिलाओं का उत्पीडन करने से आखिर क्यों नहीं चुकते हैं? इसका जवाब गोलवरकर के विचार स्वयं देते हैं. गोलवलकर ऐसे समाज के पक्षधर रहें जिसमें शूद्रों (आज की दलित-आदिवासी और ओबीसी जातियाँ) हिन्दू समाज के पैर हों अर्थात निचले पायदान पर रहने के लिए अभिशप्त हैं. उनके लिए बराबरी का कोई अर्थ न हो. समाज में बराबरी की जगह पदानुक्रम की उसी पुरानी- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वाली व्यवस्था के पक्ष में गोलवलकर खड़े हैं. गोलवलकर के लिए समाज में जातिवाद और अशिक्षा जैसी बुराइयों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, वे महज़ एक उन्मादी हिन्दू राष्ट्र चाहते हैं. 

अपनी इस बात के समर्थन में गोलवलकर कहते हैं: “महाभारत, हर्षवर्धन, या पुलकेशी के समय को देखिये, जाति आदि जैसी सभी तथाकथित बुराइयाँ उन दिनों भी आज से कम नहीं थीं और इसके बावजूद हम गौरवशाली विजेता राष्ट्र थे. क्या जाति, अशिक्षा आदि के बन्धन तब आज से कम कठोर थे जब शिवाजी के नेतृत्व में हिंदू राष्ट्र का महान उन्नयन हुआ था? नहीं ये वे चीज़ें नहीं हैं जो हमारी राह का रोड़ा हैं” (गोलवलकर, ‘वी आर अवर नेशनहुड डिफाईन्ड’ भारत पब्लिकेशन, नागपुर, 1939 का हिन्दी अनुवाद ‘हम या हमारी राष्ट्रीयता की परिभाषा’ पृष्ठ 161)

गोलवरकर को सामाजिक बुराइयों में भी दिखती थी महानता 

जब भगतसिंह जैसे क्रान्तिकारी व दूसरे नेता अछूत समस्या, जातिवाद, स्त्रियों की दोयम स्थिति, अशिक्षा आदि सामाजिक बुराइयों को भारतीय समाज का शत्रु मान रहे थे. तो वहीं संघ के गोलवलकर को देश में कोई सामाजिक बुराई नजर नहीं आती थी. क्योंकि ब्राह्मणवादी मानसिकता से भरे गोलवलकर को हर तरफ महानता ही दिख रही थी. शहीदों के विचारों के खिलाफ जाते हुए वे कहते हैं:

“हमें यह देखकर दुःख होता है कि कैसे हम इस राष्ट्रविरोधी काम में अपनी ऊर्जा बर्बाद कर रहे हैं और दोष सामाजिक ढाँचे तथा दूसरी ऐसी चीजों पर मढ़ रहे हैं जिनका राष्ट्रीय पुनर्जागरण से कोई लेना-देना नहीं है… हम एक बार फिर इस बात को रेखांकित करना चाहतें हैं कि हिन्दू सामाजिक ढाँचे की कोई ऐसी तथाकथित कमी नहीं है, जो हमें अपना प्राचीन गौरव प्राप्त करने से रोक रही है।” (वहीं, पृष्ठ  162-163)

आज मनुवादी इतिहास और भाजपा सत्ता के बारे में हर इंसान को यह दिखाई दे रहा है कि कैसे यह विचारधारा समाज का अहित कर रही हैं. गोलवलकर ‘मनुस्मृति’ की प्रशंसा करते हुए उसे लागू करने की वकालत करते रहे हैं. गोलवलकर की भाँति ही वी. डी. सावरकर के मन में भी ‘मनुस्मृति के प्रति बहुत सम्मान’ रहा.

भाजपा की महिला सुरक्षा की बात महज दिखावा

केंद्र की मोदी सत्ता लगातार महिला सुरक्षा की बात! करती रही है. लेकिन, कभी उनके द्वारा अपने नेताओं के कुकृत्यों के लिए ठोस कदम नहीं उठाया गया. झारखंड में भाजपा की पूर्व रघुवर सरकार काल, भजपा के नेता कार्यकर्ता ही प्रधानमंत्री की खिल्ली उड़ाते रहे. उस दौर में भी झारखंड प्रदेश में ऐसे बीजेपी नेताओं की लंबी फ़ेहरिस्त रही, जिन पर दलित-आदिवासी महिलाओं समेत अन्य महिलाओं के साथ उत्पीड़न व यौन शौषण के आरोप लगते रहे. इस फेहरिस्त में वैसे नेता भी शामिल रहे, जो उम्र की एक रचनात्मक दहलीज पार कर चूके थे.

भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी के पीए सुनील तिवारी पर लगा दुष्कर्म का आरोप

ताजा उदाहरण, कडरू के रहनेवाले सुनील तिवारी, स्वतंत्र पत्रकार व भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी के तथाकथित सलाहकार, करीबी सम्बन्ध है. इनके खिलाफ युवती से दुष्कर्म और एससीएसटी एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ है. युवती सुनील तिवारी के घर में काम करनेवाली बतायी जाती है. जानकारी के अनुसार, पीड़िता मूल रूप से खूंटी जिला की रहने वाली बतायी जाती है. पुलिस के अनुसार वह पूर्व में सुनील तिवारी के घर में काम करती थी. इसी दौरान सुनील तिवारी ने जबरन उसके साथ गलत काम किया था. घटना के बाद वह डर के कारण मामले को दबाए रखी और काम करना छोड़ अपने घर चली गयी. 

हालांकि, अभी तक इस मामले में बाबूलाल मरांडी का कोई बयान नहीं आया है. अब देखना यह है कि विपक्षी नेताओं पर लगे झूठे आरोप पर प्रखरता से बोलने वाले बाबूलाल, अपने इस करीबी के सम्बन्ध में क्या कुछ कहते हैं. देर शाम उनका बयान आ सकता है.

विपक्ष ने नारा भी दिया था , ‘बेटी पढ़ाओ और भाजपा के नेता-विधायकों से बचाओ’  

करीब 2 साल पहले चले #MeToo कैंपेन के तहत महिला उत्पीड़न और यौन शौषण के जद में केंद्र के कई भाजपा नेता आये. आरोपों के बाद राष्ट्रीय और प्रदेश के विपक्षी नेताओं ने मोदी सरकार पर “बेटी बचाओ बेटी पढाओ” अभियान पर तंज कसते हुए नारा दिया था – ‘बेटी पढ़ाओ और बीजेपी के नेता-विधायकों से बेटी बचाओ’.

झारखंड में आरोप लगने वाले नेताओं की है लंबी फ़ेरहिस्त – पांकी के विधायक शशिभूषण पर ऑक्सफ़ोर्ड स्कूल की वार्डन सुचित्रा मिश्रा की हत्या का आरोप लगा था.विधानसभा चुनाव के ठीक पहले वे बीजेपी में शामिल हुए थे. पांकी सीट से उन्होंने चुनाव तो जीता, लेकिन उनके द्वारा  प्रदेश भाजपा मुख्यालय में पीड़िता सुचित्रा मिश्रा के दोनों बेटे के साथ किए जाने वाले मारपीट की घटना का काफी निंदा रही.

बाघमारा विधायक पर पार्टी नेत्री से ही अश्लीलता का आरोप – बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो पर तो उनके ही पार्टी महिला कार्यकर्ता ने यौन उत्पीड़न के प्रयास का आरोप लगाया था.पीड़िता ने अपने आवेदन में कहा था कि उन्हें पार्टी कार्यक्रम का हवाला देकर हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, टुंडी के एक गेस्ट हाउस पर बुलाया गया, जहां ढुल्लू महतो ने उसे पकड़ लिया और अश्लील हरकत करने लगे.

पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पर बाल विवाह का है आरोप – झारखंड बीजेपी इकाई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी पर बाल विवाह अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया. आरोप था कि उन्होंने अपने बेटे की शादी 11 साल की बच्ची से करवाई थी. बाद में ताला मरांडी पर बाल विवाह निषेध कानून की धाराओं के तहत याचिका दर्ज हुई थी.

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