आदिवासी हितों के प्रहरी हेमंत ने बताया,“त्रासदी झेलने वाला ही समझ सकता है दर्द”

सदियों से व्याप्त आदिवासी त्रासदी की बात अंतरराष्ट्रीय संस्थान “हार्वर्ड” कांफ्रेंस के मंच पर उठाने वाले पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 

विधानसभा पटल से सरना धर्म कोड पास करा चुप नहीं बैठे मुख्यमंत्री, केंद्र से भी इसपर गंभीरता से विचार करने को कर रहे हैं गुजारिश 

रांची। “पॉलिसी में तो आदिवासियों का जिक्र होता है, लेकिन ज़मीनी हकीक़त ठीक विपरित होते है”। झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन यूँ ही नहीं कहते है…। आन्दोलनों में अग्रीन समाज को आज़ादी के बाद देश के संविधान में अक्षरों के रूप में जगह तो मिले, लेकिन अधिकार का सच हासिये का अंतिम छोर ही हो। आदिवासियत दोहन के मद्देनज़र पलायन व गरीबी जैसी त्रासदी ही इस समुदाय के जीवन का आखिर सच बन जाए। और हेमंत सोरेन की पहचान आदिवासी समाज से हो, उनका व्यक्तित्व नज़दीकी तौर पर इस सच से गुजरे। तो वह न केवल त्रासदी बल्कि कारण भी समझ सकते हैं। 

बीते शनिवार को अंतरराष्ट्रीय संस्थान “हार्वर्ड” के ऑनलाइन कांफ्रेंस में, सदियों से व्याप्त आदिवासी त्रासदी के अक्स में श्री सोरेन के शब्द दर्द के रूप में छलके, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। और आजादी के बाद से यह पहला मौका भी हो सकता है। जब अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थान पर किसी मुख्यमंत्री द्वारा आदिवासी हितों के मुद्दों पर बात हुई। लुप्त होती आदिवासियत पहलुओं के त्रासदी दायक सच से देश-दुनिया रू-ब-रु हुई। ज्ञात हो शनिवार को ही मुख्यमंत्री ने लंबे समय से चली आ रही आदिवासी की मांग सरना कोड पर केंद्र से विचार करने की गुज़ारिश भी की। जो दर्शाता है कि सदन में प्रस्ताव पारित कर चुप नहीं हुए, बल्कि मांग के पक्ष में मजबूती से खड़े भी हैं। 

हेमंत सरकार झारखंड में आदिवासियों की उन्नति के लिए लायी है कई कल्याणकारी योजनाएं 

आदिवासियत प्रहरी, जन नेता हेमन्त सोरेन बतौर मुख्यमंत्री जब कांफ्रेंस के दौरान आदिवासियों की की वर्तमान स्थिति पर गंभीर चिंता जताते हैं। जहाँ जिक्र में संविधान में प्राप्त संरक्षण के हक के बावजूद मौजूदा दौर में भी आदिवासियों को देश के मुख्यधारा में जगह नहीं मिलने सच उभरता है। एक मुख्यमंत्री होने के बावजूद राह आसान नहीं होने जैसे सच अक जिक्र करने से नहीं चूकते। तो समाज के त्रासदी की गंभीर हकीक़त को समझा जा सकता है।

यही से उस सवाल को भी समझा जा सकता है। जहाँ झारखंड के सत्ता पर, 14 वर्षों तक काबिज रहे उस भाजपा मानसिकता पर क्यों लूटिया डूबोने का इलज़ाम लगते रहे। और अब जब सत्ता में नहीं हैं तो केंद्र पर भेद-भाव का आरोप लग रहे हैं। क्यों हेमंत सोरेन कहते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में आदिवासी समाज का सतत विकास हो, पूरे देश में झारखंड के आदिवासियों की पहचान कायम रहे। और इस दिशा में सरकार का प्रयास जारी रहेगा। ज्ञात हो झारखंड में आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने हेतु, हेमंत सरकार कई योजना चला रही है। 

  1. आदिवासी बच्चों को विदेश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई का अवसर प्रदान करने की पहल हुई।
  2. हड़िया बेचने वाली महिलाओं को फूलो झानो योजना से जोड़ सम्मान के साथ आत्मनिर्भर बनाने की पहल हुई।
  3. अहिंसा प्रसारक टाना भगतों के बच्चों को शिक्षा व आवास योजना से जोड़ने की पहल हुई।
  4. सोना सोबरन धोती साड़ी योजना की शुरुआत फिर से हुई।
  5. प्रमुखता से ट्राइबल यूनिवर्सिटी बनाने का निर्णय हुआ। 

सरना धर्म कोड पर केवल प्रस्ताव पास कर चुप नहीं बैठेना चाहते हेमंत सोरेन 

ज्ञात हो कि हेमंत सोरेन के प्रयासों से बीते बरस नवंबर माह में आदिवासी समाज की लम्बी सरना धर्म कोड की मांग का प्रस्ताव झारखंड विधानसभा से पारित हुआ। लेकिन, बीते शनिवार को जिस अपेक्षा से उन्होंने मांग से सम्बन्धित प्रस्ताव पर अपनी बात, नीति आयोग की गवर्निंग कॉउन्सिल 2021 की वर्चुअल बैठक में रखी। साफ़ है कि वह वह चुप नहीं बैठेंगे। वह आदिवासी समाज की महान सभ्यता, संस्कृति, व्यवस्था के लिए आगे भी लड़ेंगे। जो आदिवासियों को जनगणना में उनकी  जगह स्थापित करेग। उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार इस पर सहानुभूति रखते हुए शीघ्र विचार करेगी।

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