मनरेगा बजट में 38500 करोड़ रुपए की कटौती मजदूरों के लिए नया संकट

मनरेगा बजट के संशोधित अनुमान, 111500 करोड़ की तुलना में 73,000 करोड़ आवंटन, रोजगार के क्षेत्र में मजदूर-किसान के समक्ष उतपन्न करेगा नया संकट 

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना या कहें स्किल इंडिया के अक्स में मोदी लगभग हर मंच से कहे कि इसके जरीये देश में अब रोजगार कोई समस्या नहीं रहेगी। लेकिन, खेती से लेकर फूड इंडस्ट्री, इलेक्ट्रोनिक्स से लेकर जेवेलरी स्कील तक के कसौटी पर सच अधूरा देखे। जिसका सच खुद सरकार की साइट ही बयान करे कि स्कील इंडिया से 10 फीसदी को नौकरी मिली। तो आप क्या कहेंगे…?

तो त्रासदी में, रोजगार के लिहाज से लोग अगली तस्वीर मनरेगा में ही देखेंगे। क्योंकि मनरेगा ही वह तस्वीर हो सकती है जिसके अक्स में झारखंड सरकार 890 लाख मानव दिवस सृजन कर गरीब राज्य में मजदूरों की भूख को थामे। बावजूद इसके भी हेमंत सरकार का सवाल मजदूरी दर व मानव दिवस में बढौतरी के मद्देनजर मनरेगा बजट बढ़ोतरी का केंद्र से हो। तो मनरेगा मजदूरों के हालात समझे कि कितनी विकट हैं। और तमाम परिस्थितियों के बीच मनरेगा में बढ़ती मांग के मद्देनजर केंद्र का सच मनरेगा बजट में 38,500 करोड़ रुपए की कटौती के रूप में उभरे। तो मजदूरों के प्रति केंद्र की मंशा का सच समझा जा सकता है। 

देश का सच – कोरोना त्रासदी में मनरेगा में रोजगार बढ़ा

आंकडे देश का सच उभारे कि कोरोना त्रासदी में मनरेगा में रोजगार बढ़ी है। और इसके अक्स में राज्य सरकारें उम्मीद पाले कि मोदी सरकार का मनरेगा के कैनवास में बड़े बजट का ऐलान होगा। मगर आम बजट में संशोधित अनुमान, 111500 करोड़ की तुलना में 73,000 करोड़, जो 34.5 प्रतिशत कम आवंटित हो। तो क्या कहेंगे…  

दिसम्बर के प्रकाशित रिपोर्ट देखे तो हैरत होगी कि देश ऐसी परिस्थिति में आ खड़ा हुआ, जहाँ 97 लाख ग्रामीण परिवारों ने मनरेगा में काम मांगे, लेकिन एक भी दिन काम नहीं मिल सका। 45.6 लाख परिवारों के आवेदन करने के बावजूद जॉब कार्ड नहीं बन सके। ऐसी परिस्थियों में आवंटित बजट में बड़ी कटौती बड़ा सवाल खड़ा कर सकता है कि केंद्र ग्रामीण रोजगार संकट के मद्देनजर राज्य सरकारों की अनदेखी की है। 

मसलन, मनरेगा जिस सोच के साथ देश में लागू हुआ। वह सोच मोदी सत्ता में जिस तेजी से लड़खड़ा रहा है। जो देश में अन्धकार घना कर सकता है। ग्रामीण भारत में रोजगार का नया संकट पैदा हो सकता है और असर के तौर पर किसान-मजदूर के सामने आत्महत्या का संकट गहरा सकता है।

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