सीएम हेमन्त सोरेन के प्रयास प्रदेश को आर्थिक मजबूती की और ले जाती है लेकिन इत्तेफाकन वह प्रयास भाजपा के जनविरोधी विचारधारा से टकराती है. और उसके पार ही सभी वर्गों का हित निहित है. ऐसे में भाजपा को एक आदिवासी सीएम कैसे बर्दास्त हो सकता है
राँची : झारखण्ड में, मौजूदा दौर में सीएम हेमन्त सोरेन का अर्थ न केवल झारखण्ड के सभी वर्गों के अधिकार संरक्षण का प्रयास है. 21 वर्षों के इतिहास में बाहरी मानसिकता के छल से उत्पन्न तमाम समस्याओं का स्थायी हल भी है. और यही वह आखिरी जननेता भी हो सकते, आखिरी आस भी हो सकते हैं जिसके पुरुषार्थ में झारखण्ड जैसे संसाधन संपन्न व महान परम्परा व सांस्कृतिक संगीत के लय-ताल पर राज्य का विकास व भविष्य ठुमके मार सकता है. और झारखण्ड की इसी आखिरी आस ख़त्म करने की शाजिश व प्रयास लगातार भाजपा जैसे बाहरी मानसिकता की बैसाखी पर खडी दल हमेशा से करती रही है.
झारखण्ड में हेमन्त सोरेन जैसे आदिवासी मुख्यमंत्री को टारगेट क्यों? आखिर भाजपा आगले विधानसभा चुनाव का इन्तजार क्यों नहीं करना चाहती?
देश के प्राकृतिक संसाधन प्रदेश झारखण्ड में हेमन्त सोरेन जैसे आदिवासी मुख्यमंत्री सह जननेता का मौजूदा दौर में वास्तविक अर्थ – राज्य के सभी वर्गों की सभी सरकारी-गैर सरकारी नौकरियों में 75% का आरक्षण की मजबूत अभिव्यक्ति. विस्थापन व रैयतों को एक करोड़ का ठेका बिना कोलेटरल. झारखण्ड के गरीब मूलवासियों के लिए सर्वजन पेंशन. आदिवासियों की पहचान सरना धर्म कोड. टाना भगतों के विचारधार व उनकी समस्या का तारनहार. जेपीएससी परीक्षा रिजल्ट.
राज्य के युवाओं के खून में बसे खेल को तराशना. आदिवासी, दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक व तमाम गरीबों को विदेश में पढ़ाई का सपना. रोज़गार सृजन योजना, कृषि ऋण माफी, अपने ही भूमि पर विस्थापितों को वनपट्टा. राज्य के अति गरीब माँ-बहनों समेत तमाम गरीबों को धोती-साड़ी जैसे योजना के अंतर्गत तन ढकने के लिए कपडा मुहैया करना. फूलो-झानो जैसे प्रयास में महिलाओं को अपनी सशक्तिकरण की आस व शिक्षा-कोचीन जैसे ज़मीनी सच के प्रखर वकील-प्रहरी के रूप में सामने आये मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन. और बाजपा शासन में देखा गया है कि वह शिक्षा, गरीबीमुक्ति व् महिला सशक्तिकरण से दूर भागती है. ऐसे में हेमन्त सोरेन वह नाम है जो भाजपा को चुनौती देती है.
सीएम के प्रयास प्रदेश के सभी वर्गों को आर्थिक मजबूती की और ले जाती है लेकिन इत्तेफाकन ये रास्ते भाजपा के मनुवादी-पुरुषवादी विचारधारा से टकरा रही है. ऐसे में भाजपा एक आदिवासी मुख्यमंत्री को कैसे बर्दास्त कर सकती है
झारखण्ड जैसे प्रदेश के लिए यही वह तमाम रास्ते हो सकते हैं जो प्रदेश के सभी वर्गों को आर्थिक मजबूती देकर स्वावलंबी बना सकते हैं. लेकिन इत्तेफाकन यही वह रास्ते व प्रयास भी हैं जो भाजपा के मनुवादी, भ्रमवादी, छलवादी, जातिवादी, पुरुषवादी जैसे विचारधारा से टकरा रही है. और भाजपा के शासन पद्धति के बुनियादी, पुस्तैनी विचारधारा पर कुठाराघात कर रही है. मसलन, भाजपा के वैचारिक आईने में कैसे एक आदिवासी मुख्यमंत्री के कार्य का अक्स उन्हें भा सकता है जो रोज़ उसके शासन पद्धति को चुनौती देती हो..
ज्ञात हो, झारखण्ड में भाजपा द्वारा बाबूलाल मरांडी जैसे आदिवासी चेहरे के आड़ में हेमन्त सरकार को गिराने का कुप्रयास कई बार हुआ है. उपचुनाव में भी भाजपा द्वारा बाबूलाल जी को मुख्यमंत्री का सपना दिखाया गया. जिसके अक्स में बाबूलाल जी ने संवैधानिक लकीरों से इतर सरकार गिरान के सम्बन्ध में कई असंवैधानिक बयान दिए. लिकिन, इस प्रयास में वह खुद ही अपनी नैतिकता गिर बैठे. और झारखण्ड की महान पारम्परा में निहित इमानदारी जैसे विरासत विरासत पर काला धब्बा-दागा लगाया. और ऐसे कई प्रयास हुए. मौजूदा दौर में उनके मौकापरस्त मंशा को समझा जा सकता है.
मसलन, झारखण्ड की सभी वर्गों के मूलवासी-आदिवासी जनता को समझना ही होगा कि बतौर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन महज एक आदिवासी चेहरा ही नहीं बल्कि राज्य के तमाम जनता के आर्थिक स्वावलंबन की आखिरी आस हैं. वह पौधा हैं जिसे पूरे झारखण्ड को अपने विशवास से सींचना होगा. नहीं तो देर हो जायेगी और हम पहले से अधिक घने अँधेरे में खो जायेंगे.