सत्ता के नशे में चूर बीजेपी मेयरों ने जनता को दिया केवल धोखा -भ्रष्टाचार व झूठ की लंबी फेहरिस्त

इन मेयरों की श्रेणी में धनबाद के चंद्रशेखर अग्रवाल रांची की आशा लकड़ा और गिरिडीह के सुनील पासवान प्रमुखता से शामिल है

“दूसरों को दे सदाचार उपदेश”

“ख़ुद करे करप्शन से श्री गणेश”

रांची। उपरोक्त पंक्ति भाजपा के सिद्धांतों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। प्रधानमंत्री सहित देश के तमाम बड़े नेता इस बात को हर जगह दोहराते है कि विपक्ष आज देश का विकास नहीं चाहता है। लेकिन जब वहीं विपक्ष भाजपा नेताओं पर झूठ के सहारे राजनीति करने और भ्रष्टाचार में डूबे होने का आरोप लगाते है, तो मानो ऐसे नेताओं को मिर्च लग जाए। पूरे देश के भाजपा नेताओं की कमोवेश स्थिति कुछ इसी तरह की है। लेकिन झारखंड के भाजपा नेता तो शायद भ्रष्टाचार करने, झूठ बोलने सहित अपने नीजि हितों को प्राथमिकता में पीएचडी का कोर्स कर बैठे है। ऐसे में नेताओं में पांच साल विकास का काम कर चूकने का दावा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, उनके कैबिनेट में मंत्री रहे सीपी सिंह, लुइस मरांडी प्रमुखता से शामिल हैं। लेकिन अभी इस कड़ी में ताजा मामले के तौर पर भाजपा के तीन मेयर चर्चा का विषय बने हुए हैं। इन मेयरों में धनबाद के चंद्रशेखर अग्रवाल, रांची की आशा लकड़ा व गिरीडीह के पूर्व मेयर सुनील पासवान चर्चा का केंद्र बिंदु बने हैं। 

रघुवर के चहेते चंद्रशेखऱ अग्रवाल पर हैं 200 करोड़ घोटाले का आरोप

पूर्व सीएम के चहेते माने जाने वाले धनबाद के मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल और उनके सहयोगियों पर करीब 200 करोड़ रूपये के घोटाले पर आरोप लग चूका है। 14वें वित्त आयोग के तहत धनबाद नगर निगम अंतर्गत पहले से बेहतर पीसीसी सड़कों को तोड़ को नये सड़क बनाने की पहल हुई। बाद में करीब 13 सड़कों के बनाने में एवज में प्राक्कलित राशि को चंद्रशेखर अग्रवाल ने कई गुणा बढ़ा कर फिर से सड़क का निर्माण करा दिया गया. साथ ही परामर्शी एजेंसी मास एडं वॉयड को परामर्शी शुल्क के रूप में बढ़ी हुई राशि दी गयी. जो कि एक मोटी रकम करीब 200 करोड़ रूपये थी. रकम की 50 प्रतिशत राशि मेयर द्वारा वसूले जाने का आरोप है। जिन पीसीसी सड़कों का निर्माण कराया गया है, उसकी गुणवत्ता निम्नस्तरीय है.

रांची मेयर ने विकास से ज्यादा अपने निजी हितों को दी प्रमुखता

भाजपा के टिकट पर ही रांची की मेयर बनी आशा लकड़ा ने तो राजधानी के विकास से ज्यादा अपने नीजि हितों को काफी प्रमुखता दी थी। रघुवर सरकार के पांच साल के दौरान कौन सी कंपनी रांची नगर निगम का काम देखेगी, कंपनी का काम के प्रति रवैया क्या होगा, इन सब बातों से मेयर ने कभी भी दिलचस्पी नहीं ली। लेकिन जैसे ही राज्य में हेमंत सरकार सत्ता में आयी, तो उन्होंने केवल अपने नीजि हितों के लिए राजस्व वसूल कर रही कंपनी स्पेरो सॉफ्टेक के सर्पोट में आ गयी। दरअसल कंपनी को हटा कर नयी कंपनी के यह काम कराने का फैसला नगर विकास विभाग ने लिया था। बस क्या था कि केवल अपने नीजि हितों को देख मेयर सरकार के विरोध में खड़ी हो गयी। अपने अधिकार क्षेत्रों के हनन होने का बहाना बनाकर उन्होंने हाईकोर्ट में शरण तक ले ली। मामला अभी भी कोर्ट में है, लेकिन मेयर के विरोध के बावजूद नई कंपनी कामं शुरू कर चूकी है। 

झूठे साक्ष पर मेयर बने थे सुनील पासवान, पद भी गया और प्रतिष्ठा भी

झूठ बोलने वाले भाजपा नेताओं के श्रेणी में गिरीडीह के मेयर सुनील पासवान भी कम पीछे नहीं रहे। उन्होंने मेयर बनने के लिए जाति तक का गलत प्रमाण पत्र बनाया। अब चूंकि उनका जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाया गया है। नगर विकास एवं आवास विभाग ने इस आधार पर उन्हें अयोग्य घोषित कर उन्हें पदमुक्त कर दिया है।

मसलन, इन तीनो भाजपा मेयरों की विचित्र गाथा है लेकिन किसी की मजाल जो इनपर ऊँगली उठा दे। मजेदार बात यह है कि तब के जेवीएम सुपीमो बाबूलाल जी ने गलत प्रमाण पत्र को लेकर उस वक़्त भाजपा द्वारा उठाये गए अनैतिक कदम को गलत बताया था। लेकिन, भाजपा मेयर सुनील पासवान पद मुक्त हो जाने के बाद भी हेमंत सरकार के लिए एक शब्द न कहना दर्शाता है कि भाजपा में जाने के बाद उनके विचारों का नैतिक पतन हो चुका है। जब वह सरकार के सच्चे न्याय को सच नहीं कह सकते तो अन्य मेयरों के भ्रष्टाचार पर बोलाना निस्संदेह उनके लिए दूर की कोडी हो सकती है।

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