15 नवंबर, राज्य स्थापना दिवस के पूर्व हेमंत सोरेन आदिवासियों की पहचान बरकरार रखने के लिए बुलायेंगे विशेष सत्र
सरना धर्म झारखंड के आदिवासियों के आदि धर्म में से एक है। जब आदिकाल में आदिवासी जंगलों में बसते थे तो वह न केवल प्रकृति के सारे गुण और नियम को समझते थे बल्कि प्रकृति के नियम पर चलते भी थे। जो आज भी कायम है, आदिवासियों की वही पूजा पद्धति व परम्परा आज भी विद्यमान है। सरना धर्म में पेड़, पौधे, पहाड़ इत्यादि जैसे प्राकृतिक सम्पदा की पूजा की जाती है।
सरना धर्म क्या है और किन मायनों में अन्य धर्मों से अलग है? आदर्श और दर्शन क्या है ? सरना एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जो लोक व्यवहार के साथ जुडा है। धर्म यहां अलग से विशेष आयोजित कर्मकाण्डीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में गूँथा है। वह घर के चूल्हे, बैल, मुर्गी, पेड़, खेत खलिहान, चांद- सूरज सहित संपूर्ण प्राकृतिक प्रतीकों से सम्बन्ध रखता है।
वह पेड़ काटने के पूर्व पेड़ से क्षमा याचना करता है। गाय बैल बकरियों को जीवन साहचर्य होने के लिए धन्यवाद देता है। पुरखों की निरंतर मार्गदर्शन और आशीर्वाद के लिए भोजन करने या पानी पीने के पूर्व उनका हिस्सा भूमि पर गिरा कर देते हैं। धरती को प्रणाम कर ही खेती-बाड़ी के कार्य शुरू करते हैं। लेकिन इनका यह पूजन कहीं से भी रूढ़ नहीं है। मतलब यहां पेड किसी मंदिर, मस्जिद या चर्च की तरह जड़ नहीं जमाती। बल्कि विराट प्रकृति का एक जीवंत प्रतीक है। इसलिए सरना धर्म किसी धार्मिक ग्रंथ और पोथी जैसे खूंटी का मोहताज नहीं।
भाजपा शासन में दस करोड़ आदिवासियों का कोई अपना धर्म नहीं
सवाल है कि क्या दस करोड़ आदिवासी आबादी का कोई अपना धर्म नहीं है? भाजपा सरकार की मानें तो नहीं? क्योंकि जनगणना प्रपत्र में इनके लिए अबतक कोई कॉलम नहीं हैं। विडंबना देखिये देश के सबसे आदि काल के धर्म को हिंदू या ईसाई धर्म में विलोपित कर दिया जाता है। देश भर में अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी यह मांग लंबे समय से की जाती रही है? लेकिन झारखंड में सबसे अधिक समय भाजपा का शासन होने के बावजूद इन्हें इनका अधिकार नहीं मिला। केवल वोट बैंक की राजनीत में इसका प्रयोग भाजपा द्वारा किया जाता रहा। मजेदार बात यह है कि अर्जुन मुंडा के पास इसी से सम्बंधित मंत्रालय है लेकिन एक शब्द भी कभी सुनने को नहीं मिला।
मसलन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सरना कोड से सम्बंधित बड़ी घोषणाएँ की हैं। उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा है कि 2021 की जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग कॉलम दर्शाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जायेगा। मुख्यमंत्री का कहना है कि आदिवासियों की पहचान बरकरार रखने हेतु सरना धर्म के लिए कॉलम निर्धारण करने की आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने राज्यपाल से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया है। राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि 15 नवंबर को राज्य स्थापना दिवस के पूर्व विधानसभा का विशेष सत्र आहुत कर आगामी जनगणना में आदिवासियों की पहचान व सरना धर्म कोड को लागू करने संबंधी प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेज दिया जाएगा। जिसका अर्थ है कि उन्होंने अब आदिवासियों को उनका पहचान दिलाने के लिए कमर कस ली है