आदिवासी क्या हिन्दू हैं और सरना धर्म जैसा कोई धर्म नहीं ?

भाजपा एवं उसके अनुषांगी दल के ऐसे कई उदाहरण हैं जिस आधार पर कहा जा सकता है कि ये  देश की राजनीति में हमेशा दोहरा खेल खेलते हैं। जैसे झारखंड में हिन्दू-मुसलमान, जाति-पाति, 11 बनाम 13 जिले, बाहरी-भीतरी और अब आदिवासी भाई में फूट डलवाने या गुमराह करने के लिए सरना- क्रिस्चन के बीच ऐसा ही खेल खेल रही है। ताकि आसानी से चुनाव के वक़्त वोट बटोर सके।

झारखंड में भाजपा के कई अनुषांगी दलों में से एक संघ परिवार द्वारा यह स्थापित करने की पुरजोर प्रयास हो रहा है कि केवल सरना धर्मावली ही आदिवासी हैं। एक तरफ तो वे यह कहते हैं कि आदिवासी हिन्दू हैं और सरना जैसा कोई धर्म नहीं, परन्तु जब आदिवासियों द्वारा इसका विरोध होता है तो वे अपनी सुर बदल कर कहने लगते हैं कि सरना और हिन्दू धर्म एक ही है।

झारखंड साझा संस्कृति विरासत के लिए विश्व विख्यात है, जो आदिवासी जीवन-दर्शन की उपज है। जिसका आधार स्वायत्तता, सामुदायिकता, समानता, स्वाभिमान एवं भाई-चारा है। लेकिन इस विरासत पर अब साम्प्रदायिकता का जहर घोला जा चुका है। इस प्रदेश के आदिवासियों ने लोटा-लाठी ले कर आये जिन गैर-आदिवासियों का स्वागत किया था, उन्हीं लोगों ने निजी स्वार्थ हेतु इन आदिवासी समाज को धर्म के नाम पर आपस में पृथक (बाँट) कर दिया।

अब झारखंड में यह आम हो गया कि जो आदिवासी कभी खेती साथ मिलकर करते थे, जंगल साथ जाते थे, एक दूसरे के हांथो में हाथ डाल यहाँ की लोक-संगीत पर बेसुद थिरकते थे, अब वे धर्म का चस्मा आँखों डाल एक दूसरे से नफरत करते है।

बहरहाल, मौलिक प्रश्न यह है कि क्या किसी भी स्थिति में धर्म कभी नस्लीय या जातीय समुदाय के सदस्य होने का आधार हो सकता है? यदि नहीं तो कोई धर्म किसी व्यक्ति के आदिवासी होने का आधार कैसे हो सकता है? ऐसी स्थिति में भाजपा एवं संघ परिवार का अस्तित्व ही सांप्रदायिक हिंसा, झूठ और बैमानी के बुनियाद पर खड़ा प्रतीत नहीं होता! हमें इनके द्वारा फैलाए जा रहे भ्रमों को बेअसर करने के लिए तर्कसंगत लेख-बहस को आगे बढ़ाना होगा। इन माध्यमों से तथ्यों को सामने ला आम लोगों तक सच्चाई रु-ब-रु करना पड़ेगा। यही प्रयास हमारे प्रदेश के इस काले बादल को साफ़ करेगा।    

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