झारखंड स्थापना दिवस झारखंडी बेटों की खाल उतार मना !

झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर पारा शिक्षक संघ को दौड़ा कर पीटा गया 

भाजपा एवं उसके अनुषांगी दलों का फासीवाद समाज का आर्थिक और राजनीतिक दमन है। इसका मुक़ाबला केवल आम जनता के जुझारू आन्दोलन से हीं किया जा सकता है। लेकिन संसदीय राजनीति और आर्थिक लड़ाईयों से इतर, ज़माने पहले तिलांजलि दिए जा चुके-वर्ग संघर्ष की राजनीति, अचानक 18वें झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर राज्य के पारा-शिक्षक संघ के संघर्ष के रूप में उभर कर सामने आया। जिससे सरकार की ज़मीन धंसती नजर आई, हालांकि सरकार ने अपने प्रशासनिक तंत्र के माध्यम से इसकी पूरी व्यवस्था कि थी कि किसी भी सूरत में पारा शिक्षकों की टोली राँची न पहुँच सके और विघ्नरहित राजशाही प्रायोजित कार्यक्रम प्रतिपादित हो सके।

सुबह 4 बजे से ही राज्य के विभिन्न बस पड़ावों से रांची के लिए प्रस्थान करने वाली सरकारी-प्राइवेट वाहनों को बीच राह रोक प्रशासन द्वारा जांच कर तसल्ली की जाने लगी कि किसी भी वाहन में पारा शिक्षक न हों। फिर भी राज्य भर से बड़े मात्र में पारा-शिक्षक छत्तीसगढ़ सरकार की निति को आधार बना सेवा स्थायीकरण व वेतनमान की मांग को लेकर मोरहाबादी मैदान, झारखंड स्थापना दिवस कार्यक्रम स्थल पहुँच गए। नारों के माध्यम से अपनी तकलीफ सरकार के समक्ष बयाँ की परन्तु उनका यह विलाप रघुवर सरकार के अड़ियल रवैये को नहीं डिगा पायी।

इससे दुखी हो पारा शिक्षकों ने नारों के साथ काले झंडे लहरा एवं काले बैलून उड़ा सरकार का विरोध किया। फिर क्या था, सरकार उनके दुःख को समझने के बजाय अपने चिर परिचित अंदाज़ में उनकी आवाज को बंद करने के लिए पुलिसिया तंत्र कर प्रयोग शुरू किया। इनके राज्य की आज़ादी के दिन इनपर आंसू गैस छोड़े गए, लाठियां भांजी गयी। कई घायल हुए। चतरा के महावीर मंडल का सिर फूटा तो धनबाद की अभिलाषा झा का दायाँ पैर। गिरिडीह के इम्तियाज़ आलम के नाक से खून बहना रुक नहीं रहा था। कथित तौर पर एक ने अपनी जान गवाई। बौखलाये पारा शिक्षकों ने जवाब में पत्थरबाज़ी की। देर शाम तक लगभग 2000 पारा शिक्षकों को खदेड़ कर पकड़ा गया। उन्हें गलत साबित करने के लिए सड़क की लाईटों को सरकार गिन रही है कि कितने उनके पत्थर से टूटे और उनपर कौन सी दफा लगाई जा सकती है। सरकार अब उनके उपस्थिति पर रिपोर्ट की मांग की है, जवाब में एकत्रित पारा शिक्षक संघर्ष मोर्चा ने राज्य सरकार की कार्यशैली व पुलिसिया दमन के खिलाफ हड़ताल पर जाने की घोषणा की है।

पारा शिक्षक का आन्दोलन क्यों?

  • राज्य के 70 हजार शिक्षकों को इस महँगाई के दौर में पिछले 5 माह से मानदेह (वेतन) नहीं दिया गया है। इस आर्थिक तंगी के वजह से वे आत्महत्या तक करने को मजबूर हो गए हैं।
  • 7 मार्च, 2016 को सरकार ने 30,000 पारा शिक्षकों को नियोजित (नियमित) करने का वायदा किया था परन्तु अब तक इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं की गयी हैं।
  • उनकी प्रमुख मांगे हैं – विद्यालय विलय पर रोक, रिक्त पदों पर भर्ती, बराबर काम के बराबर वेतनमान, कल्याण निधि का गठन आदि जिनपे अबतक कोई सुनवाई नहीं हुई है।

बहरहाल, आन्दोलन कर रहे पारा शिक्षक एवं तमाम मेहनतकश जनता को यह समझ लेना होगा कि तेज़ विकास की राह पर देश को सरपट दौड़ाने के तमाम दावों का मतलब होता है मज़दूरों की लूट-खसोट में और बढ़ोत्तरी। ऐसे ‘विकास’ के रथ के पहिए हमेशा ही मेहनतकशों और ग़रीबों के ख़ून से लथपथ होते हैं। किन्तु इतिहास इसका भी गवाह है कि हर फासिस्ट तानाशाह का काम हमेशा आम मेहनतकश आवाम की लौह मुट्ठी ने ही तमाम किया है!

 

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