बकोरिया मामले में सीबीआई जांच से क्यों डर रही है झारखंड पुलिस !

आखिर क्यों बकोरिया काण्ड मामले में झारखंड पुलिस सीबीआई जांच नहीं चाहती 

झारखंड हाइकोर्ट ने पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में आठ जून 2015 को हुए कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी, परन्तु इस सिलसिले में सीबीआइ अबतक प्राथमिकी तक दर्ज नहीं कर पायी है। ज्ञात हो कि वरीय अधिवक्ता आर.एस.मजूमदार व अधिवक्ता प्रेम पुजारी राय तथ्यों के माध्यम से पक्ष रखते हुए ( झारखंड उच्च नयायालय ) अदालत में यह साबित किया कि बकोरिया काण्ड की पुलिसिया जांच निष्पक्ष नहीं है और पुलिस मिली हुई है। हालाँकि इस मामले में बताया गया है कि सीबीआइ ने अबतक केवल सीआइडी से बकोरिया कांड के एफ.आइ.आर की सत्यापित कॉपी उपलब्ध कराने की मांग की थी जो अबतक उपलब्ध नहीं करवाई गयी है। सूत्रों की माने तो पुलिस एवं सीआइडी के आला अधिकारी हाइकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की तैयारी में हैं, कई अधिकारी तो अबतक दिल्ली में हीं डटे हुए हैं।

बड़ा सवाल यह है कि आखिर बकोरीया कांड और बासुकी हत्याकांड जैसे प्रकरण यहाँ क्यों घटित हो रहे हैं? इससे किसे फ़ायदा हो रहा है? इसके पीछे कोई और बड़ा परिपेक्ष्य तो नहीं??

इसका जवाब केवल एक है – झारखंड की बहुमूल्य ज़मीन का बाहरियों के साथ बंदरबांट। अपने ज़मीन से बेदखल हुए आवाम की आवाज़ को समाप्त करने हेतु उनका दमन करना और विरोध करने पर नक्सलवादी करार दे मौत के घाट उतार देना ही इसका उद्देश्य हो सकता है।जहाँ आदिवासी अपनी ज़मीन बचाने के लिए पारंपरिक हथियार उठा रहे हैं तो वहीँ सरकार उनकी ज़मीन लूटने के लिए बंदूक-क़ानून-साम्प्रदायिक विभाजन-धर्मांतरण जैसे साम-दाम-दंड-भेद वाले हथियार। ऐसे में बीते चार बरस में चार हाथ का पुल बनाने के लिए चार सौ हाथ के गड्ढे करने वाली सरकार से न्याय की उम्मीद करना बेईमानी हैं

झारखंड पुलिस और सीआईडी कि कार्यशैली पहले से ही जग ज़ाहिर है, इनपर टिप्णी करना केवल रौशनाई खत्म करना है। रही बात सीबीआई की तो पहले से ही इसे पिंजरे में बंद तोते जैसे उपनाम से नवाज़ा जा चुका है। बाकी की परतों को सीबीआई के दो बड़े अफसरों के झगड़े ने उधेड़ कर रख दिया है। इस पूरी कहानी में दो अहम किरदार हैं राकेश अस्थाना और मोईन कुरेशी। अहम बिंदु यह है अस्थाना का नाम गुजरात की दवा कंपनी स्टरलिंग बायोटेक पर छापेमारी से जुड़े होने के बावजूद, सीवीसी ने सीबीआई निदेशक की सिफारिश को दरकिनार करते हुए अस्थाना को पदोन्नति दे दी। बाकी जो हुआ वह जग जाहिर है।

अलबत्ता, तमाम स्थितियां झारखंड पुलिस के अनुकूल होने के बावजूद क्यों डरी हुई है! यह समझ से परे है, क्यों सीबीआई जांच इन्हें गवारा नहीं? या फिर वाकई दाल में काला है।

 कथित पलामू पुलिस-नक्सली मुठभेड़ मामला क्या है जाने

मेरे दौर को कुछ यूँ लिखा जाएगा

राजा का किरदार बहुत ही बौना था

                                                                                                                         … प्रताप सोमवंशी

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