समान व मुफ्त शिक्षा/ एजुकेशन के अधिकार का सिमटता दायरा
सत्ता जनादेश की जिस ताकत के साथ हायर एजुकेशन पर तानाशाही शिकंजा कस रही है, समान व मुफ्त शिक्षा/एजुकेशन के अधिकार का दायरा सिमट रही है, निस्संदेह देश के भविष्य के साख पर ख़तरा है। नौकरी ना देने पाने के बीच शिक्षा को लेकर सरकार का विजन ठीक वहीं ठहरता हैं जहाँ ग़रीबों के भारत की जगह न्यू इंडिया।
ना केवल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र, बल्कि आई.आई.टी., देहरादून मेडिकल कॉलेज के छात्र भी सरकार की शिक्षा नीति व फ़ीस की बढ़ोतरी के खिलाफ़ सड़कों पर मार्च कर रहे हैं। 18 नवंबर को जे.एन.यू. के छात्रों ने संसद तक मार्च किया, लेकिन सरकार ने इनपर फिर एक बार लाठियाँ बरसा घायल तो कर दिया, लेकिन इनके मंसूबों को घायल न कर सकी।
जेएनयू के लिए यह लड़ाई सिर्फ सस्ती शिक्षा/ एजुकेशन व जायज़ अधिकारों भर की नहीं हैं बल्कि यह सवाल उन तमाम ग़रीबों के बच्चों के लिए है, जिनके सपने उच्च शिक्षा प्राप्त करने की उड़ान भरते हैं। इन बच्चों के लिए फ़ीस बढ़ोतरी का मतलब है उच्च शिक्षा से बेदखल किया जाना ताकि ये पढ़ लिख कर सत्ता से उनकी नीतियों पर सवाल ना पूछ सकें।
शिक्षा से निवेश हटाती सरकार
इसे ऐसे परखते है, सत्ता लगातार उच्च शिक्षा/ एजुकेशन से निवेश हटाती जा रही है! जहाँ पहले उच्च शिक्षा पर जी.डी.पी. का 3.1% खर्च किया जा रहा था, वहीँ अब घटा कर इसे महज 2.7% कर दिया गया है! यही नहीं सत्ता 2016 में बड़ा कदम उठाते हुए उच्च शिक्षण संस्थानों का ग्राण्ट यू.जी.सी. से छीन कर (HEFA) हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी के तहत लोन के रूप में परिवर्तित कर दिया। हर 10 साल में इन संस्थानों को दिए गए लोन की राशि चुकानी होगी !
मसलन, इस कदम का सीधा असर अब आई.आई.टी.- जे.एन.यू. आदि संस्थानों में बेतहाशा फ़ीस बढ़ोतरी के रूप में दिखने लगा। बचे संस्थानों में भी जल्द ही होने वाली है! मतलब फ़ीस बढ़ाकर सोचे समझे तरीके से आम छात्रों को उच्च शिक्षा से दूर किया जा रहा है! दूसरी तरफ जिन विश्वविद्यालयों में फ़ीस कम है वहाँ सरकार इन्वेस्ट कर ही नहीं रही है, हालत बदतर हैं! झारखंड व पटना विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालय इसका उदाहरण है!