झारखंडी युवाओं की आस बन उभरे हैं हेमंत सोरेन

हेमंत सोरेन के न झुकने वाली अदा ने उन्हें झारखंडी युवाओं की आस बना दिया

सियासत जब अपना राजनीतिक विकल्प या एजेंडा खो देती है, युवाओं को जब घने अंधेरे में आंदोलन के सिवाय राजनीति में बदलाव की कोई सूरत नहीं दिखाई पड़ती है तो युवा उस मवाद को जख्म से निकाल के फेंकने के लिए अपने सपनों की राह राज्य या देश के सपनों की ओर मोड़ दते हैं। इतिहास इसका कई दफा गवाह बनी है। 

याद कीजिये आज़ादी का वह दौर जब भगत सिंह सरीखे युवा देश की बदहाल सूरत से युवाओं को जोड़ने सर पर कफ़न बाँध निकल पड़े थे। उस दौर में भी 18 से 35 साल के युवकों के लिये बाक़ायदा आज़ादी के रास्ते सामाजिक-आर्थिक समझ को राजनीतिक तौर पर परिवर्तित करने कवायद थी। जिसे इन युवाओं ने मुकमिल कर दिखाया था।

हेमंत हैं हम

मौजूदा वक़्त के सत्ता ने अपनी सियासत से झारखंड में ऐसा ही माहौल उत्पन्न कर दिया है। जहाँ झारखंड ना चाह कर भी अलग झारखंड से पहले वाली उसी परिस्थिति में जा खड़ा हुआ है, जहाँ न्याय, समानता, व अधिकार शब्द ग़ायब थे। एक तरफ तमाम विपक्षी दल घुटने टेक सत्ता को अजय सियासी शत्रु की उपाधि दे रही थी।

वहीँ दूसरी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन समेत तमाम युवा सिपाही सर पर दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पगड़ी बाँध उसी सत्ता से दो-दो हाथ करने निकल पड़े। “झारखंड संघर्ष यात्रा” के रूप में युवा हेमंत सोरेन ने झारखंड के पक्ष से आन्दोलन की नीव रखते हुए राज्य के अंतिम छोर के जनता तक अपनी उपस्थिति दर्ज करते हुए संवाद के रस्ते खोले।

इसके जवाब में सत्ता इनको डिगाने के लिए तरह-तरह के पैंतरे अपनाती रही। कई व्यक्तिगत वार इनपर हुए, लेकिन हेमंत सोरेन इससे परे अपनी धुन में मस्त आगे बढ़ते रहे। युवावों में इनके प्रति विश्वास जागा, उन्होंने अपनी ज़ुबान खोलने प्रारंभ कर दिए। श्री सोरेन ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा, “बदलाव यात्रा” के रूप में बेजुबानों की आवाज़ बन सत्ता के सियासी खेल पर ऐसी अंतिम किल ठोकी कि झारखंडी युवाओं की आस बन उभरे।

मसलन,  इन्होंने सत्ता के हर कुनाल षाडंगी रूपी सवाल का समीर मोहंती के रूप में माकूल जवाब दिया। “बदलो सरकार पाओ अधिकार” का एलान करते हुए झारखंड में झारखंडियत की ऐसी परिभाषा रच दी कि युवा कहने लगे “हेमंत हैं हम“।                

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