नीति आयोग ने खोली रघुवर सरकार की पोल!

 

झारखंड प्रदेश में आबादी की गुणात्मक वृधी देखी जा रही है। यह प्रदेश साल में पूरे सात महीने भीषण पेयजल संकट से गुजरता है। बढ़ते शहरों की माँग को पूरा करने के लिये यहाँ की भूमि का जलादोहन परत-दर-परत अविवेकपूर्ण तरीके से बढ़ता ही जा रहा है। 800 से 1200 फीट तक गेहरी नलकूपों की बोरिंग कर पम्पों के माध्यम से जल को खींचना विज्ञान का दुरुपयोग-सा प्रतीत होता है। अब तो स्थिति ये हो गयी है कि इतनी गहरी खुदाई के बाद भी पानी के आसार नहीं दिखता।

यहाँ की ज्यादातर आबादी सप्लाई जल पर ही निर्भर थी जो कभी-कभार ही अनियमित होती थी। इस सरकार की लापरवाही के कारण सप्लाई जल अनियमित आपूर्ति का शिकार हो गया। कई बार यह जल आपूर्ति हफ्ते में तीन-चार दिनों तक अनियमित होने लगी। मजबूरीवस लोगों ने बोरिंग करवाया और भूमिगत जल पर निर्भर हो गए। सरकार ने भी सोचा कि चलो बला टली परन्तु उसे यह मालूम नहीं था इन्ही की केंद्र सरकार का थिंक टैंक इनकी पोल खोल देगी।

नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक मे झारखंड का स्थान सबसे नीचे है। तो वहीं, इस सूची में गुजरात का स्थान सबसे ऊपर है। गुजरात के बाद सूची में क्रमश: मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र का स्थान है। हिमालयी राज्यों में त्रिपुरा पहले स्थान पर है।

रिपोर्ट के अनुसार, जल प्रबंधन के मामले में झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब है। इस मौके पर केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग, पोत परिवहन एवं जल संसाधन मंत्री नितिन  गडकरी जी ने कहा कि जल प्रबंधन बड़ी समस्या है और जिन राज्यों ने अच्छा किया है, उन्होंने कृषि के मोर्चे पर भी बेहतर किया है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश में गंभीर जल संकट है और लाखों जीवन तथा आजीविका को इससे खतरा है। इसके अनुसार, फिलहाल 60 करोड़ लोग जल समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं, करीब दो लाख लोगों की हर साल साफ पानी की कमी से मौत हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक, देश में पानी की मांग आपूर्ति के मुकाबले दोगुनी हो जाने का अनुमान है। इससे करोड़ों लोगों के समक्ष जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।

इसी के साथ एक डराने वाली रिपोर्ट भी आयी है जिसे गडकरी साहब ने नहीं बताया कि वैज्ञानिकों ने भारत के 16 राज्यों के भूजल जिसमे झारखण्ड का भी नाम है, में व्यापक मात्रा में यूरेनियम घुला पाया है। जो देश के लिए डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के मानकों की मात्रा से काफी अधिक है। जर्नल एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित रिपोर्ट, भारत के भूजल में यूरेनियम की इतनी बड़ी मात्रा बताने वाली शायद यह पहली रिपोर्ट है। अमेरिका के ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने नए आंकड़ों के आधार पर बताया है कि भारत के भूजल (जो पीने के पानी और सिंचाई का प्राथमिक स्रोत है) में यूरेनियम की मौजूदगी लगातार बढ़ रही है।

शोधकर्त्ताओं के अनुसार राजस्थान के कई हिस्सों के भूजल में यूरेनियम का स्तर उच्च हो सकता है। राजस्थान में परीक्षण किये गए सभी कुओं में से लगभग एक-तिहाई के जल में यूरेनियम का स्तर पाया गया है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और US एन्वायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के सुरक्षित पेयजल मानकों से अधिक है। शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि इसके बावजूद बीआइएस (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) के द्वारा पेयजल में जिन दूषित पदार्थों की निगरानी की जानी है, उस सूची में यूरेनियम को शामिल ही नहीं किया गया है।

पेयजल की समस्या से अब भी मुक्ति पाई जा सकती है। प्रकृति ने भूमिगत जलस्तर को बरकरार रखने के लिये खुद ही कई छोटी-बड़ी नदियों का निर्माण किया है। जरूरत है इनकी सफाई कर छोटे-छोटे बाँधों का निर्माण करने की जिससे भूमिगत जल का स्तर बनाए रखा जा सके। साथ ही कृत्रिम जलागारों को उपयुक्त स्थानों पर निर्मित करने से वर्षा के जल को एकत्रित भी किया जा सकता है। परन्तु इसकी  संभावना तो सरकार की इच्छा शक्ति पर निर्भर करती है।

सवाल ये उत्पन्न होता है कि जो सरकार खुद ही बीमार है वह क्या उपचार कर पाएगी। जो सरकार और उसके तंत्र व्यस्त हो भूख से हुई मौत को बीमारी से बताने में! जो सरकार व्यस्त हो कॉर्पोरेटो को आसानी से जमीन उपलब्ध कराने में! उसके लिए भला यह गंभीर विषय कभी गंभीर हो सकता है? विचार इस बार भी आप ही को करना है।

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