झारखण्ड : धरती आभा बिरसा, सोबरन माझी, जयपाल सिंह मुंडा, बिनोद बिहारी महतो, दिशोम गुरु शिबू सोरेन से लेकर सभी महापुरुषों का जीवन-संघर्ष शिक्षा को समर्पित, सीएम हेमन्त भी यही कर रहे.
रांची : झारखण्ड प्रदेश देश का आदिवासी, दलित, पिछड़ा बाहुल्य एक गरीब क्षेत्र है. चूँकि भारत के समाज और उसके एक हिस्से की राजनीति पर धार्मिक ग्रंथों का प्रभाव रहा है. एकलव्य-अंगूठा, शम्बूक-वध जैसे शुद्र थ्योरी के अक्स में इस क्षेत्र को साजिशन आशिक्षित रखने का संगठित प्रयास सदियों हुआ है. जिसका साक्ष्य न केवल सोबरन माझी वध से लेकर अलग झारखण्ड के पूर्व के बीजेपी सरकारों की नीतियों तक के इतिहास में स्पष्ट झलकता है, वर्तमान हेमन्त सरकार के शिक्षा नीतियों के बीच अटकाए जा रहे रोड़े भी तथ्य के गवाही देते है.
झारखण्ड में अधिकांश सत्ता बीजेपी की रही है. जिसके अक्स में वनवासी समझ जैसे सामाजिक कारक पैदा कर शिक्षा व्यवस्था को लचर की गई, निजी विद्यालयों के लूट तले आर्थिक पिछड़ेपन को शिक्षा-रोड़ा बनाया गया. अनुबंध के मद्देनजर शिक्षकों की कमी हुई, भौगोलिक चुनौतियों को विषम बनया गया. महाजनी सोच तले राजनीतिक अस्थिरता पैदा हुई, स्थानीय शिक्षकों के प्रतिभा को व्यर्थ किया गया. महापुरुषों के शिक्षा-जागरूकता के इतिहास मिटाने के प्रयास हुए, शिक्षा बजट में कमी हुई. यही नहीं हजारों स्कूलों को बंद तक कर दिया गया.
उच्च शिक्षा का अंदाजा इससे लग सकता है कि अब तक इस राज्य को केवल तीन यूनिवर्सिटी ने ही संभाला है. नतीजतन, राज्य का 85% से 90% पुरुष आबादी और लगभग 95% महिला आबादी को 21वीं सदी तक क्वालिटी शिक्षा से दूर हुए. तथ्यों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस प्रदेश में इतनी बड़ी आबादी का बौद्धिक क्षमता का स्तर क्या होगा और उस प्रदेश-देश का विकास ग्राफ किस स्तर तक निचे गया होगा. और वह देश-राज्य इस वैज्ञानिक, AI और आधुनिकीकरण के युग में कैसे खुद को संतुलित और स्थापित करेगा.
वर्तमान हेमन्त सरकार झारखण्ड शिक्षा को लेकर गंभीर
तमाम परिस्थितियों तले समय का चक्र घुमा, झारखण्ड में पहली बार सामन्ती चुनौतियों से जूझती हुई झारखंडी मानसिकता का पूर्ण कालिक हेमन्त सारकार बनी. जिसके कार्यकाल ने शिक्षा और शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़करण की गंभीरता को समझा गया और इस दिशा में ठोस प्रयास और निर्णय दिखे. जिसके एवज में उस झारखंडी विचारधारा के सरकार के सीएम हेमन्त सोरेन को कोलेजियम और जांच एजेंसियों के आसरे मिथ्या आरोप तले जेल में डाला गया. हालांकि वह आज बेदाग़ बाहर हैं लेकिन राज्य का 2 वर्ष के विकास कार्य बर्बाद हुआ. इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता.
सीएम हेमन्त ने रुढ़िवादी शिक्षा पद्धति को बदलने पर जोर दिया. सावित्रीबाई फूले योजना के तहत बेटियों की शिक्षा पर जोर दिया गया, तो दूसरी तरफ पहले चरण में 80 उत्कृष्ट विद्यालय बना. सरकारी स्कूलों में आधुनिक शिक्षा जैसे इंग्लिश मीडियम, स्मार्ट कक्षा, कंप्यूटर लैब, पुस्तकालय, लेबोरेट्री जैसे आयाम जुड़े. पुराने होस्टल दुरुस्त हुए और नए होस्टलों के निर्माण के फैसले हुए. गुरूजी क्रेडिट कार्ड योजना से लेकर मुफ्त कोचिंग से लेकर विदेश तक में उच्च शिक्षा प्राप्ति के रास्ते खोले. इसके लिए बजट में आवश्यक वित्तीय प्रावधान भी प्रदान की किये गए.
स्कूलों में पीने का पानी, छात्रों के शौचालय, बिजली, सड़क जैसे सुविधा पर जोर दिया गया. राज्य भर में कई नए कॉलेज, यूनिवर्सिटी, दलित-आदिवासी यूनिवर्सिटी, वेटनरी यूनिवर्सिटी तक के निर्माण में राज्य आगे बढ़ा. 3064 प्रोफेसर, लेक्चरर, 50,000 शिक्षकों की नियुक्ति के मार्ग खुले. प्रोफेसर प्रोन्नति नियमावली बनी. केवल अजीम प्रेमजी जैसे संस्थान ने झारखण्ड से जुड़ने की इच्छा नहीं जताई है. देश-दुनिया के शिक्षण संस्थानों से भी अच्छी खबर आई. KIIT का निमंत्रण स्पष्ट उदाहरण हो सकता है. लेकिन, केन्द्रीय रोड़ों ने एक्सीलेंस स्कूल शिक्षक नियुक्ति जैसे प्रयासों डिले किया.
राज्य के आदिवासी-मूलवासी और गरीब को हेमन्त के प्रयासों को समझना होगा
राज्य की शिक्षा व्यवस्था के मद्देनजर सीएम हेमन्त की नीतियां, प्रयास और निर्णयों की वास्तिवकता का तुलनात्मक अध्ययन राज्य को करना ही होगा. और भ्रम में आये बिना धीरता के साथ हेमन्त सरकार के नीतियों पर भरोसा भी जताना होगा. क्योंकि वर्तमान झारखण्ड की जनता के लिए शिक्षा और शिक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर जरुरी है. यदि झारखण्ड इस बार भ्रमित हो असल तथ्य दूर होंगे तो न केवल यह राज्य गर्त में जाएगा, हेमन्त सरकार में अथक प्रयासों से खड़े संसाधन-इंफ्रास्ट्रक्चर और फैसलों को बिकाऊ नेता-विधायक के माध्यम से केंद्र द्वारा चहेते पूंजीपतियों को बेचा जा सकता है.