भारतीय धार्मिक सामाजिक ताने-बाने में आधी आबादी महज ‘चाकर’ भर है, ‘विवाह’ ही अंतिम मंजिल है. वृद्धों को वन में स्थान दिया गया है. ऐसे में उनकी सामाजिक सुरक्षा का आंकलन किया जा सकता है.
रांची : धार्मिक सामाजिक ताने-बाने के अक्स में भारत की आधी आबादी की तुलनात्मक कद पारंपरिक रूप से पुरुषों से कमतर है. वृद्ध पिता के बाद उनकी अंतिम मंजिल विवाह, चुल्हा-चौका और बच्चे जानना है और पति ही उसकी असल पहचान. तलाक या विवाह विच्छेद और विधवा होने पर उन्हें कई स्तरों पर सामाजिक बहिष्कृत जैसे असंवैधानिक सच गुजरना पड़ता है. ऐसे में उनकी वृद्धावस्था की तस्वीर कितनी भयावह उभरती होगी है, समझा और महसूस किया जा सकता है. और पुरुष वृद्धों के लिए वन को जाना ही सुनिश्चित किया गया है.
एक तरफ भारतीय महिलाओं की आर्थिक निर्भरता पतियों पर होती है तो दूसरी तरफ उन्हें शिक्षा से दूर रखने का भरसक प्रयास होता है. ऐसे में स्वाभिमान के अक्स में पति से अलग होने पर उन्हें जीविकोपार्जन हेतु केवल आर्थिक संकट ही नहीं समाजिक नकारात्मकता-बहिष्कार, कानूनी चुनौतियां, आर्थिक असमानता, अकुशलता, सुरक्षित आश्रय, कुपोषण, स्वास्थ्य समस्याएं जैसी सच से अकेले ही गुजरना पड़ता है. तमाम अमानवीय परिस्थितियों और जानलेवा महंगाई के बीच आधी आबादी और वृद्धों की सामाजिक सुरक्षा का पैमाना मापा-समझा जा सकता है.
हेमन्त सरकार का सर्वजन पेंशन स्कीम मानवीय और दूरदर्शी सोच
तमाम अमानवीय परिस्थितियों के बीच, हेमन्त सरकार का “सर्वजन पेंशन योजना’ राज्य की आधी आबादी की संवैधानिक सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से दूरदर्शी सोच का तस्वीर उकेरता है. ज्ञात हो सीएम हेमन्त ने इस योजना को लागू करने के लिए पहले केंद्र सरकार से गुहार लगाई थी लेकिन उसने अनसुना कर दिया. योजना का लाभ सभी जरूरतमंद को मले इसके लिए इसे सरल बनाया जाना दर्शाता है कि सीएम राज्य विकास में बाधक सामाजिक विसंगतियों को दुरुस्त करने की दिशा में ठोस बुनियादी पहल कर चुके हैं.
महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग के माध्यम शुरू हुई इस योजना का लाभ सभी वृद्ध, विधवा, निराश्रित महिला, दिव्यांग्जन, आदिम जनजाति एवं एचआइवी एड्स पीड़ितोको दिया जा रहा है. ज्ञात हो एससी-एसटी के लाभुकों की उम्र सीमा को कम की गई है. विधवा पेंशन के तय 40 वर्ष की आयु सीमा एवं दिव्यांग की 18 वर्ष की आयु सीमा को समाप्त कर दिया गया है. मसलन, झारखण्ड देश का पहला राज्य है, जिसकी इस सामाजिक समस्या पर मानवीय नजर गई है, और उसने ठोस कदम भी उठाया है.
सामाजिक सुरक्षा झारखण्ड जैसे गरीब राज्य के लिए अति महत्वपूर्ण विषय -सीएम
सीएम हेमन्त सोरेन का स्पष्ट मानना है कि सामाजिक सुरक्षा झारखण्ड जैसे गरीब राज्य के लिए अति महत्वपूर्ण विषय है. यहां गरीब, किसान और मजदूर की बड़ी तादाद है. यहां की महिलायें, वृद्ध जैसे वर्ग अपना जीवन कठिनाइयों में बिताते हैं. मसलन, सर्वजन पेंशन योजना न केवल राज्य के आधी आबादी की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, उनके प्रति सामाजिक नकारात्मक नजरीये में सकारात्मक बदलाव भी लाएगा. हर वर्ग के असहाय के पीठ पर अभिभावकीय हाथ रखेगा तो वृद्धों को बुढापे की लाठी भी देगा.
सम्बंधित योजना के दूरदर्शी प्रभाव के मद्देनजर कहा जा सकता है हेमन्त सरकार की नीतियां झारखण्ड की परम्परा-संस्कृति को ठोस मजबूती दने के दिशा में न केवल एक असरदार कदम है, देश में स्वस्थ समाज की तस्वीर का नीव भी रखता है. मसलन, सीएम हेमन्त अन्य महापुरुषों की भांति राज्य के विकास में बाधक सभी समाजिक कुरीतियों से संघर्ष करते दिखते है. ऐसे में जरुरी हो जाता है कि लाभुक और सुखद भविष्य की चाह रखने वाली जनता इस सीएम पर विश्वास जताते हुए उनके संघर्ष को व्यापक बनाएं ताकि झारखण्ड शान्ति और संतुलित मन से अपनी समृद्धि की और बढ़ सके.