एक देश एक चुनाव लोकतांत्रिक मूल भावना पर हमला -सीएम हेमन्त 

सीएम हेमन्त सोरेन का कहना – एक देश एक चुनाव लोकतंत्र की मूल भावना पर कुठाराघात. देश के संघीय ढांचे को कमजोर कर राज्यों की स्वायत्तता को समाप्त करने का संगठित षड्यंत्र , लोकसंगत.

रांची : जिसने समस्यायें झेली हो वही दर्द समझा सकता है. जिस देश में एक आदिवासी सीएम फर्जी आरोप में जेल जा सकता है और केन्द्रीय मुखिया के माथे पर इस अन्याय को लेकर न शिकन दिखे और न ही कोई मलाल. एक बरस से अधिक वक़्त से देश का एक अंग मणिपुर जल रहा हो, बेटियां अपमानित हो रही हो. देश के दूसरे कोने में सोनम वांगचुक जैसा आइकॉन आन्दोलन को विवश हो, कई राज्य अपने जायज मांग को लेकर दशको से संघर्षरत हो और परिणाम जीरो हो.

एक देश एक चुनाव

आदिवासी अपनी पहचान को लेकर संघर्षरत हो और पृथक धर्म कोड देने के बजाय वनवासी कहा जाए. देश का हर राज्य अपनी भाषा-बोली और इतिहास से वंचित हो रहे हो. केन्द्रीय पूंजीपरस्त नीतियों के अक्स में राज्यों में संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट चरम हो. जंगल उजाड़े जा रहे हों. देश के सभी संसाधनों पर लगभग एक ही वर्ग का कब्जा हो. और इन जन मुद्दों तले केन्द्रीय शिक्तियों का चुनावी जीत मुश्किल हो जाए. तो ‘एक देश एक चुनाव’ के प्रस्ताव का सच समझा जा सकता है.

एक देश एक चुनाव पर सीएम हेमन्त सोरेन का वक्तव्य लोक संगत

तमाम परिस्थितियों के बीच झारखण्ड का एसटी सीएम हेमन्त सोरेन कहे कि एक देश एक चुनाव का प्रस्ताव लोकतंत्र की मूल भावना पर कुठाराघात है. देश के संघीय ढांचे को कमजोर कर राज्यों की स्वायत्तता को समाप्त करने का एक षड्यंत्र है. इस प्रस्ताव से मतदान अधिकार का अपमान होगा और जन आवाज दबाई जाएगी. Demonetisation की तरह यह भी De-democratisation की तरफ़ धकेलने का प्रयास है. निश्चित रूप से लोक संगत और जिम्मेदार वक्तव है.

भारत में “एक देश, एक चुनाव” राज्यों के हित में नहीं 

  • भारत एक संघीय गणराज्य है, जहां राज्यों को अपने मामलों में पृथक स्वायत्तता प्राप्त है. एक देश, एक चुनाव की अवधारणा इसकी स्वायत्तता पर प्रभाव डालेगा. 
  • एक देश, एक चुनाव की अवधारणा से चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ सकता है.
  • भारत में राज्य-क्षेत्र समस्या आधारित कई राजनीतिक दल हैं, जिसकी अपनी अलग-अलग विचारधारा है और अल्प संसाधन में क्षेत्र आधारित जन कल्याण के कार्यक्रम हैं. ऐसे में एक देश, एक चुनाव की अवधारणा इन राजनीतिक दलों की विविधता पर प्रभाव डालेगा.
  • भारत एक विविध लोकतांत्रिक देश है, जहां भाषा, संस्कृति, जनसांख्यिकी और राजनीतिक प्राथमिकताएं राज्यों के बीच भिन्न हैं. इन विविधताओं के मद्देनजर एक देश, एक चुनाव की अवधारणा को एक आलोक्तान्त्रिक प्रयास माना जा सकता है.
  • एक साथ चुनाव कराने के लिए भारत के महत्वपूर्ण कानूनी और संवैधानिक ढांचे में बदलाव करने होंगे, जिसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और संविधान में संशोधन शामिल हैं.

“एक देश, एक चुनाव” के अक्स में सरकारें हो जाएँगी बेलगाम

One Nation One Election से केंद्रीय सत्ता पर राष्ट्रीय पार्टियों का वर्चस्व बढेगा. लोकसभा और विधानसभा का एक साथ चुनाव होने से केंद्रीय सत्ता में आने वाला दल पांच साल के लिए बेलगाम हो जाएगा. क्योकि देश में बीच में कोई चुनाव नही होगा. वर्तमान राजनितिक ताने-बाने में हर साल किसी न किसी राज्यों में चुनाव होने से केन्द्रीय दलों पर समस्याओं के मद्देनजर आम जनता के द्वारा दबाव बनाने का प्रयास रहता है और राजनितिक दल बहुत हद तक बेलगाम नही हो पाते. 

मसलन, इससे देश की राजनीति से सशक्त विपक्ष की आवधारणा लगभग समाप्त हो जाएगा और विपक्ष अपंग हो जाएगा. मौजूदा दौर में केन्द्रीय तानाशाही रवैये से इस विषय को समझा जा सकता है. चूँकि वर्तमान में केन्द्रीय सत्ता के लिए राज्य दर राज्य चुनावी जीत की संभावना अन्धकारमई हो चला है. इसलिए वह चाहती है कि एक देश, एक चुनाव निति के तले किसी बड़े चेहरे आसरे चुनावी वैतरणी पार कर लिया जाए. ऐसे में इस प्रस्ताव को जनता कैसे समझे स्वयं तय करें.

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