JMM का काम के एवज में वोट मांगना – स्वस्थ राजनीति की शुरुआत

झारखण्ड के राजनितिक इतिहास में पहली बार है जब वर्तमान सरकार और उसके नेता अपने जन कार्यों के एवज में वोट मांगते देखे जा रहे हैं, जो लोकतांत्रिक मजबूतीकरण में एक बेहतरीन पहल है. 

रांची : राजनीति में महिला-पुरुष जनप्रतिनिधियों के द्वारा उनके जनकार्यों के एवज में वोट माँगा जाना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अति महत्वपूर्ण हिस्सा है. पूर्व के सरकारों में इसे सिरे से ख़ारिज किया गया. मसलन, हेमन्त सरकार में इस स्वस्थ राजनीति परम्परा की शुरुआत हुई है जिससे निश्चित रूप से देश के लोकतंत्र के बुनियाद को मजबूती मिलेगी. और झारखण्ड की जनता धुर्विकरण से परे अपने प्रतिनिधियों को उनके जनसेवा के आधार पर आंक सकेगी. यह शुरुआत न केवल जनप्रतिनिधि को जन समस्याओं के प्रति गंभीर बनाएगा उन्हें जनकार्य के प्रति प्रेरित भी करेगा. जिसका फायदा सामाज-देश विकास के रूप में दिखेगा.

काम के एवज में वोट

जनप्रतिनिधियों का जनकार्यों के एवज में वोट मांगने के सामाजिक फायदे

झामुमों नेताओं और नेत्रियों की यह लोकतांत्रिक शुरुआत जनप्रतिनिधि की जनता के प्रति जवाबदेही बढायेगी और उन्हें जनहित निर्णय के प्रति गंभीर बनाएगा. और राजनितिक प्रिक्रिया में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करेगी. सुशासन की संविधानिक मंशा को बल मिलेगा. भ्रष्टाचार पर लगातार लगा सकेगा. राज्य के विकास कार्यों में तेजी आयेगी. लोक कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता मिलेगी. स्थानीय मुद्दे और अधिकार सतह के केंद्र में दिखेंगे. राज्य की जनता का अपने जनप्रतिनिधि और सरकार के साथ लोकतांत्रिक संबंध और मजबूत होंगे.

हवा-हवाई और केवल गाल बजावन नेताओं से समाज को मिलेगा मुक्ति 

वर्तमान केन्द्रीय राजनितिक परम्परा के तहत देश-राज्य के बहुसंख्यक और गरीब आबादी का दोहन धार्मिक और फर्जी राष्ट्रवादी मुद्दों के आसरे होता दिखा है. वोट मांगे जाने के केंद्र में एक तरफ़ लोक लुभावन वादे गूंजते हैं तो दूसरी तरफ जात-पात और धर्म आधारित धुर्विकरण और धनबल का प्रयोग होता दिखता है. जिसे जहाँ एक तरफ सामाजिक अशांति दिखी है तो दूसरी तरफ चंद चहेते पूंजीपतियों को हर स्तर पर फायदा पहुँचाया जा रहा है. नतीजतन, आम जनता केवल मूल-भूत अधिकार से दूर नहीं हो रहे, उन्हें संवैधानिक अधिकारों से भी वंचित होना पड़ रहा है.

विधानसभा चुनाव में विपक्ष का युवाओं को मुद्दा बनाने का प्रयास 

झारखण्ड चुनाव की अंतिम घड़ी में भी विपक्ष मुद्दा विहिन ही है. उसके पास केवल धुर्विकरण, नेता खरीद-फरोख्त और हवा-हवाई मुद्दे उछालने के सिवा अन्य उपाय नहीं. उनका विशाल आईटी सेल नेटवर्क के आसरे झारखंडी युवाओं को मुद्दा बनाने का प्रयास है. लेकिन, ज़मीनी हकीकत यह है कि पिछली अनुभवों के मद्देनजर युवाओं को विपक्ष से अधिक सीएम हेमन्त सोरेन पर भरोसा है. उन्हें विश्वास है कि यदि उनके सवाल और मुद्दे सही होंगे तो हेमन्त मान ही लेंगे. मसलन, वह राज्य विकास की गतिशील प्रक्रिया को अधिक गभीरता से ले रहे हैं और उसे बाधित करने पक्ष में नहीं दिखते हैं.

Leave a Comment