झारखण्ड विधानसभा कार्यकाल 05 जनवरी 2025 को पूरा होना था, लेकिन चुनाव आयोग ने चुनाव तिथि 13 और 20 नवंबर 2024 को कराने की घोषणा की है. झारखण्ड स्थापना दिवस और बिरसा जयंती की अनदेखी.
रांची : भारतीय निर्वाचन आयोग, एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है. मसलन, समान प्ले फ़ील्ड मुहैया कराते हुए निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करना चुनाव आयोग की लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है. वर्तमान में चुनाव आयोग पर कानूनों की अस्पष्टता, संसाधनों-तकनीक अभाव, राजनीतिक दखल, अपारदर्शिता, मतदाता सूची में गड़बड़ी, केंन्द्रीय अनुकूल चुनाव तिथि निर्धारण, निजी विचारधारा के मद्देनजर अधिकारियों के द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग, ईवीएम पर संदेह, सूचना अभाव, निर्णयों में पक्षपात जैसे गंभीर आरोप लगे हैं.
तमाम परिस्थितियों के बीच देश के लोकतंत्र पर गंभीर खतरा पैदा होने की आशंका बढ़ चली है. जिसके अक्स में जनता का विश्वास भारतीय चुनाव आयोग पर लगातार कमजोर होता स्पष्ट नजर आ रहा है. जिससे भारत के लोकतंत्र की प्राथमिक नींव का हिलने का ख़तरा बढ़ चला है. और भारतीय समाज के बहुसंख्यक वर्गों के बीच बैचेनी बढती स्पष्ट दिख रही है. ऐसे में देश का राजनीतिक माहौल बिगड़ने की मुहाने पर लगभग खडा होता प्रतीत हो चला है. नतीजतन, परिस्थितियां जल्द नहीं बदली तो यह समाजिक अशांति का भी कारक हो सकता है.
झामुमो ने निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर उठाये सवाल
ज्ञात हो, झारखण्ड विधानसभा का कार्यकाल 05 जनवरी 2025 को पूरा होना था, लेकिन चुनाव आयोग के द्वारा राज्य में चुनाव तिथि 13 और 20 नवंबर 2024 को होने की घोषणा हुई है. ऐसे में सत्ताधारी दल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के द्वारा झारखण्ड चुनाव की घोषणा को लेकर भारत निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं. झामुमो का स्पष्ट कहना है कि जनहित निर्णयों के मद्देनजर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की बढ़ती लोकप्रियता को थामने हेतु सीएम हेमन्त को उनका कार्यकाल पूरा करने से रोका गया है.
झामुमो के महासचिव ने बकायदा प्रेस कांफ्रेंस और विज्ञप्ति जारी कर कहा कि चुनाव आयोग समय से पहले झारखण्ड में चुनाव की घोषणा क्यों की है. उन्होंने कहा कि चुनाव तिथि की घोषणा से एक दिन पहले ही असम के मुख्यमंत्री व भाजपा के चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने यह बता दिया था कि मंगलवार से आदर्श आचार संहिता लग जाएगी. क्या भारतीय चुनाव आयोग भाजपा के निर्देश पर चल रहा है या फिर चुनाव आयोग के गोपनीय सूचना की जानकारी भाजपा को पहले मिल जाती है. मसलन, संवैधानिक संस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़ा होता है.