झारखण्ड : मोदी शासन में देश में बेरोगारी का भारी विकास 

बेरोजगारी किसी भी देश के व्यक्तिगत जीवन, समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालता है. ऐसे में जब एक विशेष वर्ग में अधिकतर सामाजिक-आर्थिक संसाधन केंद्रित हों, तो जाति आधारित देश में बेरोजगारी के व्यक्तिगत, समाजिक और आर्थिक स्थिति और भी भयावह हो सकता है. 

रांची : मोदी सत्ता सबका साथ सबका विकास के नारे साथ देश के सत्ता पर 2014 में काबिज हुई थी. लेकिन, जैसे बीजेपी शासन में झारखण्ड के 19 वर्ष बर्बाद हुए ठीक वैसे ही मादी शासन के कुम्भ, 11 वर्षों में गरीब-मध्यम वर्गीय विकास तो नहीं दिखा, बेरोजगारी में विकासशील बढोतरी देखा गया है. ऐसे में जब एक विशेष वर्ग में अधिकतर सामाजिक-आर्थिक संसाधन केंद्रित हों, तो भारत जैसे जाति आधारित देश में बेरोजगारी के व्यक्तिगत, समाजिक और आर्थिक स्थिति की भयावह हकीकत समझी औए महसूस की जा सकती है.

बेरोगारी का भारी विकास

भारत के बहुसंख्य युवा शिक्षित हैं, शरीर-मन से देश सेवा में काम करने को तत्पर हैं. ऐसे में केन्द्रीय नीतियों तले उन्हें बेरोजगारी की स्थिति में धकेल डिप्रेशन, मोहताजपन, अपराधी जीवन जीने के लिए सड़कों पर धकेला जाना, किसी संगठित अपराध से कमतर नहीं आँका जा सकता है. वह भी तब देश में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है, जिसे कॉर्पोरेट जगत में सरेआम विधेयकों और कानूनों के आसरे लुटाया जा रहा हो. देश में रोज़गार के अवसर पैदा करने की सम्भावनाएँ मौजूद हो, तो केन्द्रीय सरकार की युवा समझ और विफलता समझी जा सकती है.

मोदी सत्ता को रोज़गार पर बात तक करना पसंद नहीं

ज्ञात हो मौजूदा केंद्र सरकार पर केवल बेरोज़गारी के आँकड़े में बाजीगरी करने के आरोप ही नहीं लगे हैं. वह अब रोज़गार पर बात तक करना पसंद नहीं करती है तो दूसरी तरफ उसपर रोजगार देने के प्रयास करने वाले राज्य सरकारों को भी परेशान करने के आरोप भी लगे हैं. झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन इसका स्पष्ट उदाहरण हो सकते हैं. फिर भी सच्चाई नहीं छुप रही है. आई.एल.ओ की रिपोर्ट मोदी सरकार की पोल खोलती दिखती है. रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 70-80 लाख युवा श्रम बल में शामिल होते हैं.

2012 और 2019 के बीच, रोज़गार वृद्धि लगभग न के बराबर हुई –केवल 0.01%. 2022 में शहरी युवाओं (17.2 %) और ग्रामीण युवाओं (10.6 %) में बेरोज़गारी दर रही. शहरी क्षेत्रों में महिला बेरोज़गारी दर तो 21.6 % को छू गया. आई.एल.ओ की रिपोर्ट से पता चलता है कि मोदी सरकार ने कम वेतन वाले वैसे अनौपचारिक या अनुबंध रोज़गार ही बढे, जिनमें सामाजिक सुरक्षा नहीं थी. 2019-22 तक औपचारिक रोज़गार 10.5% से घटकर 9.7% हो गयी. और केवल 21% कार्य शक्ति के पास ही नियमित वेतन वाली नौकरी है, जो कि कोविड से पहले 24% थी.

तमाम परिस्थितियों के बीच भी झारखण्ड की स्थिति कहीं बेहतर

तमाम केन्द्रीय विपरीत परिस्थितियों के बीच बैठ झारखण्ड के सीएम हेमन्त सोरेन की नीतियों के जुझारूपन का आंकलन किया जा सकता है. सीएम हेमन्त के द्वारा लगातार रिक्त सरकारी रिक्त पदों को भरने के साथ-साथ युवाओं को स्किल्ड बना, निजी क्षेत्रों में आरक्षण के आसरे भी भारी संख्या में राजगार उपलब्ध कराना किसी कुशलता से कम नहीं. साथ ही महिला समूहों को बड़ी राशि उपलब्ध करा आधी आबादी को स्वरोजगार से जोड़ना बेमिशाल पहल है. और पर्यटन-खेल नीतियों के आसरे राज्य में रोजगार के नए अवसर सृजन करने के प्रयास को मानवीय कसौटी पर कसा जाना चाहिए.

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