सोना-सोबरन धोती-साड़ी वितरण योजना जनहित में संवेदनशीलता का परिचायक, सिर्फ हेमन्त सोरेन जैसे मुख्यमन्त्री ही ले सकते हैं ऐसे लोकहित फैसले
रांची : झारखण्ड राज्य भारत देश के अति गरीब राज्य की श्रेणी में आता है. अलग झारखंड के 20 बरस बाद भी आम जनता के लिए रोटी, कपड़ा और मकान मूलभूत बुनियादी जरूरतों में से एक है. ज्ञात हो, गरीबों के तन ढकने के मद्देनजर झारखण्ड में, पूर्व की 14 महीने के कार्यकाल वाली हेमन्त सरकार में धोती-साडी योजना शुरू किया गया था. जिसे पूर्व की भाजपा के डबल इंजन सरकार में बंद कर दिया गया था. मसलन गरीबी राज्य में त्रासदी बन कर उभरी. और दर्जन से अधिक लोगों की राज्य में भूख से मौत हो गयी.
ज्ञात हो, जनता की भूख से मौत न हो इसके लिए मौजूदा हेमन्त सरकार में विभिन्न प्रकार के राशन के माध्यम से अनाज की व्यवस्था की गयी है. यहाँ तक कि भाजपा के शासन में रद्द किये गए राशनकार्ड को हेमन्त सरकार में फिर से सक्रिय कर अनाज मुहैया कराई जा रही है. और मकान के लिए भी सरकार के स्तर पर आवास योजनाये चलायी जा रही है. झारखंड सरकार अब एक कदम और बढ़ाते हुए, गरीब जनता की तन ढकने के लिए सोना-सोबरन धोती-साड़ी वितरण योजना की फिर से शुरूआत की है.
सोना-सोबरन धोती-साड़ी वितरण योजना जानलेवा महंगाई के दौर में गरीबों का तन ढकेगा
इस योजना के तहत राज्य के गरीबों को राज्य सरकार द्वारा महज दस रुपये में धोती-साड़ी और लुंगी उपलब्ध कराया जायेगा. इससे राज्य में बीपीएल परिवारों को काफी फायदा फायदा पहुंचेगा. झारखण्ड के गरीब वस्त्र जैसी अपनी बुनियादी जरूरत को वैसे दौर में पूरा कर सकेंगे, जब देश भर में लोग महंगाई से त्राहिमाम है. राज्य में करीब 57 लाख परिवारों का इस योजना का फायदा मिलगा. और ये परिवार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम से आच्छादित होंगे. मसलन, इस योजना से राज्य की एक बड़ी आबादी आच्छादित किया जा सकेगा.
गौरतलब है कि राज्य की एक बड़ी आबादी अति गरीब हैं. ऐसे लोग इस महंगाई में बमुश्किल ही जीवन-यापन करते हैं. इनमे अधिकांश परिवार अक्सर अपने लिए दो वक्त का भोजन तक नहीं जुटा पातें. ऐसे परिवारों के लिए कपड़े खरीदना कितना मुश्किल हो सकता है. यह कॉर्पोरेट के चाकर, मनुवादी विचारधारा महसूस तक नहीं कर सकते. ये गरीब परिवार, पुराने और फटे-चिथड़ों से ही सालों-साल काम चलाते हैं. ऐसे में राज्य सरकार की यह योजना समाज के मानवीय पहलुओं पर महरम लगाते हुए, गरीबों की वस्त्र संबंधी जरूरत पूरा करेगा.
सरकार की यह योजना झारखण्ड के लिए महत्वपूर्ण – काश केंद्र स्तर भी गरीब परिवारों के लिए मोदी सरकार में ऐसी पहल हो…
यह कोई नयी योजना नहीं है, पिछले कार्यकाल में भी बतौर मुख्यमन्त्री हेमन्त सोरेन ने इस योजना की शुरूआत की थी. लेकिन पूर्व की रघुवर सरकार में भाजपा विचारधारा ने इस योजना को फालतू करार दे बंद कर दिया. जाहिर है भाजपा को राज्य की गरीबी से कोई लेना-देना नहीं. लेना-देना है तो बस खनन व गरीबों की ज़मीन लूट से. यदि सरकार की कोई योजना गरीबों को मुहताज होने बचाती है तो फिर मनुवाद को सस्ता नौकर कैसे प्राप्त हो सकेगा. गरीब यदि लाचार ही नहीं होंगे तो क्यों वह अपने संसाधनों को बेचेंगे! ऐसे में उस विचारधारा के लिए गरीबों को मदद पहुंचाने वाली उस योजना को बंद करना जरूरी हो गया था.
मसलन, झारखंड की सत्ता को अपने लोगों की गरीबी का भान है. इसलिए सत्ता में आते ही मुख्य़मन्त्री हेमन्त सोरेन द्वारा सोना-सोबरन धोती-साड़ी वितरण योजना को पुन: शुरू किया गया. ताकि राज्य में माँ-बहनों व बुजुर्गों की इज्जत तत्काल ढंका जा सके. मुख्यमंत्री के इस सोच में साफ़ झलकता है कि उनके विचार झारखंडी विचारधारा में कितने गुथे हैं. तभी तो हेमन्त सरकार यह योजना जाति, धर्म या क्षेत्र विशेष से ऊपर उठकर राज्य के गरीबों के हित में समर्पित है.
काश केंद्र सरकार में भी इस तरह की संवेदनशीलता होती और वह हेमन्त सरकार की इस योजना से सीख लेकर देश भर के गरीबों के लिए ऐसी ही योजना की शुरूआत करते.