जेपी नड्डा क्यों नहीं बताते कि रघुवर घोटाले पर पूरी किताब लिखी जा सकती है

हेमंत सरकार को भ्रष्टाचार युक्त कहने वाले जेपी नड्डा क्यों नहीं कहते कि रघुवर घोटाले पर पूरी किताब लिखी जा सकती है

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रघुवर सरकार के घोटालों में महज 9 घोटालों ने ही झारखंड की छवि खराब कर दी

रांची :  झारखंड की जनता आज हर मोर्चे पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ खड़ी है। यह केवल कागजी बयानबाज़ी नहीं बल्कि ज़मीनी हकीक़त है। क्योंकि पूरे लॉकडाउन दौरान मुख्यमंत्री सोरेन ने बिना किसी केंद्रीय सहायता के झारखंडी जनता के लिये जो काम कर दिखाया है, वह काबिले तारीफ है। इसी दौरान रघुवर शासन में जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त थे, उनपर भी कार्रवाई हुई। 

जाहिर है प्रदेश बीजेपी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की लोकप्रियता से काफी बौखलाये हुए हैं। और इसी बौखलाहट में बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा वर्तमान हेमंत सरकार को भ्रष्टाचार युक्त और विकास मुक्त बता रहे हैं। लेकिन श्री नड्डा भूल गये है कि झाऱखंडी जनता ने रघुवर सरकार को इसलिए सत्ता से बाहर नहीं किया कि वह सदाचारी सरकार थी, बल्कि इसलिए किया कि उस सरकार ने झारखंड में घोटाले पर घोटाले किए। और उसकी तादाद भी इतनी है कि एक पूरी किताब लिखी जा सकती है। 

जीरो टालरेंस की नीति पर आधारित हेमंत के काम-काज से बीजेपी में मची है खलबली

दरअसल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कार्यशैली जीरो टॉलरेंस पर आधारित है। उनका स्पष्ट कहना है कि उनकी सरकार आम जनता की सरकार है। झारखंडी मूलवासी-आदिवासियों के अधिकारों के हनन को रोकने वाली सरकार है। चाहे भ्रष्टाचारी किसी भी पद पर क्यों नहीं बैठा हो, उनकी सरकार उसके साथ कानूनी कार्रवाई अवश्य करेगी। 

इस सरकार ने अपने 8 माह के शासन में भ्रष्टाचार से संबंधित कई मामलों में जांच के आदेश दिये है। मुख्यमंत्री हेमंत के इस कदम से बीजेपी नेताओं में खलबली मची है। बात चाहे बीजेपी जनप्रतिनिधियुक्त धनबाद या रांची नगर निगम में चल रहे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की हो, या फिर विभाग में हुए भ्रष्टाचार की। सीएम के हेमंत के तेवर सभी मामलों में काफी सख्त दिखे है।

आखिर अपने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के भ्रष्टाचार पर क्यों नहीं बोलते जेपी नड्डा

बेतुका आरोप लगाने वाले महारथी जेपी नड्डा अपने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के भ्रष्टाचार पर क्यों नहीं बोलते। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री यह कहते रहे है कि उनकी सरकार पर कोई दाग नहीं है। लेकिन क्या यह सच है? नहीं… उस सरकार पर कई दाग लगे हैं। उसकी संख्या इतनी तो ज़रूर है कि रघुवर सरकार पर घोटाले के इतिहास का साहित्य लिखी जा सकती  है। जैसे….

शाह ब्रदर्स का खनन घोटाला

रघुवर सरकार में पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत लौह अयस्क के अवैध उत्खनन एवं खनन पट्टा के प्रावधानों के उल्लंघन के फलस्वरूप शाह ब्रदर्स के विरुद्ध 1110 करोड़ का मांग पत्र जारी किया गया। सरकार के स्तर से 2015 में उक्त मांग में संशोधन करते हुए 1365 करोड़ रुपए का मांग पत्र निर्गत किया गया। मामले में शाह ब्रदर्स को अनुचित लाभ पहुंचाने एवं राजकोषीय क्षति को लेकर रघुवर के कई अधिकारियों पर आरोप लगे हैं। 

फर्जी टेंडर घोटाला, अभियंता प्रमुख सस्पेंड

रघुवर राज में पथ निर्माण, भवन निर्माण और ग्रामीण विकास विभाग में बड़े टेंडर देने में हुए  गड़बड़झाला की पोल खुल चुकी है। दरअसल शेड्यूल ऑफ रेट में गड़बड़ियां कर करोड़ रूपये की हेराफेरी की गयी। इस घोटाले को लेकर पथ निर्माण विभाग के अभियंता प्रमुख और कुछ कनीय अभियंताओं को सस्पेंड भी किया गया है। 

ऊर्जा विभाग में टीडीएस घोटाला, 15 करोड़ का नुकसान

रघुवर दास के ऊर्जा विभाग ने विधानसभा में यह बात कबूली थी कि टीडीएस घोटाले में सरकार को करीब 15 करोड़ का नुकसान हुआ। ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचाने के लिए करीब 8 कंपनियों को काम सौंपा गया था। कंपनियों ने तय समय पर काम खत्म नहीं किया। काम तय समय पर खत्म नहीं करने पर जुर्माने की जगह कंपनियों को रघुवर सरकार ने 15 करोड़ का अतिरिक्त भुगतान किया। 

मैनहर्ट नियुक्ति घोटाला, 21 करोड़ बर्बाद

रघुवर घोटाले

रांची में सीवरेज-ड्रेनेज सिस्टम के लिए सिंगापुर की कंपनी मैनहर्ट को कंसल्टेंट बनाकर रघुवर सरकार ने करीब 21 करोड़ रुपये फूंक दिये। लेकिन, आज तक धरातल पर कोई काम नहीं दिखा। जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय विधायक सरयू राय ने इस घोटाले पर एक किताब ‘मैनहर्ट नियुक्ति घोटाला, लम्हों की खता’ तक लिख डाली है। 

झारखंड कबंल घोटाला, 18 करोड़ का नुकसान

कंबल घोटाले में रघुवर दास ने घोटाले के नए अध्याय जोड़ दिए हैं। भाषण व प्रस्तावना में कहा गया था कि सखी मंडलों के माध्यम से झारखंड की गरीब महिला को रोजगार देंगे और उनसे कम्बल बुनवा कर गरीबों में बांटेंगे। लेकिन सच क्या निकला –  बिना टेंडर निकाले ही बाजार से कंबल खरीदे और लोगों के बीच बांटे दिए। झारखंड की जनता समझती रही कि कंबल झारखंड के गरीब महिला बुनकरों ने ही बुनें हैं। 

सरकार के बड़े अधिकारियों और बिचौलियों ने मिलकर राज्य को 18 करोड़ का चूना लगाया। दस्तावेज बताते हैं कि इस कार्य लगी ट्रकें एक वक़्त में तीन अलग-अलग दिशाओं में चलती थी। और उसकी गति तकरीबन 200-400 किलोमीटर प्रतिघंटा होती थी 

मोमेंटम झारखंड घोटाला, 100 करोड़ से अधिक का नुकसान

रघुवर घोटाले

वर्ष 2017 में आयोजित मोमेंटम झारखंड पर बड़े पैमाने पर अनियमितता का आरोप है। कहा जाता है कि मोमेंटम झारखंड में बिना कैबिनेट की स्वीकृति के बजट बढ़ाकर राशि की बंदर-बांट हुई। राज्य सरकार को करीब 100 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ। 

शिक्षा विभाग टैब घोटाला, 56 करोड़ बर्बाद

विद्यावाहिनी योजना के अंतर्गत रघुवर दास सरकार ने टैब की ख़रीददारी की। एक टैब की कीमत 13,504 रुपए थी। जैप आईटी के द्वारा 41,000 टैब की खरीदारी हुई, कुल खर्च करीब 56 करोड़ हुए। लेकिन, सारे टैब जिले की डीएसई कार्यालय में ही सड़ गये। 

विधानसभा नियुक्ति घोटाला

रघुवर सरकार में विधानसभा में हुए अवैध नियुक्ति मामला भी सामने आया है । दरअसल विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट के आधार पर दो संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी रविंद्र सिंह और रामसागर राम को जबरन सेवानिवृत्ति दी गई। इससे सरकार की काफी किरकिरी भी हुई थी। 

नये विधानसभा भवन निर्माण घोटाला, रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को काम मिला,  टेंडर में हुए है छेड़छाड़

करीब 465 करोड़ की लागत से बनायी गयी नयी विधानसभा भवन भी रघुवर राज में हुए घोटाले की दास्तान बयाँ करती है।  इस घोटाले में रघुवर के करीब रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया गया। 

विधानसभा के इंटीरियर वर्क के हिसाब-किताब में गड़बड़ी बता कर भवन निर्माण के इंजीनियरों ने पहले तो 465 करोड़ के मूल प्राक्कलन को घटा कर 420.19 करोड़ किया। फिर 12 दिन बाद ही बिल ऑफ क्वांटिटी में निर्माण लागत 420.19 करोड़ से घटा कर 323.03 करोड़ कर दिया। टेंडर निबटारे के बाद 10 प्रतिशत कम कर 290.72 करोड़ रुपये की लागत पर रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को काम दे दिया गया।

बाद में ठेकेदार के कहने पर वास्तु दोष के नाम पर साइट प्लान में फेर बदल कर निर्माण क्षेत्र में 19,943 वर्ग मीटर बढ़ा दिया गया। इसमें दिलचस्प पहलू यह है कि इन दोनों फ़ैसलों का उल्लेख सरकारी दस्तावेज़ में नहीं है। पहले के डीपीआर में विधानसभा कांप्लेक्स की लागत 465 करोड़ रुपये में सर्विस बिल्डिंग, गेस्ट हाउस, कार पार्किंग और वाच टावर आदि के निर्माण का उल्लेख था। लेकिन इस बार मुख्य अभियंता ने उसके लिए डीपीआर पर 564 करोड़ रुपये के लागत की स्वीकृति दी।

मसलन, सदन को लोकतंत्र का मंदिर मानने का दावा करने वाले घोटाले रचियताओं ने विधानसभा तक को नहीं बख्शा। अब सवाल यह है कि क्या भाजपा विधायक दल के नेता बनने के लिए ज़मीन आसमान एक करने वाले बाबूलाल मरांडी या बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा में इसे स्वीकारने के नैतिक बल है! निस्संदेह नहीं…. 

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