झारखंड की राजनीति में दिलचस्प घटनाएँ घट रही है। लॉकडाउन के बीच, पूर्व सीएम ने वर्तमान सरकार पर हमला किया है। दरअसल, पूर्व सीएम का यह हमला केंद्र की बचाव का प्रयास ज्यादा प्रतीत होता है।
क्योंकि, पूर्व सीएम अपनी दलील में राज्य के ग़रीबों और ज़रूरतमंदों पर सवाल उठाया है। जो खुद में ही सबसे बड़ा सवाल है। रघुवर जी केंद्र की सत्ता को एक ग़रीबों का रहनुमा बना कर पेश करने का प्रयास कर रहे हैं। जो न केवल हास्यप्रद बल्कि उनके छवि को और धूमिल कर सकता है। क्योंकि, झारखंड सरकार ने एक दिन पहले ही अपने रिपोर्ट कार्ड में खर्च का ब्यौरा दे चुकी है।
ऐसे में, पूर्व सीएम की परेशानी को उनके अतीत से मिलान करना जरुरी हो जाता है। मुख्यमंत्री, रघुवर दास, जिनकी गाड़ियाँ जमशेदपुर पहुँचते ही – सड़क के किनारे से तमाम ठेले हटा दी जाती थीं। जिसके भाई-भतीजे, गरीब ठेले वालों का शोषण करते थे। आज वही पूर्व सीएम ग़रीबों की मुसीबत दिखाकर फर्जी नेता बनने की कोशिश कर रहा है।
पूर्व सीएम को शोषण के आरोप में ही जनता ने नकारा था
साथ ही, जिस नेता को बतौर सीएम झारखंडी जनता ने शोषण करने के आरोप में नकार दिया। उसे फिर से अपनी पेंठ बनाने हेतु कोई और राह न सुझा तो…। वह हिंदुत्व के आसरे गरीबों के रहनुमा बनने निकल पड़े हैं। वाह री भाजपा तेरी राजनीति की बात निराली – “लोमड़ी करे बकरी की जुगाली”।
यदि भाजपा नेताओं को झारखंडी जनता की इतनी ही फ़िक्र होती। तो, वह केंद्र द्वारा होने वाले पक्षपात पर अपने आला नेताओं से सवाल करते। खुद दिल्ली छोड़ने के बजाय – वहां फंसे प्रवासी झारखंडियों तक मदद पहुँचाते। केंद्र पर झारखंड के बकाये भुगतान के लिए प्रेशर बनाते। वह जांच किट मुहैया कराने पर जोर देती, तो बात कुछ और होती…
बहरहाल, बाबूलाल मरांडी भाजपा में शामिल होने से पहले केंद्र के खिलाफ उग्र रहते थे। लेकिन, बीजेपी में शामिल होने के बाद, उनकी राजनीति नहीं बल्कि वे खुद बदल गए हैं। यह लोगों के लिए बेहतर होता अगर पूर्व सीएम समेत तमाम भाजपा नेता राजनीति करने के प्रयास के बजाय राज्य सरकार के साथ समन्वय में काम करती।