क्या सांसद उद्घाटन प्रक्रिया धर्म तले संविधान कुचलने का संघी प्रयास नहीं?

सांसद भवन उद्घाटन : देशभक्ति में इतिहास शुन्यता के अक्स में RSS का शिलापट पर नाम गुदवाने का तानाशाही प्रयास. धर्म के आसरे राष्ट्रपति समेत अनिसुचित व महिला वर्ग को कुचलना, क्या देश का संविधान कुचलने का संघी प्रयास नहीं?

रांची : नई सांसद भवन का तानाशाही उद्घाटन लोकतंत्र में फ़ासी घुसपैठ का स्पष्ट उदाहरण हो सकता है. ज्ञात हो, देशभक्ति के अक्स में स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर अब तक RSS विचार का पुरुषार्थ लगभग शुन्य है. ऐसे में आगामी 15 अगस्त, शुभ दिन को छोड़, माफ़ीवीर के नाम से प्रचलित शख्स के जन्म दिवस पर सभी संवैधानिक मूल्यों का दरकिनार कर सांसद भवन का उद्घाटन, क्या RSS का देश के इतिहास में जबरन दर्ज होने का ललक, अनुसूचित व महिला वर्ग के प्रति उसके घृणित मानसिकता को नहीं दर्शाता?

क्या सांसद उद्घाटन प्रक्रिया धर्म तले संविधान कुचलने का संघी प्रयास नहीं?

मनुस्मृति के अक्स में क्या आरएसएस की “समरसता,” के असल मायने समझना राकेट साइंस है? मणिपुर में संघी एजेंडे के तले आदिवासी गरीमा का कुचलने की तस्वीर सामने हो. देश के SC, ST व OBC आरक्षण व अधिकार हेतु संघर्षरत हो. देश के खिलाड़ी, बेटी-बेटे लाज बचने की गुहार लगा रहे हों. ऐसे दौर में इन गंभीर मसलों को दरकिनार कर, धर्म के आसरे न केवल राष्ट्रपति पद समेत अनिसुचित व महिला वर्ग का भी अपमान करना, क्या RSS की सामन्ती मानसिकता का दर्शन नहीं? क्या संविधान के आत्मा को कुचलने का प्रयास नहीं ?

नए सांसद भवन के बेदी पर तमिलनाडु से आए शैव मठों के साधुओं को वेदिका चढ़ने या छूने तक मनाही के अक्स में वर्णवाद के पोषण की पराकाष्ठा दिखना. क्या स्पष्ट नहीं करता कि RSS व प्रधानसेवक के चुनावी दाव-पेंच के सामने देश, देश का संविधान व देश के जन-गण-मन का मान सम्मान कोई मायने नहीं रखता? क्या इसका यह अर्थ नहीं कि आरएसएस का सामन्ती विचार अपनी मानसिकता को स्थापित करने के लिए देश व संविधान तक से समझौता करने से नहीं चूकता है?

Leave a Comment