मधुपुर उपचुनाव के प्रचार में भाजपा पूरी तरह पस्त हो चुकी है, अकेली पड़ चुकी, अब तो प्रचार में केवल उन्हीं इलाकों में जाती है जहाँ उसका समर्थक है
रांची : मधुपुर उपचुनाव के प्रचार में राजनीति के कई रंग देखने को मिल रहा है। एक तरफ भाजपा का अहंकार के साथ खड़ी है तो दूसरी तरफ झामुमो जनता से जुड़ाव की पृष्ठभूमि पर खड़ा है. दोनों दलों के प्रत्याशी और कार्यकर्ता चुनाव समर में कूद चुके हैं। लेकिन सवाल है कि प्रचार में ऐसा क्या है जो दोनों को अलग करती है। भाजपा इस चुनाव में तमाड़ का इतिहास दोहराने जैसे अहंकार के साथ उतरी है। तो झामुमो अपनी सवा बरस के कार्यकाल की उपलब्धियों के साथ मैदान में है. एक तरफ भाजपा को विश्वासघात व अपने नेता पर भरोसा न होने के मद्देनजर, न आजसू से और न अपने ही कार्यकर्ताओं का सहयोग नहीं मिल पा रहा है। वह इस समर में अकेली होने का सच लिए हांफ रही है।
चूँकि भाजपा के पास इस दफा न केंद्र की कोई उपलब्धि भुनाने को है और न ही विपक्ष के रूप में कोई ठोस आधार. और पिछली रघुवर सत्ता का इतिहास तो वैसे भी डरावनी है. उनकी समस्या यह है कि हिंदू-मुसलमान व हिंदुस्तान-पाकिस्तान के नाम पर भी माहौल नहीं गरमा पा रहा है. कुल मिलाकर इस उपचुनाव में भाजपा मुद्दाविहीन है? और दलबदलू बाहरी नेताओं द्वारा झारखंड भाजपा के हाईजैक हो जाने का सच भी सतह पर उभर चुका है. जनता की जागरूकता के मद्देनजर भाजपा नफरत की राजनीति का बीज तो फिर भी बो रही है, लेकिन पार्टी के पुराने वफादारों के पीछे हट जाने के कारण सफल नहीं हो पा रही है.
गंगा नारायण के सिर्फ उन इलाकों में ही वोट मांगते दिखते हैं, जहां उनके समर्थक है या उम्मीद है
नतीजतन, गंगा नारायण सिंह मधुपुर के सिर्फ उन इलाकों में ही वोट मांगते दिखते हैं, जहां उन्हें उम्मीद है. चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा उसके प्रचार तंत्र का गालियों से स्वागत हो रही है. तो वह केवल समर्थक मतदाता के इलाकों में दौरा कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स जनता की प्रतिक्रियाओं से भाजपा को अब आभास हो चला है कि इस चुनाव अपनी गलतियों से खुद का जो नुकसान किया है उसकी भरपाई करने उसे लम्बा वक़्त लग सकता है.
जबकि, झामुमो गठबंधन सधी रणनीति के साथ, एक-एक कर किले फ़तेह कर रही है. और भाजपा के नफरत की उस राजनीति का जवाब सवा बरस के विकासशील झारखंड के लकीर से दे रही है. मसलन, विकास के नारे मधुपुर उपचुनाव में झामुमो गठबंधन के जुबान से गूंज रही है. हफीजुल हसन को कांग्रेस, राजद, वामदलों, निर्दलीयों सभी का सहयोग मिल रहा है. झारखंड में यह पहला मौका भी है जहाँ तमाम सहय़ोगी पार्टियां प्रचार में बराबर की हिस्सेदार बनने का सच लिए, चुनावी मैदान में खड़ी है. यह आंदोलनकारी मरहूम हाजी हुसैन अंसारी की झारखंड सेवा की विरासत ही हो सकती है। जिसके अक्स बिना कोताही बरते सभी दल हफीजुल के साथ आ खड़ी हुई है.