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मधुपुर उपचुनाव के चौसर में भाजपा के पिटे मुसाफिर मोहरे का सच

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मधुपुर उपचुनाव के चौसर में भाजपा के पिटे मुसाफिर मोहरे

मधुपुर उपचुनाव के चौसर में भाजपा के पिटे मुसाफिर मोहरे का सच

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मधुपुर उपचुनाव में जनता भविष्य चुनेगी या भाजपा की मौकापरस्त राजनीति पर आधारित लूटतंत्र – क्या जनता फिर रघुवर दौर को जीना चाहेगी – कतई नहीं – सत्य तो यही है 

“मुसाफिर कल भी था, मुसाफिर आज भी हूं, 

कल अपनों की तलाश में था, आज अपनी तलाश में हूं…” 

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भाजपा नेताओं की स्थिति मौजूदा दौर में यह हो चली है कि उन्हें अपने दुःख-पीड़ा बयान करने के लिए व्हाट्सएप की शायरी से काम चलना पड़ रहा है। लेकिन, इंकार नहीं कि परिस्थितियां संघी मानसिकता पर आधारित भाजपा दर्शन या उसकी फिलोसोफी को समझाने के लिए काफी हो सकती है। मधुपुर उपचुनाव चौसर में झामुमो को मात देने के मद्देनजर भाजपा द्वारा खेले जाने वाले दांव उलटी पड़ चुकी है। जिसके अक्स में वह एक बार फिर मुंह की खाते, हारते दिखते हैं। प्रतिद्वंदी को चौंकाने के लिए भाजपा के रणनीतिकार जो चाल चले, उसमें वह अब खुद फंसाते नजर आ रहे हैं। 

मधुपुर उपचुनाव की जंग अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ चला है। और भाजपा किस हद तक कंफ्यूज है, उसकी रणनीतियों से समझ आती है। चुनावी चौसर के बिसात पर भाजपा द्वारा खेले जाने वाला मोहरा पहले ही पीटे होने का सच लिए हुए है। भाजपा जिस बोरो घोड़े के भरोसे ढाई घर की चाल चली है। वह 2019 के चुनाव में तीसरे नंबर पर था। जबकि भाजपा का अपना घोड़ा -राज पलिवार, जिसे प्यादा करार दिया गया है। वह दूसरे नंबर पर था। तो क्या उपचुनाव में भाजपा तीसरे नंबर के बोरो सिपाही से एक नंबर पर खड़े झामुमो सिपाही को मात देना चाहती है। वह भी ऐसी स्थिति में जब राज पलिवार सरीखे भाजपा सिपाही शायर बन चुका हो। 

भाजपा का मधुपुर उपचुनाव में उलझन 

भाजपा की बड़ी परेशानी यह है कि बोरो महारथी के साथ मैदान में उतरने से उसका अपना कुनबा बिखरता दिख रहा है। जहाँ शायरी के अक्स में राज पलिवार के मन में सवाल है कि सालों आरएसएस और भाजपा को मधुपुर में मजबूत करने के एवज में उसे दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल फेंका गया। यही से भाजपा आम कार्यकर्ताओं के लिए भी बड़ा सवाल उत्पन्न हो सकता कि जब यह मानसिकता पूर्व मंत्री को साइड कर सकती है तो भविष्य में उनकी क्या बिसात होगी। मसलन, भाजपा में उत्पन्न अंतर द्वन्द ही उप चुनाव में भाजपा की सबसे बड़ी उलझन है। राज पलिवार का गंगा नारायण सिंह के नामांकन के दौरान उपस्थित न रहना भी यही संकेत लिए हुए है। 

न जनता को और न ही गंगा नारायण सिंह को भाजपा से कुछ हासिल होगा 

गंगा नारायण सिंह को भाजपा में वह मुकाम हासिल नहीं हो सकता जो उसे अआजसू में रहते होता। क्योंकि भाजपा के लिए गंगा नारायण सिंह राज पलिवार की भांति महज एक मुहर है। जिसके अक्स में उसे लगता है कि वह चुनाव जीत सकता है। लेकिन यदि गंगा नारायण चुनाव हार जाता है, जिसके कि आसार साफ़ दीखते है। तो उसकी हालत उस धोबी के गधे -घर के न घाट के, वाली हो सकती है। और मधुपुर की जनता इस उलझन के बीच कतई एक मंत्री को नहीं खोना चाहेगी। जिसकी लकीर सीधे तौर पर विकास के भविष्य से जुड़ती है। और भाजपा के सरकार गिराने की उस अलोकतांत्रिक मंशे का भी खंडन कर सकती है जिसके अक्स में उन्होंने भाजपा की रघुवर सरकार को उखाड़ फेंका था।

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