कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड -किसानों के राहत के नाम पर आवंटन 1 लाख करोड़ से होगा कॉपोरेट घरानों को फायदा !

फसल बीमा योजना के नाम पर भी कॉपोरेट घरानों को पहुंचाया जा चुका है फायदा

फंड की घोषणा और खेती से जुड़ी कंपनी “अडानी एग्री फ्रेश लिमिटेड” के एमडी का यूपी सीएम से मिलना महज संजोग नहीं

रांची। देश की राजनीति में इन दिनों किसानों का अपने अस्तित्व के मद्देनज़र किये जाने वाले आंदोलन, न केवल चर्चा का विषय बल्कि मोदी सत्ता के गले का फांस भी बना हुआ है। देश के अधिकाँश राज्यों के किसान मोदी सरकार द्वारा लाये किसान विरोधी कानून को लेकर सड़को पर आंदोलनरत है। किसानों के प्रतिनिधि और केंद्र के बीच जारी बातचीत अभी तक बेनतीजा साबित हुई है। 

इस विरोध के ठीक पहले बीते अगस्त माह में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये की वित्तपोषण सुविधा देने के एक स्कीम को लॉच किया था। बताया गया था कि किसानों को यह सुविधा कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तहत दिया जाएगा। बता दें कि जुलाई माह को ही केंद्र सरकार ने कृषि आधारभूत ढांचे के लिए रियायती ऋण के विस्तार हेतु 1 लाख करोड़ के कोष के साथ कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की स्थापना को मंजूरी दी थी। लेकिन इस फंड का सबसे ज्यादा फायदा कॉपोरेट घरानों को ही मिलने के संकेत नजर आ रहे हैं। 

कॉपोरेट घरानों के लिए काफी फ़ायदेमंद है फंड

हालांकि यह पहली बार नही है जब भाजपा अपने शुभचिंतक घरानों को लाभ पहुंचा रही है। इससे पहले भी मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी फसल बीमा योजना के आंकड़ों से इसका खुलाशा हुआ है। केंद्र के इस 1 लाख करोड़ के फंड की सबसे खास बात यह है कि फंड लेने पर जो ब्याज होगा, उसमें 3 प्रतिशत की सब्सिडी मिलेगी। 2 करोड़ रुपये तक की क्रेडिट गारंटी के साथ यह ऋण आगामी 4 सालों में दिया जायेगा। इस वित्तीय वर्ष 2020-21 में 10,000 करोड़ रुपये और अगले 3 सालों में 30,000-30,000 करोड़ रुपये बतौर ऋण दिये जायेंगे। 

जबकि ऋण चुकाने में मोरेटोरियम की भी सुविधा दी जाएगी। यह मोरेटोरियम की अवधि अधिकतम 2 साल और न्यूनतम 6 महीने तय की गयी है। ऐसे में दिल्ली से लेकर कई राज्यों तक यह बात चर्चा की विषय बन गयी है कि ऐसा कर मोदी सरकार कॉरपोरेट घरानों को सस्ती दरों पर कृषि क्षेत्र में ऋण देने की पूरी तैयारी कर चुकी है। 

यूपी के सीएम से अडानी एग्री फ्रेश लिमिटेड के एमडी की मुलाकात कड़ी का पहला हिस्सा हो सकता है 

अडानी एग्री फ्रेश लिमिटेड के एमडी का उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात को भी इसी कड़ी के पहले हिस्से से जोड़ कर देखा जा रहा है। बता दें कि देश के जाने-माने औद्योगिक घरानों में से एक अडानी ग्रूप से जुड़ी “अडानी एग्री फ्रेश लिमिटेड” कृषि से जुड़ी है। कांट्रैक्ट खेती के कामों के अनुभव से लबालब कॉपोरेट घरानों से जुड़ी कई कंपनियों के लिए यह फंड राहत का काम करेगी। अपने विदेशी सहयोगियों के साथ मिलकर अडानी-अंबानी जैसे बड़े कॉरपोरेट घराने अब देश की कृषि व्यवस्था पर अधिपत्य जमाना चाहते हैं। जाहिर है इसके लिए उन्हें एक विशेष फंड की जरूरत पड़ेगी। और यह फंड कॉपोरेट घरानों को बैंकों के माध्यम से दबाव डालकर कैसे उपलब्ध करवाया जा सकता है जगजाहिर है। 

ऋण मिलना तो चाहिए किसानों को, मिल जाता है कॉपोरेट घरानों को

यह पहला मौका नहीं है जा कॉपोरेट घरानों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने की बात आये है। देश के इलाकों के कई कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि किसानों के नाम पर बैंकों से मिलने वाला ऋण बड़े कॉरपोरेट घरानों की एग्री-बिजनेस कंपनियों को दिया जा रहा है। आरबीआई के मुताबिक हर बैंक को पहले ही यह निर्देश दिया गया है कि किसानों को राहत पहुंचाने के लिए वे अपने ऋण का एक हिस्सा कृषि क्षेत्र को दें। लेकिन, समस्या विडंबना है कि आज भी देश के सुदूर गांव में बसे किसानों की पहुंच बैंकों तक नहीं है। 

मसलन, जो ऋण छोटे सीमांत किसानों को मिलना चाहिए था, वह अब कॉरपोरेट घरानों को आसानी से सरकारी इशारे पर मिल रहा है। और इसका फायदा उठाते हुए कई एग्री-बिज़नेस करने वाली कंपनियां बैंकों से “कृषि ऋण श्रेणी” के तहत बे रोक-टोक ऋण ले रही हैं। इस सूची में आगे का नाम रिलायंस फ्रेश जैसी एग्री-बिजनेस कंपनी का आता है। और यह बताने कि आवश्यकता नहीं कि मौजूदा वक़्त में रिलायंस फ्रेश सभी कृषि उत्पाद खरीदने-बेचने का काम करती हैं।

फसल बीमा योजना से किसानों को धोखा और कॉपोरेट घरानों को मिला है लाभ

केंद्र की मोदी सत्ता ने पहले भी महत्वाकांक्षी फसल बीमा योजना के तहत कंपनियों को ज्यादा फायदा पहुंचा किसानों से छल कर चुकी है। बता दें कि केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरूआत 13 जनवरी 2016 को हुई थी। अगर शुरूवाती स्थिति को देखे, तो मीडिया में आयी खबरों के मुताबिक खरीफ सीजन 2017-18 में इन बीमा कंपनियों का मुनाफ़ा करीब 85 प्रतिशत रहा। योजना के तहत करीब 17 कंपनियों को बीमा देने के लिए चयन किया गया था। इन कंपनियों ने सिर्फ 2767 करोड़ रुपये बीमा फसल के मुआवजे का भुगतान किया, जबकि इन्होंने बतौर प्रीमियम 17,796 करोड़ रुपये जुटाए। यानी योजना से किसानों से ज्यादा नीजिकंपनियों के कॉपोरेट घरानों को ज्यादा हुआ।

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