बीजेपी और अडानी की यारी में पिसती बेचारी झारखंडी जनता !!!

झारखण्ड में रघुवर सरकार से गोड्‌डा के भोले-भाले आदिवासी एवं मूलवासी बहुत डरे हुए हैं, वे सोच रहे हैं कि यदि उनकी जमीन छिन गई  तो वे क्या करेंगे कहाँ जायेंगे? उनकी अधिकांश ज़मीनें उपजाऊ एवं बहुफसली हैं। ये जमीन ही तो आदिवासियों की जीवन, संस्कृति की पहचान है। मशीनों से आधी दुनिया का बदन निचोड़ मुनाफा कमाने के बाद उद्योगपतियों ने अपनी भूखी और काली नजर अब झारखण्ड के आदिवासियों की जमीनों और उसके भू-गर्भ में छिपे खनिज-संपदाओं पर गड़ा दी है। झारखण्ड में भारत का सबसे ज़्यादा कोयला है फिर भी यहाँ सिर्फ 59% घरों में ही बिजली कनेक्शन है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 82% है। इस रिपोर्ट का हवाला देकर गौतम अडानी की मंशा को पूरा करने के लिए झारखण्ड की निर्लज्ज रघुवर सरकार ये तर्क दे रही है कि अगर इन इलाकों में विकास चाहिए तो आदिवासियों को अपनी जमीनों के प्रति प्रेम को त्यागना पड़ेगा। सवाल उठता है वो कैसे होगा तो आईये आगे की कहानी को समझते हैं।

अब देश के गुजराती प्रधानमंत्री के चहेते ठहरे गुजराती उद्द्योगपति गौतम अडानी जिससे हमारे देश का हर नागरिक भली-भांति परिचित है। CAG रिपोर्ट को पढने से लगता है कि सिर्फ इसलिए ही उन्हें भारत का सबसे बड़ा 10480 MW का पावर प्लांट लगाने की अनुमति दे दिया गया। अब सवाल है कि अडानी के इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए 1800 एकड़ जमीन कहाँ से आएगा तो बंगाल में टाटा की दुर्दशा देख वे बंगाल तो जा नहीं सकते ऐसी स्थिति में झारखण्ड के भोले-भले आदिवासियों को ठगने से आसान कुछ भी नहीं हो सकता था। साथ ही यहाँ की ज़मीनों में मुनाफे ही मुनाफे दबे है और मुख्यमंत्री रघुवर दास भी तो ठहरे राम अनुज लक्षमण सरीखे!

अब यहाँ की जनता की सोच ठीक इस कविता की पंक्तियों जैसी हो गयी है:

अपनी ही भूल पर मैं, बार-बार पछताया।

जब-जब सिर उठाया,अपनी चौखट से टकराया।

दरवाजे घट गए या, मैं ही बड़ा हो गया,दर्द के क्षणों में

कुछ समझ नहीं पाया। जब-जब सिर उठाया…

अब शुरू होता है इनका आडम्बर, पहले इन्होंने सीएनटी/एसपीटी (CNT/SPT), पेसा (PESA) जैसे कानूनों का उलंघन करते हुए लैंड-बैंक का गठन कर दिया एवं इसे क़ानूनी सुरक्षा प्रदान कर दी । इसके अंतर्गत अधिग्रहित ज़मीन के सम्बंध में अब ये न्याय की गुहार भी न्यायालय से नहीं लगा सकते। और कानूनी प्रक्रिया के तहत प्रशासन अपनी ताक़त का प्रदर्शन कर ज़मीने ले सकती है।

ये सच है कि अडानी को जमीन उपलब्ध करने के लिए जनसुनवाई हुई थी और इसमें शामिल होने के लिए सरकार ने पीला कार्ड निर्गत किया जिसे कुछ ही ग्रामीणों को दिया गया था लेकिन ग्रामीणों के अनुसार हकीकत ये है कि वे उनके चुनिन्दे लोग थे।  

बालिया कित्ता गांव के रविंदर महतो की खेती बंटाई पर हैं, वे कहते हैं कि उन्हें जनसुनवाई कार्यक्रम में नहीं जाने दिया गया जबकि उनके पास वोटर कार्ड और आधार कार्ड भी था। वे कहते हैं कि उनसे कहा गया कि बिना पीली कार्ड के आपको अनुमति नहीं दी जा सकती। अब पीली कार्ड की सच्चाई भी जान लीजिये। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक युवा कहता है कि उनका आस-पास के गांव में एक धुर भी जमीन नहीं है फिर भी पीला कार्ड उसे मिल गया। कार्यक्रम में शरीक होने के लिए उनको पैसे दिए और निर्देशन के अनुसार, वे जनसुनवाई में गए और अधिकारियों के कहे अनुसार किया। अब आप समझ सकते हैं इनका डर हर हद तक जायज़ है।

 अब समझते हैं कि कैग (CAG) रिपोर्ट क्या कहती है :

रिपोर्ट की मानें तो, केंद्र में जब से बीजेपी की सरकार सत्ता में आई है तभी से केंद्र की बीजेपी सरकार और राज्य शासित बीजेपी सरकारों द्वारा लगातार उद्योगपति गौतम अडानी को फायदा पहुँचाने के लग चुके कई आरोपों में और एक नया अध्याय जुड़ गया है। अबकी बार झारखण्ड की भाजपा सरकार ने scroll.in  की खबर के अनुसार, अडानी ग्रुप की कंपनी ‘अडानी पावर लिमिटेड’ को बिजली के लिए ज़्यादा पैसे चुकाकर उसे 7,410 करोड़ रुपये का फायदा पहुँचाया है।

दरअसल, 2015 में हुए समझौते में भारत ने बांग्लादेश को विद्युतीकरण में मदद करने का वायदा किया है। मोदी के इसी वायदे को निभाने के लिए अडानी पावर लिमिटेड झारखण्ड के गोड्डा जिले में कोयले से बिजली बनाने वाली 1600 मेगावाट का पावरप्लांट लगा रही है।

झारखण्ड के लिए नियम बनाया गया था कि यदि झारखण्ड कोई पावरप्लांट लगाता है तो उससे उत्पन्न होने वाली बिजली का 25 प्रतिशत  इस प्रदेश के लिए सुरक्षित रखना होगा ताकि झारखण्ड सरकार उस 25 प्रतिशत बिजली को सस्ते दाम में खरीद सके।

इसमें गणित यह है कि सुरक्षित 25 प्रतिशत  बिजली में 12% बिजली का मूल्य खरीदे गए कोयले के मूल्य  के बराबर होता है और शेष 13 प्रतिशत में मशीनरी की लागत भी जोड़ी जाती है। अडानी पावर लिमिटेड ने फरवरी 2016 में हुए समझौते में यह नियम को मान लिया था। बाद में अडानी पावर लिमिटेड ने दबंगई दिखाते हुए झारखण्ड सरकार से इस नियम में उसके लिए बदलाव करने को कहा और झारखण्ड सरकार ने इनकी ये मांग तत्काल मान ली।

अब नये नियम के मुताबिक, अडानी पावर लिमिटेड सरकार को 12 प्रतिशत बिजली तभी सस्ते दामों में देगी जब रघुवर सरकार उन्हें सस्ते दाम पर कोयला उपलब्ध कराएगी। ये मनमानी तब मानी गई है जब शेष 13 प्रतिशत बिजली को रघुवर सरकार मशीनरी की लागत जोड़कर खरीद रही है। अब सरकार को अपने सुरक्षित 25 प्रतिशत बिजली पाने के लिए पूरे 25 प्रतिशत  के बराबर मूल्य चुकाने पड़ेगे। साथ ही ये जान लें कि सुरक्षित 25 प्रतिशत बिजली भी अडानी पावर लिमिटेड सम्बंधित गोड्डा प्लांट से न दे कर किसी अन्य प्लांट से देगी। ये कौन सा प्लांट है अभी तक खुलासा भी नहीं किया गया है।

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने मई 2017 में किए ऑडिट के दौरान बताया था कि सरकार के इस कदम से अडानी पावर लिमिटेड को ‘अनुचित लाभ’ प्राप्त होगा। कैग ने सवाल भी उठाया था कि जब इस से पहले बाकि के पावर प्लांटों ने सस्ते दामों में बिजली दी है तो फिर गौतम अडानी की कंपनी को सरकार अधिक मूल्य क्यों चुका रही है?

आगे रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले समझौते की तुलना में झारखण्ड सरकार को प्रति महीने अब 24.7 करोड़ ज़्यादा चुकाने पड़ेंगे। इसका सीधा मतलब है कि गौतम अडानी को सालाना 296.40 करोड़ का अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। इस प्लांट को यहाँ 25 साल तक रहना है तो ये साफ़ हो जाता है कि इन 25 सालों में झारखण्ड सरकार को 7,410 करोड़ रुपये का घाटा होगा।

 अब सवाल ये खड़ा होता है कि बिना किसी निजी फ़ायदा के आखिर क्यों रघुवर सरकार गौतम अडानी पर इतना मेहरबान है? क्यों इनके लिए संविधान में निहित नियम कानून तक को ताक पर रख यहाँ की जनता के अधिकारों का हनन कर फायदा पहुँचाने का प्रयास कर रही है? इन्हें प्रदेश की  जनता को सच बता उन्हें संदेह के भंवर से निकालना चाहिए। क्या यह उचित नहीं होगा?

वैसे भी रघुवर सरकार के साढ़े तीन साल के कार्यकाल की उपलब्धि यही रही है कि एक ओर जहाँ बड़ी-बड़ी कम्पनियों को इस राज्य की दौलत को दोनों हाथों से लूटने की छूट दी गयी है तो वहीँ दूसरी ओर मज़दूरों-कर्मचारियों एवं आम जनता के बचे-खुचे अधिकारों को छीनकर उन्हें पूरी तरह से थैलीशाहों के ख़ूनी पंजों के हवाले करने का लगातार इन्तज़ाम किये जा रहे हैं। उनके घमंड देख लगता नहीं कि वे जनता के समक्ष आ कोई सफाई देना भी जरूरी समझेंगे। क्रांतिकारी ‘पाश’ की लिखी चंद पंक्तियां इस सरकार के लिए कितना सटीक प्रतीत होता है :-

सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है

जिसमें आत्‍मा का सूरज डूब जाए

और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा

आपके जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती

पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती

ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती।

नियमतः देखा जाए तो सरकार बिना ग्राम सभा की अनुमति के आदिवासियों की ज़मीनें नहीं ले सकती है। संविधान की पांचवीं सूची और छठवीं अनुसूची इन आदिवासियों को यहाँ के भूमि का मालिक बनाता है। संथाल परगना टेनेंसी एक्ट के अनुसार,  इस इलाके की जमीन न तो बेची जा सकता है और न ही  हस्तांतरण किया जा सकता है, चाहे वह आदिवासियों की जमीन हो या किसी गैर आदिवासियों की। लेकिन विडंबना ये है कि जनता ने जिसे अपने भविष्य सवारने एवं सुरक्षा के लिए चुना उनकी विकास का मॉडल बिना इन्हें रौंदे या ज़मीन हडपे खड़ा होता नहीं दिखता! भगत सिंह ने कहा था कि जब तक लोगों की मेहनत और उनकी जमीनों को लूटने वाले रहेंगे तब तक गरीबों की लड़ाई जारी रहेगी।

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