ये गौरक्षक हैं या किसी खास संस्था के प्रशिक्षित कातिल?

 

फासीवादियों ने गाय के नाम पर जो गुण्डागर्दी और क़त्लोगारत लकीर देशभर में खिंची थी  वह आज और भी बड़ी हो गयी है। मोदी के सत्ता में आने के बाद “गौ-रक्षक” नामक कातिल घोड़े पूरे देश में बेलगाम होकर उदंड दौड़ रहे हैं। ये पूरे देश में आये दिन क़त्ल की नयी-नयी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इन घटनाओं पर रघुकुल रीत निभाते हुए देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी पूरी बेशर्मी से चुप्पी बनाये रखे। जब दुनियाभर में थू-थू होने लगी तो भारी मन कह दिया कि महात्मा गाँधी ऐसी हत्याओं को ठीक नहीं कहते। विरोध और बढ़ा तो एक और बयान दे दिया कि गौरक्षा के नाम पर गुण्डई बर्दाश्त नहीं होगी।

लगता है गौ-गुण्डों को ये पता है कि मोदी जी का बयान सिर्फ सुनाने भर के लिए हैं। शायद इसीलिए, मोदी कुछ भी कहते रहें और गाय के नाम पर हत्याएँ और गुण्डागर्दी लगातार जारी रही या फिर जारी है। लगता है कि इन गौ-गुण्डों को सरकारी शह भी प्राप्त है। देखा जाय तो सारी ही घटनाओं में पुलिस की भूमिका मूकदर्शक वाली प्रतीत होती है, कहीं-कहीं ये भी देखा गया कि पुलिस ख़ुद “दोषियों” को गौ-गुण्डों के हवाले कर दी है। बिना किन्तु परन्तु के ये प्रतीत होता है कि इन सारी घटनाओं में पुलिस और तथाकथित गौरक्षा  दलों की मिलीभगत है। कई ऐसे वीडियो भी सामने आये हैं, जहाँ पुलिस वाले इन घटनाओं पर हँसते हुए पाये गये हैं।

झारखंड, गोड्डा  के देवदांड़ थाना से ताज़ी रिपोर्ट आयी है कि बुधवार सुबह ढुलू गांव में मुर्तजा (उम्र 30 वर्ष) तथा चिरागउद्दीन (उम्र 45 वर्ष)  को वहां के ग्रामीणों ने भैंस चोरी के आरोप में पत्थर और लाठी से बुरी तरह पीट-पीट कर मार डाला है। हालांकि पुलिस ने इस मामले में अबतक चार लोगों को गिरफ्तार कर ली है पर बाकि अब भी फरार हैं।

पुलिस के बयान के अनुसार, वनकटी गांव निवासी मुंशी मुर्मू के घर से मंगलवार को मवेशियों की चोरी होती है। ग्रामीणों ने बुधवार सुबह ही पुलिस से पहले फूर्ती दिखाते हुए इस मामले में दो संदिग्ध युवकों को पकड़ लेती है, उनके साथ और भी युवक थे पर वे भागने में सफल हो जाते हैं। ग्रामीण उन पकड़े गए दोनों युवकों को ढुलू गांव ले आते हैं। आस-पास के ग्रामीणों की भीड़ हो जाती है फिर वहां उस भीड़ को जो भी मिलाता है चाहे लाठी, चाहे पत्थर, से उनकी पिटाई शुरू कर देते हैं। गंभीर रूप से घायल उन युवकों की मौत घटनास्थल पर ही हो जाती है।

पुलिस को सूचित भी किया गया पर घटना स्थल पर वे तीन घंटे बाद ही पहुँचती है। पुलिस दोनों युवक के शवों को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए गोड्‌डा सदर अस्पताल भेज देती है। पोस्टमॉर्टम उपरांत दोनों शवों को वे उनके परिजनों को सुपुर्द कर देते है। वहीं एसपी राजीव रंजन सिंह का इस सम्बंध में वक्तब्य आया है कि मामले की जांच की जा रही है और दोषियों को किसी भी शर्त पर बक्शा नहीं जाएगा। प्रत्येक दोषी पर हत्या का मामला दर्ज होगा।

मृत आरोपी के पिता हलीम अंसारी अपने बयान में कहते हैं कि उनका बेटा मवेशी व्यापारी था। काम नहीं होने पर वह साइकिल से कोयला ढोकर अपने परिवार का गुजारा करता था। उनके बेटे का ढुलू गांव के ग्रामीणों से पुरानी दुश्मनी थी जो वे मवेशी चोरी का आरोप लगा क़त्ल कर निभायी है। बुधवार सुबह वह कोयला लेकर साइकिल से ढुलू गांव से गुजर रहा था। ग्रामीणों ने चोर-चोर का शोर मचा उसे पकड़ लिया और पीट-पीट कर हत्या कर दी।

झारखण्ड के प्रतिपक्ष नेता हेमंत सोरेन ने इस घटना की भर्त्सना करते हुए ट्वीट कर जनता से शांति बनाये रखने की अपील की है।

 

  जब पहली बार सुना कि साथी क़त्ल किये गये तो दहशत के नारे बुलन्द हुए, फिर सैकड़ों क़त्ल हुए, फिर हज़ारों, और फिर जब क़त्ल करने की सीमाएँ नहीं रहीं, तब सन्नाटे की चादर तन गयी। जब तकलीफें़ बारिश की तरह आयें, तब कोई नहीं पुकारता – ‘थम जाओ, रुक जाओ!जब जुर्म के ढेर लग जायें तो जुर्म नज़रों से छुप जाते हैं!

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

पहले अख्लाक़, फिर अबु हनिफ़ा, फिर आर. सूरज, फिर अलीमुदीन अंसारी, जुनैद, पहलु ख़ान और अब मुर्तजा तथा चिरागउद्दीन ……न जाने कितने और! इन हमलों में मॉब लिंचिंग, गौरक्षकों द्वारा हमले, हत्या व हत्या की कोशिशें, उत्पीड़न और यहाँ तक की कुछ मामलों में सामूहिक बलात्कार जैसे नृशंस अपराधों को अंजाम दिया गया है! जून 2018 तक मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) की जो भी घटनाएँ सामने आयी हैं, उनमें गाय सम्बन्धी हिंसा के प्रतिशत में एक आश्चर्यजनक वृद्धी देखने को मिली (जो पहले 5 प्रतिशत थी लेकिन जून के अन्त तक यह बढ़कर 20 प्रतिशत हो गयी।) यदि हम ग़ौर से देखें तो इस हिंसक भीड़ के पीछे हमें एक सुनिश्चित विचारधारा और राजनीति दिखाई देती है।

यह महज़ कोई क़ानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है! बल्कि 2014 के बाद से जिस आश्चर्यजनक रूप से मॉब लिंचिंग की घटनाओ में वृद्धी हुई है और जिस प्रकार ज़्यादातर मामलों में मुस्लिमों व दलितों को टारगेट किया गया है, इससे साफ़ दीखता है कि आरएसएस व तमाम फ़ासिस्ट गुण्डा वाहिनी एक सुव्यवस्थित व्यापक प्रचार द्वारा लोगों के बीच एक मिथ्या चेतना का निर्माण कर उनके सामने एक नक़ली दुश्मन पेश कर एक विशेष धर्म, जाति, नस्ल या राष्ट्र के खि़लाफ़ ज़हर फैला रही है और सत्ता में बैठी भाजपा सरकार इन फ़ासिस्ट गुण्डा वाहिनियों को खुली छूट दे रखी है।

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