जिस नीलकंठ ने हमेशा दिया साथ, उसे चौथा स्थान मिलने पर भाजपा को खुशी नहीं, पर धोखा देने वाले नेता को पांचवां स्थान मिलने पर दिखा रही है नाराज़गी
रांची : झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्णय जनजाति समाज के उत्थान पर केन्द्रित है. जिससे पांचवीं अनुसूची क्षेत्र झारखंड को 20 वर्षों में पहली बार आयाम मिल रहा है. जबकि प्रदेश बीजेपी नेता हमेशा अवरोध पैदा करते देखे जा रहे हैं. बीते दिनों जनजाति सलाहकार परिषद (TAC) के गठन को लेकर यह नजारा साफ़ तौर पर दिखा भी. जहाँ पहले तो बीजेपी नेताओं ने हेमंत सरकार के बनाये नयी नियमावली को अंसवैधानिक करार दिया. फिर जब बाबूलाल मरांडी सहित आदिवासी समाज के तीन बीजेपी विधायकों को TAC में स्थान मिला, तो इन नेताओं को उसमें भी खामियां दिखी.
दरअसल, बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी को TAC काउंसिल में पांचवा स्थान मिलने से परेशान थे. जबकि उन्हें इस बात की भी खुशी नहीं थी कि जिस नीलकंठ सिंह मुंडा ने हमेशा बीजेपी के साथ वफादारी की, उन्हें TAC में चौथा स्थान मिला था.
रमन सरकार जब जनजाति समाज के हित में ले सकती है फैसला, तो फिर हेमंत सरकार क्यों नहीं?
महामहिम राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन सरकार के बनाये TAC के प्रस्ताव को लौटा दिया गया था. फिर मुख्यमंत्री द्वारा जनजाति समाज के हित में TAC नियमावली में ही संशोधन किया गया. ऐसा नहीं था कि केवल हेमंत सरकार के नेतृत्व में ही नियमावली में संशोधन हुए हैं. भाजपा शासित राज्य छत्तीसगढ़ की रमन सरकार ने भी 2005 में ऐसा किया था.
लेकिन, अपनी सरकार की गलती को हमेशा नजरअंदाज करने वाली भाजपा हेमंत सरकार पर संवैधानिक नियमों को तोड़ने का आरोप लगाते हुए, TAC के नई नियमावली को ही असंवैधानिक बता दिया. छत्तीसगढ़ जनजातियों के हित में जब रमन सरकार नियमावली में बदलाव कर सकती है, तो फिर झारखंड हित में हेमंत सरकार द्वारा ऐसा किये जाने पर, भाजपा को परेशानी क्यों?
स्टीफन मरांडी व नीलकंठ सिह मुंडा का कद झारखंड में छोटे तो नेता नहीं, कई बार कर चुके हैं क्षेत्र का प्रतिनिधित्व
TAC में बाबूलाल को पांचवे स्थान दिये जाने पर प्रदेश बीजेपी नेता नाराज हैं. लेकिन उन्हें क्या यह भूलना चाहिए कि TAC के अध्यक्ष (सीएम) और उपाध्यक्ष (चंपई सोरेन) के बाद, दोनों नेता क्रमश: स्टीफन मरांडी और नीलकंठ सिंह मुंडा का झारखंड राजनीति में कद छोटा नहीं है. ज्ञात हो, आदिवासी पृष्ठभूमि से आने वाले स्टीफन मरांडी और नीलकंठ मुंडा का जुड़ाव जमीनी रहा है. दोनों ही अपने क्षेत्र में क्रमश: महेशपुर और खूंटी विधानसभा से कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वहीं बाबूलाल मरांडी का न तो पार्टी में स्थायी ठिकाना रहा है और न ही कोई स्थायी सीट. इसके अलावा झारखंड के आदिवासी समाज में भी उनकी वैसी पकड़ शेष रही नहीं है, जैसी अन्य आदिवासी विधायकों के अपने क्षेत्र में है.