झारखण्ड : राजनीति से परे देश के लोकतांत्रिक पीएम ‘पद’ को झारखंडी की महान संस्कृति ने हमेशा दिया सम्मान. क्या यह झारखंडी सीएम के लोकतांत्रिक चेहरे का स्पष्ट तस्वीर नहीं?
रांची : देश के समक्ष लोकतांत्रिक चेहरे के आड़ में संविधान की ही धज्जियां उधेड़ने का सच हो. राजनितिक एजेंडे के अक्स में देश के पीएम का सच राज्यों के साथ पक्षपात से जा जुड़े. मणिपुर, झारखण्ड व अन्य गैर बीजेपी शासित राज्य इसका स्पष्ट सबूत हो. केन्द्रीय शक्तियों के आसरे ही देश के प्राथमिक नागरिक आदिवासी समुदायों को उसके धर्म कोड देने के बजाय वनवासी जैसे संज्ञा तले समेटने का संगठित प्रयास दिखे. नित आदिवासी-दलित, पिछड़ों, अल्पसंख्यक और विभिन्न वर्ग के गरीबों की संवैधानिक अधिकारों के हनन का सच हो.
झारखण्ड जैसे राज्यों के जायज मांगो को दशकों अनसुना करे और संप्रदायीकरण के अक्स तले देश का धर्मनिरपेक्ष पीएम खुद को बायोलॉजिकल कहने से भी न चूके. सरकारी रिपोर्टों के विपरीत शब्द बोल अपने ही देश के सीएम को बदनाम करते दिखें. ऐसे दौर में भी एक एसटी सीएम लोकतांत्रिक पीएम पद को सम्मान दे बाबा साहेब के अक्षरों और झारखंडी संस्कृति का मान रखे. झारखण्ड पुलिस के आसरे ही पीएम के आवागमन को घंटे भर में पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था मुहैया करे. तो इसे उस सीएम का स्पष्ट लोकतांत्रिक चेहरा माना जाना चाहिए.
आर्थिक तंगी के बीच भी 25 लाख गरीबों के लिए अबुआ आवास योजना
वर्तमान प्रधानमंत्री हर दौरे गरीब झारखंडियों से बार बार कहे कि उनकी सरकार 2022 तक उन्हें घर देगी, लेकिन उस पीएम का कार्यकाल 2021-22 से पीएम आवास योजना की राशि न देने के सच लिए हो. बल्कि झारखण्ड राज्य की राशि उत्तरप्रदेश के डबल इंजन सरकार को हस्तांतरित हो जाए और कोर्ट आदेश के बावजूद राज्य को 1.36 लाख करोड़ बकाया झारखण्ड न मिले. आर्थिक तंगी के बीच भी झारखण्ड सरकार को मजबूरन अपने संसाधन से 25 लाख गरीब जनता को अबुआ आवास योजना के तहत घर देने का दायित्व निभाने का प्रयास करना पड़े.
पीएम हर झारखण्ड दौरे में जनता से ज़मीन संरक्षण का वादा करे. लेकिन उनके डबल इंजन सरकार में सीएनटी-एस्पीटी जैसे झारखंडी सुरक्षा कवच को समाप्त करने का प्रयास दिखे. 1985 वर्ष आधारित स्थानीय निति लागू हो. स्थानीय जन विरोध के बावजूद पुलिसिया लाठी के जोर पर तानाशाही अंदाज में चहेते पूंजीपतियों को न केवल खेतिहर ज़मीन लुटाये, कानूनी संरक्षण भी दे. ग्रामसभा के शक्तियों को शिथिल कर कमल कलब के आसरे लैंडबैंक में राजवासियों के प्रयोग में आने वाली आम-ख़ास गैरमजुरुआ ज़मीनों को भी अधिग्राहित कर ले.
हजारों स्कूलों को बंद होना डबल इंजन सरकार का सच
हर झारखण्ड दौरे में पीएम राज्य की शिक्षा-व्यवस्था और बेरोजगारी को सुदृढ़ करने का वादा करें. लेकिन, उसके डबल इंजन सरकार का सच मर्जर के नाम पर झारखण्ड के हजारों स्कूलों को बंद करने रूप में उभरे. पढाई कर रहे विद्यार्थियों तक के स्कॉलरशिप राशि मिलना बंद हो जाए. गरीबों के होस्टलों को मरनासन तक पहुचा दे. सरकारी रिक्त पदों को भरने के बजाय अनुबंध आधारित नियुक्ति करे. 19 वर्षों में नियमावली तो दूर 6ठी जेपीएससी तक करा पाए. उसकी हर नीतियों में संप्रदायीकरण और झारखण्ड को खंडित करने का सच उभरे.
राज्य की आधी आबादी का सच कुपोषण का सच लिए हो. बेटियों की मौत भूख से हो और न्याय के बदले उनके पिता अपमानित हो. बहनों को अधिकार मांगने पर पीठ पर लाठियां का दर्द सहना पड़े. हजारों पोषणसखी बहनों की राशि बंद कर उन्हें बेरोजगारी की दहशत में जीने को मजबूर कर दे. गरीबी के अक्स में राज्य की महिलाओं को न केवल मानव तस्करी का दंश झेलना पड़े, उन्हें हड़िया-दारू जैसे आसामाजिक व्यवसाय से जुड़ना पड़े. सहायता समूह की दीदियां केवल बीजेपी के चुनावी सभाओं के लिए भीड़ जुटाने मशीन बन कर रह जाए.
हेमन्त सरकार की नीतियाँ झारखण्ड विकास के ठोस आधार
ऐसे रिस्थितियों के बीच ही हेमन्त शासन की और उसके नीतियों-योजनाओं और निर्णयों की महत्ता-प्रासंगिकता समझी जा सकती है. जहाँ जनता तुलनात्मक आंकलन कर सकती है कि पीएम का शब्द ‘तिकड़म’ किस हद तक गलत है. एक्सीलेंस स्कूल से लेकर छात्रवास निर्माण, सावित्रीबाई फूले से लेकर मईया सम्मान, पारा शिक्षक से लेकर ओपीएस, रिक्त पदों पर नियुक्ति से लकर निजी संस्थानों में आरक्षण तक, तथ्यों के आधार से प्रतीत होता है कि हेमन्त सरकार की नीतियां, जन कल्याणकारी योजनायें और निर्णय झारखण्ड के हित, भविष्य और विकास का मजबूत आधार है.