मौजूदा दौर में हेमन्त शासन में रघुवर शासन के घोटाला का जांच चल रही हो, ऐसे में ईडी की बेवजह कार्रवाई, राजभवन में विधेयकों का रुकना, केंद्र पर बकाये 1.36 हजार करोड़ रुपये का भुगतान नहीं होने, को क्यों नहीं झारखण्ड को डिस्टर्ब करने हेतु बीजेपी आइडियोलॉजी का सुनियोजित साजिश माना जाए.
रांची : झारखण्ड विकास पर आधारित हेमन्त सरकार के करीब ढाई साल पूरे होने को हैं. इन ढ़ाई सालों में करीब दो साल सरकार पूरी तरह कोरोना संक्रमण से जन बचाव में जुझती रही. ऐसे संकट के दौर में मुख्यमंत्री झारखण्ड विकास को टारगेट मान चिंतन-मनन करते हैं. झारखण्ड की जनता कोरोना संक्रमण से ज्यादा प्रभावित ना हो, मुख्यमंत्री प्रयासरत दिखे, काफी हद तक सफल भी हुए. कोरोना के पहले, दूसरे और सीमित रूप से तीसरी लहर से जीतने के बाद हेमन्त सरकार झारखण्ड के विकास की और जब तेजी से बढ़ी, तो भाजपा द्वारा केन्द्रीय शक्तियों के प्रभाव से, अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों की भांति झारखंड को भी डिस्टर्ब करने की साज़िश शुरू चली है.
ज्ञात हो, झारखण्ड राज्य में पूर्व के रघुवर सरकार में हुए घोटालों की जांच ने भी अन्य विकास कार्य के साथ रफ़्तार पकड़ने लगी थी. ऐसे में केंद्र द्वारा देश के जांच एजेंसियों (प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआई) को हथियार बनाया जाना संदेहास्पद है. राजस्थान की भांति झारखण्ड में भी राजभवन द्वारा विधेयकों को रोका जाना संदेहास्पद है. केंद्र द्वारा 1.36 हजार करोड़ रुपये, राज्य का बकाया देने के बजाय, झारखण्ड को आर्थिक पंगु बनाने की प्रक्रिया शुरू होना संदेहास्पद है. तमाम परिस्थितियों के बीच बीजेपी आइडियोलॉजी पर उठे गंभीर सवाल के अक्स में कैसे राज्य के सवा तीन करोड़ जनसँख्या वाले झारखण्ड का विकास हो पाएगा?
सीएम अपने कथन पर अडिग – ‘गलत काम के खिलाफ कार्रवाई करना कानूनन ईडी का कर्तव्य‘
राज्य को डिस्टर्ब करने की एक कड़ी ‘ईडी’ कार्रवाई से शुरू होती है. राज्य में पिछले कुछ दिनों से केंद्र के निर्देश पर भारत के जांच एजेंसी ईडी लगातार राज्य के आला अधिकारियों, पूर्व के भाजपा सरकार के करीबीयों व अन्य संदिग्ध पर कार्रवाई पर कर रही है. लेकिन प्रदेश भाजपा नेता द्वारा दबे स्वर में फैला जाना कि ईडी की जांच रघुवर के गिरहबान तक नहीं बल्कि मुख्यमंत्री आवास तक पहुंच सकती है, भाजपा माशा पर गंभीर सवाल छोड़ते हैं.
जबकि, सुर्ख़ियों पर सिलसिलेवार नजर डालने से मालूम पड़ता है कि हेमन्त शासन के ढाई साल के कार्यकाल में राज्यवासियों के हितों को प्राथमिकता मिली है. माइंस लिज़ लेने के मामले में सीएम द्वारा स्वयं स्पष्ट किया गया है कि माइंस उनके पास पहले से थी और उन्होंने आज तक माइंस लिज़ का इस्तेमाल नहीं किया. मसलन, सीएम ने स्पष्ट कहा कि गलत काम के खिलाफ कानूनन कार्रवाई करना ईडी की कर्तव्य है. लेकिन, हकीकत यह भी है कि मेरे पास गलती से पहुंच गए तो उन्हें कितना मुसीबत झेलना पड़ेगा, उनको अंदेशा नहीं है.
राजस्थान और झारखण्ड गैर भाजपा शासित राज्य द्वारा, केंद्र के निर्देश पर दोनों राज्यों के सदन से पारित विधेयक राजभवन में जा रहा है रोका
केंद्र की भाजपा सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि गैर भाजपा शासित राज्यों में, सरकार को डिस्टर्ब करने हेतु केंद्र के निर्देश पर राजभवन द्वारा राजस्थान और झारखंड सरकार द्वारा सदन में पारित विधेयकों को लगातार लौटाया जा रहा है. बता दें कि झारखण्ड की भांति राजस्थान में भी गैर भाजपा शासित गहलोत सरकार सत्ता में है. राजस्थान में भी पिछले कुछ माह से झारखण्ड की भांति राजभवन द्वारा पत्रकारिता विश्वविद्यालय विधेयक, अधिवक्ता कल्याण संशोधन विधेयक और राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण विधेयक को लौटाया गया है.
ज्ञात हो, झारखंड में भी हेमन्त सरकार द्वारा प्रसित सदन द्में पारित चार प्रमुख विधेयक, यथा भीड़ हिंसा (माब लिंचिंग) निवारण विधेयक, पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय विधेयक, झारखण्ड वित्त विधेयक और झारखण्ड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक, 2022 को सिलसिलेवार लौटाया गया है.
पूर्व की राजनीतिक इतिहास को देखने से केंद्र की नीतियां होती है स्पष्ट
भले ही राजभवन द्वारा विधेयक के बातों पर आपत्ति दर्ज करा कर विधेयकों को लौटाया जा रहा है. पर पूर्व के राजनीतिक इतिहास को देख यह मालूम पड़ता है कि केंद्र की सत्तारूढ सरकार द्वारा राजभवन के मार्फत अपने विरोधी राज्य सरकार द्वारा पारित विधेयकों को रोकने की पहल की जाती रही है.
केंद्र पर झारखण्ड राज्य का 1.36 हजार करोड़ रुपया है बकाया, सीएम के मांग के बावजूद केंद्र देने का नहीं ले रहा नाम
झारखण्ड के गैर भाजपा शासित हेमन्त सरकार को डिस्टर्ब करने के लिए राज्य को आंर्थिक पंगु बनाने की नीतियों पर साजिशन प्रयास हो रहा है. हेमन्त सरकार जब राज्यवासियों के लिए कोरोना से लड़ाई लड़ रही थी, तो केंद्र द्वारा आर्थिक रूप से झारखण्ड पर हमले बोले गए. मुख्यमंत्री द्वारा राज्य को आर्थिक संकट से निकालने हेतु जब केंद्र से राज्य का बकाया 1.36 हजार करोड़ रुपये की मांग की गई तो केंद्र द्वारा अनसुनी कर डी गई.
मुख्यमंत्री ने कहा कि बार-बार परामर्श के बाद भी केंद्र के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा किए गए खनन से संबंधित 1.36 हजार करोड़ रुपये के वैध बकाया का भुगतान नहीं किया जा रहा है. अगर केंद्र पहल कर इस राशि का भुगतान कर दें, तो झारखण्ड को मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ेगा. लेकिन, केंद्र का मौजूदा नीतियों राज्य को यह समझ विकसित करने पर मजबूर करती है कि बीजेपी आइडियोलॉजी झारखण्ड जैसे आदिवासी-दलित-गरीब बाहुल्य राज्य के विकास के पग को रोकना चाहती है.