Economics of Relief Package – क्या झारखंड की आर्थिक मुश्किलें कम होंगी?

केंद्र सरकार के आर्थिक पैकेज (Economic of relief package) के तहत, राज्यों की उधार क्षमता को तीन प्रतिशत से बढ़ाकर पाँच प्रतिशत करने से, झारखंड बाजार से सात हजार करोड़ अधिक ऋण ले सकेगा। केंद्र दलील दे रहा है कि कोरोना संकट के कारण झारखंड की डगमगाती अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। 

केंद्र ने राहत के नाम पर कर्ज देकर पैकेज के मायने बदल दिए हैं। और चर्चा की अवधि में, मीडिया सरकार की घोषणा पर बिना सवाल उठाए कसीदे गढ़ते चले जाए। तो ऐसे में जनता को राहत पैकेज (Economic of relief package) का जमीनी सच्चाई का पता कैसे चलेगा। खासकर अगर 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज आपके सामने हो। जो सीधे तौर पर कई सवाल खड़े करता है।

वास्तव में, दुनिया भर में दिए गए सभी पैकेजों का मतलब राहत है, बदले में कुछ भी नहीं लिया जाता है। हालाँकि, भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहाँ पैकेज की परिभाषा (Economic of relief package) ऋण है। जिसे धारक को भविष्य में चुकाना होगा। जो एक तरह की झूठ की त्रासदी बताने के लिए काफी है।

Economics of Relief Package – राहत पैकेज का अर्थशास्त्र

Economics Relief Package

वित्त मंत्री ने उल्लेख किया कि देश में 63 लाख ऋण स्वीकृत किए गए। और मार्च और अप्रैल में, किसानों को 86600 करोड़ के ऋण दिए गए। औसतन एक किसान को लगभग 13746 की ऋण राशि मिली। इसी तरह, सभी को शिशु मुद्रा ऋण के तहत 500 रुपए मिलेगा। यह राहत की कैसी परिभाषा (Economics of Relief Package) हो सकती है? आप तय करें।

पीएम केयर फंड

पीएम केयर फंड से, प्रधानमंत्री ने देश के प्रवासी मज़दूरों को 1000 करोड़ रुपये दिए हैं। बड़ा आंकड़ा सुनना अच्छा लगता है। लेकिन, 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में प्रवासी मज़दूरों की संख्या 14 करोड़ थी। और 2020 तक, यह 23 करोड़ से अधिक हो गया है। (आंकड़े ILO, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, PMI और NGO से लिए गए हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार 1000 करोड़ को 14 करोड़ में विभाजित किया जाएगा, फिर प्रत्येक के हिस्से में 71 रुपये 42 पैसे होंगे। और 2020 के 23 करोड़ के हिसाब से प्रत्येक हिस्सा 45 रुपये 47 पैसे आएगा। यह मोदी जी द्वारा प्रवासी श्रमिकों को दिया गया राहत पैकेज (Economics of Relief Package) है। 

विमुद्रीकरण के बाद देश में चीजें खत्म हो गई

Economics Relief Package

विमुद्रीकरण के बाद से इस देश के भीतर चीजें खत्म हो गई हैं। सरकार की मंशा यह थी कि चीन की तरह वह धीरे-धीरे पूरे देश की अर्थव्यवस्था को अपने साथ जोड़ेगी। जिससे देश की अर्थव्यवस्था 2 ट्रिलियन से 3 ट्रिलियन, तीन से 5 ट्रिलियन और  पांच से 20 तक चली जायेगी। फिर देश की अर्थव्यवस्था सरकार अपने हाथों में रखेगी। 

लेकिन, इस पूरी प्रक्रिया में सरकार ने देश के उपभोक्ता को खत्म कर दिया। जब कोई उपभोक्ता नहीं है, तो कोई मांग नहीं है और अगर कोई मांग ही नहीं है तो विकास कैसे होगा? परिणामस्वरूप, देश में विकास की हवा हवा निकल गयी। 

वित्त मंत्री से पूछा गया था कि पैसा कहां से आएगा। उन्होंने कहा कि बोरो करंगे। मतलब नोट छापेंगे। सवाल यह है कि इससे महंगाई बढ़ेगी। इसपर अभी तक कोई जवाब नहीं मिला। अब आप क्या करेंगे…।

Conclusion, Economics of Relief Package

उदाहरण के लिए, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पीएम के साथ बैठक के दौरान, राज्य के बारे में कई सुझाव दिए गए थे। जिसमें श्रमिकों के बारे में कई वैध सवाल थे। बकाया राशि के बारे में सवाल थे। जिसके इस्तेमाल से झारखंड की अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक दी जा सकती है।

 लेकिन, साहेब ने केवल हेमंत सोरेन के शब्दों का उपयोग अपने भाषण में करने के अलावा कोई कार्रवाई नहीं की। और अब झारखंड सरकार को बता रही है कि वह और अधिक ऋण ले सकती है। और बड़ा कर्ज़दार बन सकती है। 

MSME की सीमा बढ़ाकर 1 करोड़ कर दी गई

MSME में, 20% संपत्ति सरकार वहन करती थी और शेष 80% MSME के ​​अधीन रखी जाती थी। अब इसकी सीमा बढ़ाकर 1 करोड़ कर दी गई है। यानी अब एमएसएमई के तहत काम शुरू करने वालों को ज्यादा संपत्ति रखनी होगी। उदाहरण के लिए, MSME (Economics of Relief Package) चालू नहीं होगा। 

क्योंकि, बैंक आपको इतनी बड़ी मात्रा में लोन क्यों देगा। केवल बिचौलियों को ही इससे लाभ हो सकता है। यह इस देश का पहला और अंतिम सत्य है। बैंक से ऋण लें और एक ही ऋण को अलग-अलग डायवर्ट करें। अगर चीजें विकसित होती हैं, तो ठीक है नहीं तो बैंक का पैसा डूबेगा। और सरकार को इससे आसानी से छुटकारा मिल जाएगा।

Economics Relief Package -

सच्चाई यह है कि इस देश की अर्थव्यवस्था एक प्रवासी श्रमिक द्वारा चलाई जाती थी। वे अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। मनी-ऑर्डर के आंकड़े इस बात का सबूत हैं। देश को चलाए जा रहे तरीके से साबित होता है। वर्तमान केंद्र सरकार ने देश की सारी ज़िम्मेदारी से बहुत पहले ही झाड ली थी।

और अब जब कोरोना संकट में उन प्रवासी श्रमिकों की हालत खराब है। पहली बार केंद्र सरकार के सामने देश को चलाने की चुनौती है। ऐसे में राहत पैकेज के नाम पर सरकार देश में आंकड़ों का भ्रम फैला रही है। ऐसे में अगर पत्रकार रिपोर्ट के माध्यम से देश के सामने सच्चाई ( Economics of Relief Package) नहीं रखता है, तो कौन रखेगा।

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