पीएम केयर्स “प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष” के जगह क्यों? आश्चर्य covid-19, 2020

यह लेख “प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष” के बजाय ‘पीएम केयर्स’ के शुरू किये जाने को लेकर सवाल उठती है ? और उसमें निहित तथ्यों व संभावनाओं के रहस्यों को उजागर करता है।

पूरा भारत आज कोरोना वायरस से त्रस्त है। लाखों कामकाजी परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। देश भर में भूख से कई मौतें हुई हैं। करखान के सभी मालिक ‘पल्ला झाड़’ रहे हैं। परिणामस्वरूप, औद्योगिक शहरों से सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर श्रमिक अपने घरों तक पहुंच रहे हैं। इन श्रमिकों ने अपने बच्चों को उनके सामने मरते देखा है। इससे भी बड़ी समस्या यह है कि उनके साथ भूख भी पहुँच रही है।

जिन मजदूरों को राज्य की सीमाओं पर हिरासत में रखा गया है या बीच में कहीं अटके हुए हैं, उन शिविरों की हालत बहुत खराब है। यहां तक ​​कि डॉक्टरों के लिए पर्याप्त सुरक्षा किट नहीं है। तो जाहिर है उनके लिए क्या व्यवस्था होगी।

‘पीएम केयर्स’ प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष

झारखण्ड में मजदूरों के लिए कई योजनाओं की  शुरुआत 

हालाँकि, झारखंड जैसे कुछ चुनिंदा राज्य हैं, जिन्होंने प्रवासी मजदूरों के आते ही रोज़गार देने की योजना शुरू की है। ज्ञात हो कि झारखंड के हेमंत सरकार ने हाल ही में ऐसे मजदूरों के लिए “बिरसा ग्रीन विलेज योजना” और कई अन्य योजनाएं शुरू की हैं।

योजनायें :  

  • बिरसा हरित ग्राम योजना
  • पोटो हो खेल विकास योजना 
  • नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना 

कोरोना की आड़ में ‘पीएम केयर्स’ की आड़ में भाजपा का बड़ा खेल

इस बीच, भाजपा ने अब कोरोना से निपटने के नाम पर एक बड़ा खेल खेला है। इस नए गेम का नाम ‘पीएम केयर्स’ है! कोविद -19 महामारी से उत्पन्न किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए ‘पीएम केयर’ नामक एक नया कोष बनाया गया है। फंड का उद्देश्य ‘पीएम केयर’ के जरिए फंसे लोगों की मदद करना है। लेकिन इसकी संरचना, गठन प्रक्रिया और ऑपरेटिंग सिस्टम इसके रहस्यों का खुलासा कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री पीएम केयर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। और सदस्यों में विदेश मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं। यह एक ट्रस्ट है जिसमें ‘प्रधानमंत्री’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन ये सभी नाम सिर्फ भ्रम पैदा करने के लिए हैं। क्योंकि, पदाधिकारी सरकारी नाम से हैं, लेकिन इसमें केवल भाजपा के नेता हैं। जो ट्रस्ट की व्यक्तिगत स्थिति में होने का प्रमाण देता है।

‘पीएम केयर्स’ के कागज़ात की जांच 

इस ट्रस्ट की निर्माण प्रक्रिया नियमों और विनियमों का उल्लंघन करते हुए आगे बढ़ी है। पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी ने ‘पीएम केयर’ फंड के कागज़ात की छानबीन की है। इस फंड ट्रस्ट का गठन 27 मार्च को किया गया था। उसी दिन ट्रस्ट-डीड भी पंजीकृत किया गया था। पैन कार्ड नंबर लिया गया और आयकर विभाग (80 जी) से छूट का प्रमाण पत्र भी प्राप्त किया गया होगा। यानी पूरी प्रक्रिया में नियम-कानून का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी, लोकतंत्र में, नियमों का उपयोग केवल सरकार और पूँजीपतियों के लाभ के लिए किया जाता है।

राज्यों को नहीं केवल ‘पीएम केयर्स’ को पैसा दें 

इस ट्रस्ट के कामकाज से कई अनियमितताओं का पता चलता है। 

  • पारदर्शिता की कोई गुंजाईश नहीं। ‘
  • पीएम केयर फंड का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा ऑडिट नहीं किया जा सकता है, जो सरकारी संस्थानों के लिए आवश्यक है।
  • इस कोष में योगदान की कोई निश्चित सीमा नहीं है।
  • इसमें दान की गई राशि को धारा 80 (जी) के तहत आय कर से छूट मिलेगी।बाद में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और कॉरपोरेट मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यदि कंपनियां पैसा देती हैं, तो वह कंपनियों के कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) में शामिल किए जाएंगे। 
  • मजेदार बात यह है कि कंपनियां इस बजट से राज्यों के ‘आपदा राहत कोष’ को दान नहीं कर सकती हैं। अगर वे राज्यों को दान देते हैं तो उन्हें कोई कर छूट नहीं मिलेगी। अगर आप पैसा देना चाहते हैं, तो सीधे मोदी के बैग में डाल दें, और कहीं नहीं।

‘पीएम केयर्स’ फण्ड के खिलाफ जनहित याचिका दायर

फ़ण्‍ड की स्थापना के खिलाफ अधिवक्ता एमएल शर्मा द्वारा जनहित याचिका दायर की गई है। इस जनहित याचिका में कहा गया है कि इसके लिए सरकार द्वारा कोई अध्यादेश नहीं लाया गया है, न ही इसने कोई राजपत्र अधिसूचना पेश की है। याचिका में इस कोष में प्राप्त दान को सरकार के संयुक्त खाते में स्थानांतरित करने और अदालत की निगरानी में इसकी एसआईटी जांच की मांग की गई है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई में याचिका खारिज कर दी।

AIIMS रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन का ‘पीएम केयर्स’ में दान देने से इनकार

‘पीएम केयर्स’ प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष

 AIIMS रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने पीएम केयर्स’ फण्ड के लिए अपने कर्मचारियों के एक दिन के वेतन में कटौती के AIIMS प्रबंधन के फैसले का विरोध किया। दिल्ली में न केवल एम्स, बल्कि आरएमएल, लेडी हार्डिंग, वीएमएमसी, सफदरजंग और अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस हॉस्पिटल्स के डॉक्टरों ने भी पीएम कार्स फंड में कोरोना महामारी के नाम पर रिकवरी देने से इनकार कर दिया। और कहा कि यह पैसा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षा किट खरीदने पर खर्च किया जाना चाहिए।

यही नहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन में कटौती करते हुए कहा गया था कि यह राशि पहले से बनी सरकार के ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष’ में जमा की जाएगी। लेकिन बाद में इसे मोदी के कोष में जमा कर दिया गया। कई सरकारी विभागों में नोटिस जारी कर एक दिन का वेतन काट कर फ़र्ज़ी फंड में जमा की गयी है।

‘पीएम केयर्स’ फण्ड को लेकर महत्वपूर्ण प्रश्न

बड़ा सवाल यह है कि “प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष” होने के बावजूद, नए फंड के निर्माण का कारण क्या है? इसे बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना जनवरी 1948 में जनता के योगदान के साथ जवाहरलाल नेहरू की अपील पर की गई थी। और प्रधान मंत्री का संयुक्त सचिव इस कोष का सचिव होता है। जबकि, निदेशक स्तर का एक अधिकारी इस काम में उनकी मदद करता है। और यह खाता प्रधान मंत्री के निर्देश पर उनके द्वारा संचालित किया जाता है।

“प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष”

वर्ष 2009-10 से 2018-19 में, इस फंड में कुल 4713.57 करोड़ रुपये जमा किए गए थे, लेकिन इस अवधि में केवल 2524.77 करोड़ ही खर्च किए जा सके। वित्त वर्ष 2014-15 और 2018-19 के बीच फंड को कुल 3383.92 करोड़ रुपये मिले। हालांकि, इन पांच वर्षों में केवल 1594.87 करोड़ खर्च किए गए थे। इस वित्तीय वर्ष की शुरुआत में, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में 3800 करोड़ रुपये थे।

पिछला वर्ष 3230 करोड़ से शुरू हुआ था, इस वर्ष में “प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष” को 783 करोड़ प्राप्त हुए। और खर्च केवल 212 करोड़ था। लेकिन यह 3800 करोड़ कहां है? फिर से एक नया फंड बनाने की आवश्यकता क्यों थी?

सूत्र बताते हैं कि 3300 करोड़ रुपये से अधिक बैंकों के स्थायी बांड में निवेश किए गए हैं, यानी बैंकों की पूंजी बन गई है! यह बैंकों की डूबी हुई पूंजी का एक हिस्सा भी हो सकता है! जिस तरह से मोदी सरकार के छह साल के दौरान ओएनजीसी से लेकर भारतीय रिजर्व बैंक तक सभी संस्थानों के संसाधनों को लूटा गया है, यह भी उसी कड़ी का हिस्सा है।

इसका मतलब है कि भाजपा अब कोरोना के नाम से एक ‘पीएम केयर्स’ फंड बनाकर अरबों रुपये इकट्ठा कर रही है। जिसका इस्तेमाल वह विधायकों को खरीदने के लिए करेगी। क्योंकि कोरोना से लड़ने में पीएम केयर फंड का क्या योगदान था, कोई भी बिना ऑडिट के नहीं जान सकता है।

सांसद निधि भी जा रहे हैं ‘पीएम केयर्स’ में 

‘पीएम केयर्स’ प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष

यही नहीं, मोदी ने सांसद निधि जैसे सार्वजनिक हित में खर्च करने के लिए दी जाने वाली धनराशि को सीधे तौर पर रद्द करना शुरू कर दिया है। 70 सांसदों ने ‘पीएम केयर्स’ में अपने सांसद कोष से 1 करोड़ रुपये दिए हैं। बाकी को भी ऐसा करने के लिए कहा जा रहा है। यानी, सांसदों ने फंड को जनता की जेब से निकाल लिया और इसे ऐसे फंड में दान कर दिया, जिस खाते का हिसाब पूछना संभव नहीं है। यह स्पष्ट हो जाता है कि ‘पीएम केयर्स’ का मतलब जनता को कोरोना से छुटकारा दिलाना नहीं है, बल्कि कर्मचारियों और आम आदमी को धोखा देना है!

निष्कर्ष

हालाँकि, यह एक महान घोटाला हो सकता है! भाजपा और संघ परिवार इस धन का उपयोग अपने फासीवादी एजेंडे को और तेज़ी से लागू करने के लिए कर सकते हैं। इसलिए, ‘पीएम केयर्स’ में पारदर्शिता की मांग होनी चाहिए। और केंद्र सरकार को भी इस मुद्दे को जल्द ही सार्वजनिक करना चाहिए। ताकि “प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष” के भांति इसकी भी पारदर्शिता बनी रहे।

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