झारखण्ड में लोकतंत्र की छटा – प्रदर्शन भी होते हैं और मांगे भी होती है पूरी

बीजेपी शासन में सभी वर्गों के आन्दोलन को बर्बरता व षड्यंत्रों का सामना करने का सच सामने है. जाने गंवाने के बावजूद मांगे पूरी नहीं हो रही. वहीं झारखण्ड में जनता की संवैधानिक मांगे पूरी होने का सच सामने है.  

रांची : आंदोलन व प्रदर्शन शोषण के खिलाफ अंतिम लोकतांत्रिक संगठित संघर्ष है, जो लोकतंत्र की खूबसूरती को परिभाषित भी करता है. जनता के द्वारा इस अंतिम हथियार का प्रयोग निरंकुश सत्ता के नीतियों में परवर्तन व व्यवस्था में मानवीय सुधार के लिए किया जाता है. यह लोकतंत्र के संविधान में निहित जायज अधिकार सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय जैसे जायज लक्ष्यों को सुनिश्चित करता है और जनता के जीने के अधिकार को सुनिश्चित करता है. 

झारखण्ड में लोकतंत्र की छटा - प्रदर्शन भी होते हैं और मांगे भी होती है पूरी

लेकिन, जहां मौजूदा केन्द्रीय मोदी शासन में सभी वर्गों के आन्दोलन को बर्बरता व षड्यंत्रों का सामना करने का सच सामने है. आन्दोलनकारियों के जाने गंवाने के बावजूद मांगे पूरी नहीं होने का सच सामने है. वहीं देश में झारखण्ड एक ऐसा राज्य भी है, जहाँ लोगों के लम्बे आन्दोलनों को प्राथमिकता के आधार पर संज्ञान में लाया जा रहा है. जनता की जायज मांगे पूरी हो रही है. मसलन, जनता गाजे-बाजे के साथ राज्य के सीएम हेमन्त सोरेन व उनके नेता-मंत्रियों का आभार व्यक्त दिखते हैं.

इस फेहरिस्त में, पारा शिक्षक, आंगनबाड़ी बहने, कर्मचारी वर्ग, रिक्त पदों पर नियुक्ति, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, सरना धर्म कोड, आरक्षण, 1932 वर्ष आधारित खतियान, आदिवासी, दलित, पिछड़े, किसान गरीब की मांगे शामिल है. स्थानीय आधारित बजट की मांग तक भी शामिल है. क्या यह लोकतंत्र की खूबसूरती नहीं कि एक आदिवासी सीएम के शासन में संवैधानिक मूल्यों को तरजीह मिल रही है? निश्चित रूप कहा जा सकता है झारखण्ड लोकतंत्र को ख़ूबसूरत एहसास को जी रहा है. 

Leave a Comment