बिहार चुनाव – भाजपा ने तेजस्वी के अनुभवहीनता का उठाया फायदा

बिहार चुनाव में राजद गठबंधन की हार के मुख्य कारण – तेजस्वी का कम अनुभवी होना, हेमंत सोरेन जैसे साथी को छोड़ना, एससी के बुद्धिजीवियों को सिरे ख़ारिज करना और कांग्रेस का देश भर में आधारहीन होना साथ ही बामपंथ थिंक टैंकों का अधिक मदद न लेना। 

तेजस्वी की राजनीति लालू जी के सोच सीट जाए तो जाए साथी ना जाए से ठीक उलट 

भारत की राजनीति पर बनी एक लोकप्रिय फिल्म ‘नायक’ के एक दृश्य में फिल्म के प्रमुख अभिनेता अनिल कपूर अमरीश पुरी साहब जो विपक्ष के नेता है, से कहते है, “माना कि आपका अनुभव 20 वर्षों का है लेकिन पिछले एक वर्ष से तुम्हारे साथ लड़ते हुए मेरी अनुभव अब 21 वर्षों की हो गयी है”। ठीक वैसा ही स्थिति मौजूदा दौर में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की है। जिन्होंने न केवल भाजपा को 2019 के चुनाव में पटकनी दी, कल ही के दिन उपचुनाव के नतीजे में भी भाजपा का सुफडा साफ़ किया। लब्बोलुबाब यह है कि मौजूदा दौर में देश भर में यही एक ऐसे नेता है जिसका जवाब भाजपा के पास नहीं है और जिन्होंने भाजपा को नाकों चने चबवा दिए हैं।

विडंबना है कि चंद सीटों की मोह में तेजस्वी यादव ने बिहार चुनाव में इस महारथी के अनुभव को लेने से इनकार कर दिया। जिसका खामियाजा राजद गठबंधन को कटोरिया, झाझा और चकई जैसे सीटों पर भुगतना पड़ा। यदि तेजस्वी यादव गठबंधन धर्म को निभाते हुए हेमंत सोरेन का साथ लेते तो न केवल उन्हें हेमंत सोरेन के अनुभव का साथ मिलता बल्कि इनके परिपक्व आईटी सेल का सपोर्ट भी आसानी से मिल जाता। जिसका फायदा राजद को कम अंतर वाले सीटों पर निश्चित रूप से मिलता। क्योंकि मौजूदा दौर में इस सत्य को कोई नहीं काट सकता कि केवल हेमंत ही भाजपा के लाफाजियों से लड़ने का हुनर जानते हैं। 

एसी समुदाय के बुद्धिजीवियों को सिरे से नकारना भी भारी पड़ा तेजस्वी व गठबंधन को

मौजूदा दौर में एक सच यह भी उभरा है कि विपक्ष की राजनीति में एसी समुदाय के बुद्धिजीवी व उनकी पार्टियों को सिरे से खारिज किया जाता रहा है। जिसका फायदा उठाना भाजपा जैसे दल को अच्छे से आता है। और वह शातिराना तरीके से इसका प्रयोग भी कर रही है। विपक्ष इस दूरी को पाटने के बजाय बयान देती है कि यह समुदाय भाजप को सपोर्ट करती है। लेकिन सच यह है कि एसी समुदाय भाजपा के नीतियों की सबसे अधिक शिकार है। स्तीत्व की लड़ाई के मद्देनजर लोकतंत्र में इस समुदाय का चुनाव लड़ना जायज है। वे लड़ते भी हैं जिसका खामिजा राजद गठबंधन को कोचाधामन, बहादुरगंज, नरपतगंज,छातापुर, प्राणपुर, जाले, और गया जैसे सीटों पर उठाना पड़ा है।   

देश भर में कांग्रेस अपनी रुढ़िवादी सोच के कारण आधारहीन होती जबकि क्षेत्रीय दलों को बामपंथ के थिंकटैंकों की जरुरत 

बिहार चुनाव में वामपंथी ने एक बार फिर साबित किया है कि क्यों भाजपा जैसी फासीवादी दल लेफ्ट से डरती है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि देश के गरीब-गुरबा की राजनीति करने वाली वामपंथ की विचारधारा वह हथियार है जो सीधे फासीवाद विचारधारा पर वार करती है। इनके थिंक टैंक सीधे तौर पर संघ के थिंक टैंकों से टकराती है। जिसका असर हताश जनता पर सीधे तौर पर दिखता है। तेजस्वी तो अनुभवहिन थे, लेकिन कांग्रेस तो जानती थी और वह अपनी रुढ़िवादी सोच से बाहर निकलना नहीं चाहती, नतीजतन खुद तो गर्त में जा ही रही है देश को भी साथ लेकर डूब रही है। मसलन, बामपंथ के थिंकटैंकों का बहुतियात मात्रा में मंच मुहैया न कराने का फायदा भाजपा ने अंतिम चरण के चुनाव में उठाया। जिसका उसे सीधा फायदा बिहार चुनाव में हुआ इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता।  

 

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