सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से कहा – बेवजह न बनायें भय का माहौल

छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा ईडी को खौफ का माहौल पैदा न करने की सख्त हिदायत दिया जाना क्या ईडी के कार्यशैली पर सवाल नहीं खडा सवाल?

रांची : देश भर में सभी गैर भाजपा शासित राज्यों के द्वारा लगातार भारत सरकार के संस्थानों के दुरूपयोग का आरोप केन्द्रीय सत्ता पर लगाया जा रहा. उनके द्वारा कहा जा रहा है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के द्वारा राज्यों के अधिकारियों को डराने व धमकाने का प्रयास हो रहा है. छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा ईडी को खौफ का माहौल पैदा न करने की सख्त हिदायत दिया जाना, तथ्यों की सत्यता की पुष्टि कर सकती है. 

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से कहा - बेवजह न बनायें भय का माहौल

आप सांसद संजय सिंह के बाद छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति ए अमानुल्ला की पीठ के समक्ष ईडी जाँच के सम्बन्ध में गंभीर आरोप लगाया गया है. छत्तीसगढ़ सरकार के आरोप के अनुसार कई अधिकारियों ने शिकायत की है कि ईडी के द्वारा उन्हें व उनके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार करने की धमकी दी जा रही है. अधिकारियों में ईडी के डर का आलम यह है कि उनके द्वारा कहा जा रहा है कि वह विभाग में काम नहीं करेंगे.

अधिकारियों के 100% योगदान नहीं दे पाने से झारखण्ड में चल रहे विकास कार्यों पर पड़ सकता है असर 

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य का बयान भी झारखण्ड के इसी परिस्थिति का तस्वीर पेश करती है. ज्ञात हो, इस राज्य में पूर्व के बीजेपी शासन काल में हुए घोटालों की जांच से ईडी सक्रीय हुई थी. जांच में छापेमारी की खबर केवल मीडिया में आने और मामले की औपचारिक सूचनाएं जारी नहीं होने से कयास लगाए जा रहे हैं कि यह एक आदिवासी सीएम के जातीय शोषण का सामन्ती प्रयास भर है.

क्योंकि ईडी की जाँच बीजेपी के दरवाजे पहुँचते ही न केवल थम जाती है. मीडिया में नए आरोप की ख़बरें भी आ जाती है. जिसके अक्स में सरकार के विभागीय अधिकारियों में डर माहौल है. नतीजतन वह पूरी क्षमता से राज्य में चल रहे विकास कार्यों में अपना योगदान नहीं दे पा रहे हैं. ज्ञात हो, झारखण्ड जैसे गरीब राज्य में विकास कार्य का होना अति आवश्यक है. ऐसे में अधिकारियों का शत-प्रतिशत नहीं दे पाने से राज्य में चल रहे विकास कार्यों के हश्र को समझा जा सकता है.

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