क्या ईडी द्वारा मीडिया ट्रायल देश में सनसनी फैलाने का जरिया?

भारत के लोकतंत्र का भयावह दृश्य है. कई राज्यों में बीजेपी शासन से त्रस्त जनता ने गैर बीजेपी सरकारों को चुना. लेकिन गैर भाजपा सरकारों को ईडी-सीबीआई व मीडिया के द्वारा परेशान किया जाना क्या देश के विकास को बाधित करने का प्रयास नहीं?

रांची : केन्द्रीय सत्ता के रणनीति के अक्स में देश भर में ईडी कारर्वाई पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. विश्वसनीय संस्थान के अधिकारियों पर गैर-जिम्मेदार होने का गंभीर आरोप देश को शर्मशार कर रहा है. ऐसे में गंभीर सवाल यह उठ खड़ा हुआ है – क्या केन्द्रीय राजनीति लोकतंत्र के तमाम जनहित पहलुओं को सनसनी के आसरे ढक देने पर आमादा है? यदि ऐसा है तो क्या यह केन्द्रीय सत्ता, मीडिया व ईडी-सीबीआई के अधिकारियो के गठजोर के तरफ इशारा नहीं करते है?

क्या ईडी द्वारा मीडिया ट्रायल देश में सनसनी फैलाने का जरिया?

मौजूदा भारत के लोकतंत्र का यह भयावह दृश्य है. कई राज्यों में बीजेपी शासन से त्रस्त जनता ने गैर बीजेपी सरकारों को चुना. लेकिन उन सभी गैर भाजपा सरकारों को ईडी-सीबीआई जैसे संस्थानों व मीडिया के द्वारा परेशान किया जाना क्या देश के विकास को बाधित करने का प्रयास नहीं? और भारत के संविधान में प्रदत आम जन के स्पेस को पूरी तरह से समाप्त कर देने का प्रयास नहीं है? क्या तमाम संकेत इसी अनर्थ की ओर इशारा नहीं करते?

क्यों मीडिया में आई ईडी से जुडी ज्यादातर खबर की कोई औपचारिक सूचनाएं जारी नहीं होती 

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य की पीड़ा क्या झारखण्ड की त्रासदी को केंद्रीय सत्ता के प्रयोगशाला के रूप में नहीं उभारती है? झारखण्ड में बीजेपी काल में हुए घोटालों की जांच से शुरू हुआ सिलसिला एक आदिवासी सीएम का जातीय शोषण करती प्रतीत नहीं होती? क्योंकि एक तरफ जांच एजेंसी की छापेमारी की खबर मीडिया में तो आती हैं, लेकिन सम्बंधित मामले की औपचारिक सूचनाएं जारी नहीं होती? क्या यह केंद्र, ईडी व मीडिया के सामन्ती गठजोर को नहीं दर्शाता? 

रघुवर सरकार में पूर्व मंत्री व मौजूदा निर्दलीय विधायक सरयू राय के तथ्यात्मक सवालों से इतर कार्रवाई होना. झारखण्ड में तमाम जाँच का केंद्र पूर्व के बीजेपी की ही डबल इंजन सरकार के तरफ इशारा करते ही मामले में ईडी का शांत हो जाना. और उस मामले में उठ रहे सवालों शांत करने के अक्स में फिर से ईडी की नए आरोप व जाँच गोदी मीडिया में खबर के तौर पर लहराना. क्या केंद्र, ईडी व मीडिया के सामन्ती गठजोर के मंशा को नहीं दर्शाता? 

आप सांसद संजय सिंह ने ईडी अधिकारियों पर लगाए बेहद संगीन आरोप 

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के जिस निदेशक संजय कुमार मिश्रा सेवा विस्तार पर टिप्पणी की गई थी. ईडी अधिकारियों पर बाकायदा नाम लेकर सांसद संजय सिंह के द्वारा बेहद संगीन आरोप लगाया गया. सांसद के द्वारा इन अधिकारियों पर न केवल गैर जिम्मेदार कार्रवाई का आरोप व आरोपी के मां, बाप और पत्नी को एक कमरे में बंद कर डराने-धमकाने का आरोप लगाया जाना क्या केंद्र, ईडी व मीडिया के गठजोर नहीं उभारता? 

ईडी जाँच को लेकर छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल का आरोप भी देते हैं यही संकेत 

छत्तीसगढ़ के गैर बीजेपी सीएम भूपेश बघेल के द्वारा भी ईडी जाँच पर गंभीर आरोप लगाया गया है. सीएम बघेल के द्वारा सीधा ईडी की निष्ठा पर प्रशन उठाया गया है. ज्ञात हो, ED जाँच के 2000 करोड रुपए शराब घोटाले की खबर गोदी मीडिया में आना लेकिन ओपचारिक सूचना जारी न होना. उनके ईडी पर हवा में बात करने का आरोप क्या मजबूती नहीं देता? नान घोटाला में डॉ. रमन सिंह से पूछताछ न होना? क्या केंद्र, ईडी व मीडिया के गठजोर में सनसनी फैलाने के संकेत नहीं देता है?

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