हेमंत सत्ता जीत का जश्न नहीं, बल्कि और संवेदनशील हो कोविड पीड़ितों की मदद में जुट पेश कर रही है मानवता का मिशाल
रांची : मधुपुर उपचुनाव, बंगाल समेत देश के चार राज्यों व एक केंद्र शासित राज्य के चुनाव का सच नतीजे के रूप में सामने हैं. निश्चित रूप से भाजपा के लिए यह आत्ममंथन का दौर हो सकता है। चुनावों में भाजपा केवल असम में ही जीत पाई है। लेकिन जिस बंगाल में प्रधानसेवक समेत तमाम मंत्री, संघ-भाजपा पदाधिकारी व तंत्र ने संक्रमण को ताक पर रख, जिस आशा के साथ चुनाव लड़ी. वह अपने मंसूबे में सफल नहीं हुई. दावे से इतर जीत की लकीर से बहुत दूर छूट गयी और उसे करारी शिकस्त झेलना पड़ा है.
संदर्भ झारखंड का लें, तो प्रदेश भाजपा इकाई के शीर्ष नेता लोकतंत्र को शर्मसार करते हुए बारम-बार खुले तौर पर कहने से न चुके कि 10 मई के बाद वह झारखंड में लोकतांत्रिक माध्यम से चुनी सत्ता का तख्तापलट कर देंगे. और सूबे में फिर से भाजपा की डबल इंजन की सरकार बनाएंगे. लेकिन इस बार मुख्यमंत्री संघ प्रचारक बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री होंगे. लेकिन इस प्रदेश में भी भाजपा-संघ विचारधारा को जनता ने सिरे से खारिज कर दिया. भाजपा को झोली में करारी हार मिली. और बाबूलाल जी के उस सपनों को ज़मीन देखनी पड़ी, जिस लोभ में वह पहले अपने विधायक फिर पार्टी समेत खुद की विचारधारा को भाजपा को नीलाम किया था.
जन भावनाओं की उपेक्षा कर कोई भी पार्टी अपनी साख़ नहीं बचा सकती
विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दंभ भरने वाली भाजपा अति आत्मविश्वास और अहंकार की शिकार हुई है। जिसकी तस्दीक भाजपा नेता के बयान साफ़ तौर पर करते हैं। शायद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहने से नहीं चूकते कि भाजपा 24 घंटे सरकार बनाने/ गिराने के मूड में रहती है. यही वजह है कि उसे ना तो जन भावनाओं की फिक्र है और ना कद्र। लेकिन, चुनाव के नतीजे ने वह रेखा खींच दी है. जहाँ जन भावनाओं की उपेक्षा कर कोई भी पार्टी देश में अपनी साख़ नहीं बचा सकती.
हालांकि, मधुपुर उपचुनाव हारने के बाद भाजपा नेता तरह-तरह के बयान दे अपनी हार को भुलाना चाह रहे हैं। बयान हास्यपद तब और हो सकता है जब भाजपा कहती है कि यह झामुमो की नहीं सत्ता की जीत है. लेकिन अंतिम सच यह है कि मधुपुर की जनता ने साम्प्रदायिक अशान्ति को नहीं बल्कि लोकतंत्र की आत्मा को तरजीह दी है. उन्होंने एसी मानसिकता का चुनाव किया है जो उनके सुख-दुःख में साथ खड़ा रहे. मधुपुर चुनाव में हार के साथ झारखंड में भाजपा का सफाया हो चुका है.
मसलन, राज्य की हेमंत सरकार इस जीत के बाद एक बार फिर खामोशी के साथ जन कार्यों में जुट गई है. झारखंड में जीत के जश्न नहीं बल्कि कोविड पीड़ितों के सुरक्षा के मद्देनजर संसाधन जुटाए जा रहे हैं। कोरोना को हारने का सफ़र शुरू हो चुका है हालांकि राज्य को अभी लम्बा सफ़र तय करना है। इस महामारी से लड़ते हुए भी हेमंत सत्ता विकास की लय को बरकरार रखने के लिए प्रयासरत है. मुखिया हेमंत सोरेन का मानना है कि जनता व पार्टियों के सहयोग से इस संघर्ष में झारखंड निश्चित रूप विजयी होगी।