शिक्षा के अधिकार की लाज बचाती हेमंत सरकार

शिक्षा के अधिकार के संरक्षण की ओर हेमंत सरकार की पहल  

झारखंड की पिछली चुनी हुई सरकार ने लगभग खुद को हर ज़िम्मेदारी से मुक्त करते हुए, शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरत तक को धंधे में तब्दील करने का हर संभव प्रयास किया। जहाँ सुप्रीम कोर्ट ज़िम्मेदारी से मुक्त सरकार को नोटिस थमाने से आगे और संविधान की लक्ष्मण रेखा पार न करने की हिदायत से आगे जा नहीं सकता थी। यानी जीने के लिए जब न्यूनतम जरुरतों में शिक्षा के अधिकार तक से चुनी हुई सरकार पल्ला झाड़ ले, तब सिवाय लूट के और क्या पटकथा लिखी जा सकती थी!

नतीजतन सरकारी दरियादिली के कारण राज्य में प्राइवेट स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह फले-फूले। फूले भी क्यों ना जब सरकार अपनी विफलता के अक्स तले मर्जर के नाम पर हजारों स्कूलों को बंद कर, झारखंड के भविष्य में अँधेरा फैलाने से नहीं चुके। जहाँ सुप्रीम कोर्ट उनकी सियासी परिभाषा के आगे सिवाय संवैधानिक व्याख्या के आगे कर भी क्या सकती हो। जहाँ राज्य की न्यूनतम जरुरत, जहाँ शिक्षा भी सरकार नहीं बाजार देता हो। जिसके पास जितना पैसा हो, वही पाने की स्थिति में दिखे।

लेकिन पिछली सरकार के वैसे तमाम संस्कृति को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विभागों की मैराथन समीक्षा बैठक के दौरान कचरे पेटी में डालते हुए, जनता को उस कसमसाहट से निकालने का प्रयास किया। जहाँ शिक्षा के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए मुख्यमंत्री जी का निजी स्कूल से लेकर सरकारी स्कूल तक को साफ़ कहना कि, फीस न दे पाने की स्थिति में किसी भी छात्र को वे परीक्षा से वंचित नहीं कर सकते, साफ़ तौर पर झारखंड में शिक्षा के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। 

मसलन, जहाँ शिक्षा अब एक ऐसा धंधा है, जिसमें कभी मंदी नहीं आती। जहाँ स्कूल की मंजूरी से लेकर स्कूल के लिए तमाम दूसरी सरकारी सुविधाएँ लेना राजनेताओं के लिए अपेक्षाकृत आसान होता है। वहां हेमंत सरकार का हिम्मत दिखाते हुए ऐसे फैसले लेना न केवल मुनाफ़े की संस्कृति पर ज़ोरदार प्रहार है, बल्कि राज्य में शिक्षा के अधिकार की लाज बचाने की नज़रिये से एक सराहनीय पहल माना जाना चाहिए। जो निस्संदेह आगे चल झारखंड के अच्छे भविष्य के लिए आधारशिला साबित होगा।

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