गंभीर बीमारी के लिए झारखंड सरकार गंभीर

हेमंत सरकार की गंभीर बीमारी में 8 लाख से कम आय वालों को 5 लाख तक की मदद की पहल

झारखंड में न केवल इलाज की ही सुविधा नहीं, बल्कि डाक्टर व अस्पतालों में बेड भी मरीज़ों की तुलना कम हैं। राज्य की पिछली सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में या स्वास्थ्य सेवा सलीके से चले इस दिशा में सिवाय बीमा के माध्यम से कॉर्पोरेट को फायदा अलावा और कुछ नहीं की। यहाँ तक कि स्वास्थ्य सेवा बजट में बढ़ौतरी के बजाय कटौती की गयी। यानी जहाँ सरकार की सांस बीमार को सुविधा देने में ही फूल रही हो, वहां यह समझा जा सकता है कि बीमारी के प्रकोप के रुप में फैलने की स्थिति में राज्य का क्या नज़ारा हो सकता थी। जिसका मतलब था कि झारखंड प्रदेश में मौत बेहद सस्ती थी।

यानी वक्त के साथ झारखंड कैसे और क्यों कब्रगाह में तब्दील हो गया, इसको सिर्फ राँची मुख्यालय की तरफ रोज़गार व शिक्षा के लिये बढ़ते हजारों से ज्यादा कदमों से ही नहीं समझा जा सकता। बल्कि राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स जैसे संस्थान से निकलती अर्थियों की गिनती से भी समझा जा सकता था। जहाँ विभाग का अस्तित्व केवल मृत्यु प्रमाण पत्र बांटने से अधिक न रह गयी थी। इससे बड़ी त्रासदी क्या कुछ और हो सकती है जहाँ डॉक्टरों के आचरण पर सुप्रीम कोर्ट तक को कहना पड़े कि समाज में इस पद का बड़ा सम्मान है, उसकी गरिमा बचाए रखें।

ऐसे में झारखंड के कैबिनेट का मुख्यमंत्री असाध्य रोग उपचार योजना के तहत आठ लाख से कम आमदनी वालों तक के लिए कैंसर, किडनी और गंभीर लिवर की बीमारी में पांच लाख तक का खर्च व एसिड अटैक पीड़ित के इलाज का पूरा खर्च सरकार सरकार द्वारा उठाने का निर्णय लिया जाना, राहत के तौर पर देखा जा सकता है। जिसे जिले के सिविल सर्जन की अध्यक्षता वाली एक कमेटी राशि की स्वीकृति दे सकेंगे। जिसमे विधायक या विधायक के प्रतिनिधि का शामिल किया जाना, सिविल सर्जन की मनमानी को रोकते हुए योजना को अंतिम छोर तक के जनता तक पहुँचाए जाने की दिशा में एक अच्छी पहल हो सकती है। 

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