कोल्हान ने क्यों रघुवर दास जी को नकारा

कोल्हान में साहेब को नहीं मिला आशीर्वाद! 

समय का पहिया लगातार अविराम गति से चलता रहता है और इसके कालखंड में गतिरोध के इतिहास अंकित होते रहते हैं। वह वक़्त भी अंकित होते है जब चन्द दिनों के काम पूरा करने में शताब्दियां लगती हैं तो ऐसे दौर भी आते हैं जब शताब्दियों के काम चन्द दिनों में पूरे होते हैं। एक वह महान अक्टूबर क्रान्ति का काल था जब ग़रीब मेहनतकश वर्ग उठ खड़े हुए थे और सदियों पुरानी जड़ता और निरंकुशता की बेड़ियों को तोड़ दिया था। उस आधी रात की संकेत की गूँज पूरी दुनिया के  फासिसिवादियों ने सुनी, एक प्रचण्ड रणभेरी बन गये।

अबकी बार भी अक्टूबर है जब झारखंड की ग़रीब अवाम की शान्ति की गूँज से झारखंड के फासीवादी हुक्मरान सुन कर दहल रहे हैं। यहाँ शांति भरी गूँज प्रचण्ड रणभेरी बनी है। कल जो गोदी मीडिया साहेब के कार्यकर्मों में पैसे से जमा किये गए भीड़ के बखान से अपनी सारी पन्नों को भर दिया करते थे, लेकिन आज उनके पास पन्ने भी है और काली स्याही भी परन्तु साहेब के कार्यकर्मों में वह भीड़ नहीं, वे भरे भी तो क्या? इसलिए सारे बेरोजगार जैसा महसूस कर रहे हैं। कोल्हान, पश्चिमी सिंहभूम जिले के पांचों विधानसभा क्षेत्रों में यही यही खबर आम है, साहेब को अब आशीर्वाद नहीं मिल रहा!

मुख्यमंत्री जी पश्चिमी सिंहभूम के तमाम जिले में अपने नुक्कड़ सभा के कार्यकर्मों में पैसे खर्च कर भी भीड़ नहीं जुटा पाए, BDO और CDPO के आदेश पर भी न मुखिया आये और न ही आंगनवाड़ी सेविकायें। चक्रधरपुर में आयोजित रोड शो का आलम यह था कि साहेब अपना हाथ हिलाते रहे लेकिन जनता ने अपनी दुकानों से बाहर निकलने तक की जहमत नहीं उठायी, किसी ने अभिवादन नहीं स्वीकारा। चाईबासा, मझगांव एवं जगन्नाथपुर में स्थिति यह है कि यहाँ का कोई भी नेता भाजपा से टिकट तक नहीं लेना चाहता है। खरसावां में विरोध के भय से मुख्यमंत्री जी गए भी नहीं। 

अलबत्ता, पूरी यात्रा में दिलचस्प तो यह रहा कि अर्जुन मुंडा जी कहीं नहीं दिखे, चर्चे हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें झारखंड की राजनीति से दूर रखा है। भाजपा में सिरे से झारखंडी नेताओं को ख़ारिज कर दिया जा चुका है। जिसका अर्थ है कि इस दल में झारखंडियों की नहीं बल्कि बाहरियों का बोलबाला है, जिसे झारखंडी अवाम भली भांति समझ रही है।

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