माँ से पंगा ले लिया है अबकी बार रघुवर सरकार ने 

माँ तुझे सलाम

झारखंड में आंगनवाड़ी बहने सवा महीने से अपनी न्यूनतम माँगों को लेकर पहले हड़ताल फिर भूख हड़ताल पर हैं, जिनकी हालत खराब है उन बहनों की सुरक्षा को लेकर पहले ही सरकार पर प्रश्न चिन्ह थे, फिर भी सरकार के माथे पर शिकन नहीं आयी अब सरकार उनकी समस्याओं को सुनकर,  निदान निकालने के बजाय तानाशाही रुख अपनाते हुए सख़्ती दिखाने का मन बनाया है विभागीय सचिव अमिताभ कौशल ने राज्य के तमाम उपायुक्तों को पत्र लिख कहा है कि आंगनवाड़ी कर्मियों के विभिन्न मांगों पर सरकार के स्तर से आवश्यक कार्रवाई की जा चुकी है। फिर भी आंगनवाड़ी कर्मियों की हड़ताल जारी है, जिससे राज्य भर के 38432 आंगनवाड़ी केंद्र प्रभावित हो रहे हैं इसलिए हड़ताल में शामिल आंगनवाड़ी सेविका व सहायिका को एक सप्ताह के अंदर काम पर लौटने का निर्देश दें। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो हड़ताली कर्मियों को चयन कर उन्हें कार्य मुक्त करें और  उनके स्थान पर अन्य सेविका व सहायिका का नियमानुसार चयन सुनिश्चित करें

सरकार के इस कदम और बहनों कि स्थिति देख एक कहानी याद आती है- चार शेरों ने मिल कर एक जिराफ का बच्चा दबोच लिया, उसकी माँ झुंड के साथ दूर खड़ी फड़फड़ाती तड़पती कभी इधर कभी उधर चक्कर लगा रही थी। चारों नोच-नोच कर उसका बच्चा खाने लगे। उफ्फ ! देखा नहीं जा रहा था। माँ जिराफ उन चारों शेरों की तरफ लपकी, आप सोच रहे होंगे कि वह उन शेरों का क्या कर पायेगी? वह माँ ठहरी मर जाएगी बच्चे के साथ। उसे दौड़ते हुए अपनी ओर आते देख शेर एक पल को सतर्क हुये। उनमें से एक को जिराफ माँ ने दौड़ा दिया जो एक मामूली गड्ढे में फंस गया। वैसे गढ्ढा थोड़ा था, वह निकल भाग सकता था। मगर आज यह जिराफ नहीं थी बल्कि तड़पती शोक में व्याकुल माँ थी। वह उसके ऊपर चढ़ गई और आगे पीछे की दोनों लातों से उसे मारना शुरू किया। उस पर अपना भारी वज़न तक डाल दिया। शेर ज़ख्मी हो गया, वह हट गई। थोड़ी दूर गई, फिर लौटी, फिर से उस पर चढ़ गई और जान ले के ही उतरी। बाकी शेर उसके बच्चे के खून से भिंगोए खून के साथ ये खौफ़नाक मंज़र देखते रहे।

मेरी माँ कहती थी जब तक मैं हूँ तब तक यमराज भी तुझे छू नहीं सकता। माँ तुझे सलाम।

बेशक यही हाल सरकारी शेरों का भी होने वाला है, अबकी बार झारखंड में इनके राह में खुद माँ खड़ी है।

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