नशे के लत में धकेली जा रही है झारखंड के भविष्य
विज्ञान मानव का सेवक है लेकिन आज यह मात्र मुनाफ़ा कूटने का एक साधन बनकर रह गया है। मौजूदा व्यवस्था मानव के मानवीय मूल्य और मानवीय संवेदनाओं को निरंतर निगलती जा रही है। विज्ञान की ही एक विधा चिकित्सा विज्ञान ने पिछले कुछ दशकों में अभूतपूर्व तरक़्क़ी की है, जिसके बदौलत हमने अनेक बीमारियों पर विजय पायी है। लेकिन विज्ञान की अन्य धाराओं की तरह ही चिकित्सा विज्ञान भी मात्र मुनाफ़ा कमाने का एक ज़रिया बनकर रह गया है। यह पेशा आज मुनाफ़ा के लिए निर्मम खूनचूसू तंत्र में तब्दील हो चुका है।
झारखंड के राजधानी राँची समेत राज्य के सभी जिलों के बस स्टैंड, चौक-चौराहों पर मौजूद परचून व पान दुकानों पर आयुर्वेदिक औषधि के नाम पर खुलेआम नशे का डोज, मुनक्का, आनंद और रॉकेट के नाम से टॉफी के रैपर में लपेट कर महज दो रुपये में बेचीं जा रही है। किशोर व युवा इसका सेवन कर मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। मनोचिकित्सक डॉ सुयेश सिन्हा का कहना है कि इस प्रतिबंधित नशे की पुड़िया के उपयोग से पागलपन का दौरा तक पड़ सकता है। ये इसे मोटिवेशनल सिंड्रोम कहते हैं। इसके सेवन से व्यक्ति का व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाता है और वह मारपीट की प्रवृत्तिवाला बन जाता है। इस मानसिक रोग से ग्रसित मरीज़ों की लगातार इज़ाफा हो रहा है, जो ज्यादातर युवा हैं।
यह नशीला पदार्थ पटना और मध्य प्रदेश से झारखंड में खेपा जा रहा है, माँग जोरों पर है। दिलचस्प बात यह है कि पुड़िये पर न तो उत्पादक का नाम अंकित है और न ही उत्पादन का स्थान। साथ ही इस पुड़िये पर बकायदा ‘आयुर्वेदिक औषधि’, ड्यूल E (1) ड्रग लिखा है और इसका उपयोग चिकित्सक के परामर्श पर करने की सलाह लिखी गयी है। यह सब खुले आम हो रहा है, लेकिन सरकार के साथ-साथ उनकी औषधि विभाग भी बेपरवाह हो कुम्भकर्णी नींद सोयी हुई है। डरने वाली बात यह कि, झारखंड के अधिकांश युवा बेरोज़गारी के आलम में डिप्रेशन का शिकार होने के वजह से आसानी से इस नशे का आदि होते जा रहे है, जो कि प्रदेश के लिए भयावह ख़बर है। स्थिति यही रही तो झारखंड की स्थिति उड़ता पंजाब सरीखे होने में देर नहीं लगेगी।