संथाल परगना के आठों अस्पताल बिना डॉक्टर के चल रहे हैं 

संथाल परगना झारखंड राज्य की प्रशासनिक ईकाईयों में से एक है। यह झारखंड का एक प्रमंडल है जिसका मुख्यालय दुमका में है। इस इकाई में झारखंड के छह जिले – गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और पाकुड़ आते हैं। ब्रिटिश राज में पहले संथाल परगना नाम से ही संयुक्त बिहार में एक जिला हुआ करता था जिसे 1855 में ब्रिटिशों ने जिला घोषित किया था और यह बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा हुआ करता था। 

संथाल परगना दो शब्दों संथाल – जो एक आदिवासी समुदाय है और परगना (उर्दू) – जिसका अर्थ प्रांत या राज्य होता है। संथाल परगना के सभी छह जिलों में संथाल आदिवासियों की बहुतायत है। ब्रिटिश राज के दौरान आदिवासियों द्वारा यहाँ कई विद्रोह हुए थे जिसमें तिलका मांझी, बिरसा मुंडा, कान्हू मुर्मू, सिद्धू मुर्मू जैसे आदिवासियों ने काफी प्रमुख भूमिका निभाई थी। आज प्रदेश के मुखिया रघुबर दास इस परगना में सक्रिय है, रोज इस प्रमंडल को लेकर कुछ न कुछ वादे करते दिखते हैं। 

लेकिन इसकी ज़मीनी हक़ीकत यह है कि कल्याण विभाग इस प्रमंडल में 18 पहाड़िया हेल्थ सब सेंटर का संचालन करता हैइसके तहत दुमका के आठ, साहेबगंज के छह तथा पाकुड़ व गोड्डा के दो-दो सब सेंटर एलोपैथिक इलाज मुहैया कराते हैं इनमें साहेबगंज के दो तथा दुमका के चार अस्पताल पहाड़ पर मौजूद हैं जिसका मकसद यहाँ बसनेवाले पहाड़िया जनजातियों को स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि इन सभी अस्पतालों में एक भी चिकित्सक नहीं हैं। यही नहीं राज्य के जनजातीय इलाकों में संचालित विभाग के 35 आयुर्वेदिक अस्पताल में केवल पांच चिकित्सक ही हैं 

मतलब एक चिकित्सक पर औसतन छह-सात अस्पतालों का संचालन का भार हैं ऐसे में समझा जा सकता है कि इन जनजातीय समुदाय के स्वास्थ्य का ख्याल सरकार कैसे रख रही है मसलन मौजूदा सरकार मीडिया के सहारे इस प्रदेश की जो भी स्थिति बयाँ करती दिखती है वह भ्रम फैलाने के अतिरिक्त कुछ और नहीं हो सकता

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