वाजपेयी की सादगी, आडवाणी की मनन मुद्रा जो ठहाके के बीच गंभीर खामोशी की चादर ओढ लेती है, मुरली मनोहर जोशी का चिंतन, भैरो सिह शोखावत का गले लगाने का अंदाज, जसवंत सिंह का हाथ मिलाकर इशारों में समझाने की अदा। पुरानी हवेली! हर बात का गवाह रही है। और इसी बीच साहेब के नयी इमारत में बीजेपी के 40वें जन्मदिन पुरानी हवेली को नज़र कर मनाया जाना, कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि आखिर अब बीजेपी और उसके विचारधारा का मतलब क्या रह गया है।
2014 का मोदी जश्न के बीच 2019 की आहट से पहले 2019 के जनादेश को भाजपा के नयी इमारत में देखने की जो चाहत हो चली है उसके बुनियाद में आडवाणी-जोशी सरीखे ईंट है ही नहीं। ऐसे में लाज़िम सवाल यह है कि क्या बीजेपी की उम्र 39 बरस ही थी जो 2019 में पूरी हो गई? क्योंकि 2019 का चुनाव बीजपी तो लड नहीं रही, यदि वह लड़ रही होती तो क्या झारखंड के गिरिडीह सरीखे ऐतिहासिक जिले से बीजेपी को बुरी तरह साफ़ करने का शाजिश करते, यक़ीनन नहीं क्योंकि मोदी-शाह के विचारों में बीजेपी की विचारधारा है ही नहीं।
बहरहाल, शायद यही सवाल आडवाणी ने अपने ब्लाग में उठाया है और 1996 में वाजपेयी का वह कथन,”विपक्षी कहते है वाजपेयी तो अच्छा है पर बीजेपी ठीक नही है” को साहेब ने सत्य कर दिखाया। संघ परिवार जिन सांस्कृतिक मूल्यों का जिक्र कर अपनी विचारधारा को वाजपेयी की सत्ता के दौर में उभारती रही वह भी 2019 के चुनाव में सिरे से लापता है। मतलब अब सत्ता ही विचारधारा है और सत्ता पाने के तरीके ही संघ परिवार के सरोकार हो गए हैं तो फिर कोई भी सवाल कर सकता है कि इस बीच आखिर बीजेपी है कहां? इन्हीं पसोपेश के बीच यदि 2019 में अगर मोदी चुनाव हार जाते हैं तो फिर ऐसे में बीजेपी कहां होगी? मसलन इस दफा केवल हमें सामाजिक मूल्यों को ही बल देना होगा।