सराबोर चैत-सखूआ-फूलों की खुसबू से मदमस्त फजा के बीच “सरहुल”

रंगों से सराबोर चैत, सखूआ के फूलों की खुसबू से मदमस्त झारखंड की फजां के बीच “सरहुल” प्राकृतिक प्रेमी के पर्याय झारखंडियों के जीवन चक्र को पूरा करती है इस पर्व के नाम मात्र से ही प्रकृति प्रेमी, नैसर्गिक गुणों के धनी, पर्यावरण के स्वभाविक रक्षक इन आदिवासियों का जीवन समर्थक हो उठता हैसखूआ के फूलों की भीनी-भीनी महक सारे वातावरण को सुरभित कर उनके जीवन को ताजगी से भर देती  है

दन्त कथाओं के अनुसार, एक दिन धरती मां की बेटी बिंदी नदी नहाने गई पर लौट कर नहीं आयी, धरती मां परेशान हो गई। दूतों के चारों दिशा में ढूंढ़ने के बावजूद बिंदी पता न चल सका। धरती मां के उदास रहने से सृष्टि विनाश की ओर बढ़ने लगी। पेड़-पौधे सूख गए, खेत में दरारे पड़ने लगी। अंततः पता चला कि बिंदी एक राक्षस पास है। दूत वहां पहुँच देखा कि बिंदी राक्षस के पास खेल रही थी। दूतों के बहुत आग्रह करने के बाद राक्षस इस बात पर राज़ी हुआ कि 6 महीने बिंदी पृथ्वी लोक में रहेगी तो 6 महीने उसके पास। बिंदी के आगमन से पूरी पृथ्वी लोक में खुशी की लहर दौड़ जाति है – पौधों में नए-नए पत्ते आने लगते है, सभी फूल खिल जाते हैं , हैं, धरती धन-धान्य से भरपूर हो जाती है, चारों ओर हरियाली छा जाती है – और सराबोर चैत में प्राकृतिक प्रेमी खुशी इसे सरहुल पर्व कह मनाने लगे।

बहरहाल, आज भी झारखंडियों के ख़ुशियों को चंद बुरी मंशा वाले ताकतों द्वारा अगवा कर इन बेजुबान प्राकृतिक प्रेमियों को उनके ही ज़मीनों से खदेड़ा जा रहा है, यहां स्कूलों को बंद कर बच्चों के भविष्य अधर में लटका दिए गए हैं। यहाँ की खनिज सम्पदा को लूटने के लिए सारे क़ानूनों को ताक पर रखते हुए जंगलों को इस कदर बेदर्दी से साफ़ किया गया कि यह खूबसूरत राज्य प्रदूषण से भर गया है। ऐसे में यहाँ कि जनता पर अब पूरी दारोमदार है कि ये इस दफा इन बुरी ताकतों को पीछे धकेल कर ही सही मायने में सरहुल मनाएंगे।    

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